समंदर की गहराइयों में खड़ी हो रही है एक नई ‘ड्रोन सेना’, जिसे देखकर ड्रैगन भी कांप उठा
चीन की सैन्य धमकियों के बीच ताइवान ने समंदर में युद्ध की तैयारी शुरू कर दी है। अब ताइवान समुद्री और हवाई ड्रोन की ताकत से ड्रोन आर्मी खड़ी कर रहा है जो चीन को पानी में टक्कर देने की रणनीति का हिस्सा है।

International News: चीन की धमकियों और सैन्य घुसपैठों के बीच ताइवान ने एक बड़ा कदम उठाया है। अब ताइवान ऐसे अंडरवाटर और हवाई ड्रोन तैयार कर रहा है जो युद्ध में हथियार ले जाने और हमला करने की क्षमता रखते हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध में जिन तकनीकों ने असर दिखाया, अब उन्हीं का इस्तेमाल ताइवान भी करने जा रहा है। चीन लगातार ताइवान के एयरस्पेस में घुसपैठ करता है और कब्जे की धमकी देता रहता है। इसी दबाव के बीच ताइवान अब अपनी सैन्य तैयारी युद्ध स्तर पर तेज कर चुका है। ये ड्रोन न सिर्फ निगरानी के काम आएंगे, बल्कि जंग के हालात में दुश्मन पर हमला भी कर सकेंगे।
समंदर में युद्ध की तैयारी शुरू
ताइवान के यिलान शहर में हाल ही में एक ड्रोन प्रदर्शनी का आयोजन हुआ जिसमें 12 से अधिक देशों की कंपनियों ने भाग लिया। यहां अनक्रूड सी व्हीकल यानी अंडरवाटर ड्रोन का प्रदर्शन किया गया। ताइवान ने साफ कर दिया है कि इन ड्रोन का बड़े स्तर पर उत्पादन होगा और समुद्री युद्ध के लिए इन्हें इस्तेमाल किया जाएगा। इन अंडरवाटर ड्रोन की खासियत यह है कि ये दुश्मन की नज़र से बचकर हमला कर सकते हैं और इन्हें चलाना भी काफी सस्ता और आसान है। समुद्री सुरक्षा में ये एक बड़ा गेमचेंजर साबित हो सकते हैं।
ब्लैक टाइड सी ड्रोन बना हथियार
प्रदर्शनी में सबसे ज्यादा चर्चा ब्लैक टाइड सी ड्रोन की रही जो 80 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चल सकता है। इसे इंटेलिजेंस, निगरानी और सीधे हमले के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके साथ ही एक सस्ता स्टील्थ ड्रोन भी दिखाया गया जो बमबारी और सर्विलांस के काम में आएगा। ताइवान सरकार का दावा है कि इन ड्रोनों का उत्पादन बेहद आसान और लागत प्रभावी है। इससे उन्हें चीन जैसे विशाल ड्रोन उत्पादक देश से मुकाबला करने में मदद मिलेगी। इन ड्रोनों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से लक्ष्य साधने की क्षमता विकसित की जा रही है। ये समुद्र में लंबे समय तक गश्त कर सकते हैं और दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं। ब्लैक टाइड जैसे ड्रोन संकरी समुद्री गलियों में भी बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। इनमें सोलर चार्जिंग की तकनीक शामिल की जा रही है जिससे ऑपरेशन टाइम बढ़ाया जा सके। ताइवान ने दावा किया है कि इस टेक्नोलॉजी से वह चीन की निगरानी प्रणाली को मात दे सकता है।
अमेरिका के साथ तकनीकी साझेदारी
ताइवान को अमेरिकी कंपनी Auterion का साथ भी मिल चुका है। इस कंपनी ने ताइवान के साथ मिलकर हाईटेक ड्रोन बनाने का करार किया है। ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने कहा है कि देश को ड्रोन निर्माण में एशिया का हब बनाया जाएगा। फिलहाल ताइवान हर साल 8 से 10 हजार ड्रोन बनाता है लेकिन सरकार ने 2028 तक इस संख्या को बढ़ाकर हर साल 1.80 लाख करने का लक्ष्य रखा है। Auterion के साथ साझेदारी से ताइवान को नेविगेशन, सेंसिंग और कम्युनिकेशन सिस्टम में नई तकनीक मिलेगी। यह साझेदारी चीन के लिए कूटनीतिक रूप से भी बड़ी चुनौती मानी जा रही है। अमेरिका की मौजूदगी ताइवान को सैन्य आत्मनिर्भरता की दिशा में एक मजबूत आधार देगी। इस समझौते में प्रशिक्षण, रिसर्च एंड डेवलपमेंट और उत्पादन में सहयोग शामिल है। राष्ट्रपति चिंग-ते ने कहा कि आने वाले वर्षों में ड्रोन सेक्टर में हज़ारों रोजगार भी पैदा होंगे।
कम लागत, हाई टेक्नोलॉजी पर जोर
ताइवान की रणनीति स्पष्ट है—कम कीमत में अत्याधुनिक ड्रोन तैयार करना। अभी तक चीन के ड्रोन ताइवान के मुकाबले काफी सस्ते पड़ते थे, जिससे बाजार में चीन का दबदबा बना रहता था। लेकिन अब ताइवान की योजना है कि वह स्मार्ट और किफायती ड्रोन बनाकर न सिर्फ मुकाबला करे, बल्कि समुद्री युद्ध में बढ़त भी बनाए। नई नीति के तहत ताइवान लोकल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दे रहा है ताकि लागत घटे। सरकार कंपनियों को सब्सिडी दे रही है जिससे R&D सेक्टर मजबूत हो सके। ड्रोन के डिज़ाइन को मॉड्यूलर बनाया गया है ताकि ज़रूरत अनुसार उसे कस्टमाइज़ किया जा सके। कम कीमत पर बनने वाले ये ड्रोन एशियाई देशों के लिए भी निर्यात का विकल्प बन सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ताइवान आने वाले समय में चीन के ड्रोन बाज़ार को चुनौती दे सकता है।


