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अमेरिकी सुरक्षा रणनीति में भारत बना प्रमुख साझेदार, चीन पर कसा शिकंजा...पाकिस्तान को किया गया खारिज

अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति 2025 में भारत को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए एक प्रमुख रणनीतिक साझेदार माना गया है. दस्तावेज में क्वाड की भूमिका, भारत-अमेरिका रक्षा और तकनीकी सहयोग, तथा क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करने पर जोर दिया गया है.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

नई दिल्ली : राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में व्यापारिक तनाव, शुल्क विवाद, एच-1बी वीज़ा की चुनौतियां और प्रवासी-विरोधी राजनीतिक माहौल के बावजूद, वाशिंगटन ने भारत को अपनी दीर्घकालिक रणनीति का एक प्रमुख स्तंभ बनाया है. अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति 2025 यह स्पष्ट करती है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत और क्वाड समूह की भूमिका निर्णायक होगी.

भारत पर केंद्रित अमेरिकी रणनीतिक बदलाव

आपको बता दें कि यह दस्तावेज संकेत देता है कि वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में भारत के साथ सुरक्षा और रणनीतिक सहयोग अब पुराने दृष्टिकोण से नहीं देखा जा सकता. ट्रंप प्रशासन की नीतिगत आपत्तियों के बावजूद, अमेरिका की दीर्घकालिक सोच भारत को एक ऐसे साझेदार के रूप में देखती है जो क्षेत्र में शक्ति संतुलन कायम रखने में सक्षम है. हैरानी की बात है कि 29 पन्नों के दस्तावेज में पाकिस्तान का उल्लेख बेहद सीमित है और वह भी रणनीतिक संदर्भ में नहीं आता.

हिंद-प्रशांत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा का केंद्र बताना
दस्तावेज़ में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को 21वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का मैदान बताया गया है. इसे दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद का बड़ा हिस्सा उत्पन्न करने वाला क्षेत्र बताते हुए कहा गया है कि आने वाले दशकों में इसका महत्व और बढ़ेगा. इसी कारण अमेरिका चाहता है कि भारत उसकी आर्थिक और सुरक्षा रणनीतियों में एक सक्रिय साझेदार बने.

चीन के उदय को संतुलित करने में भारत की भूमिका
अमेरिका ने चीन के प्रति कड़ी भाषा का प्रयोग करते हुए कहा है कि बीजिंग की आक्रामक नीतियाँ क्षेत्रीय स्थिरता के लिए गंभीर चुनौती बनती जा रही हैं. दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिविधियों का विशेष उल्लेख करते हुए, दस्तावेज़ सुझाव देता है कि भारत सहित अन्य लोकतांत्रिक देशों के साथ गहरे सहयोग के ज़रिए इस शक्ति-असंतुलन को रोका जा सकता है.

रक्षा, तकनीक और आर्थिक साझेदारी में विस्तार
अमेरिकी रणनीति भारत के साथ रक्षा सहयोग, तकनीकी साझेदारी और आर्थिक संबंधों को और मजबूत करने की सिफारिश करती है. इसके पीछे उद्देश्य यह है कि भारत इंडो-पैसिफिक सुरक्षा ढाँचे में और अधिक निर्णायक भूमिका निभा सके. अमेरिका मानता है कि क्षेत्र में किसी भी बड़े संघर्ष को रोकने के लिए दीर्घकालिक सैन्य और तकनीकी निवेश अनिवार्य होगा.

क्वाड: सुरक्षा सहयोग का मुख्य स्तंभ
अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया से मिलकर बना क्वाड इस रणनीति का केंद्रीय तत्व है. दस्तावेज़ में क्वाड को केवल कूटनीतिक मंच नहीं, बल्कि समुद्री सुरक्षा, आपूर्ति श्रृंखला स्थिरता, संयुक्त सैन्य अभ्यास और नई तकनीकी साझेदारियों के लिए एक व्यावहारिक ढाँचा बताया गया है. वैक्सीन कूटनीति और महत्वपूर्ण खनिजों पर सहयोग को भी इसमें महत्वपूर्ण आधार बताया गया है.

चीन-अमेरिका तनाव के बीच भारत के लिए अवसर
बढ़ते चीन-अमेरिका तनाव के संदर्भ में यह रणनीति भारत के लिए नए अवसर खोलती है. रिपोर्ट चेतावनी देती है कि यदि चीन का अनियंत्रित प्रभुत्व बढ़ा, तो यह वैश्विक लोकतांत्रिक ढाँचे और आर्थिक प्रवाह के लिए खतरा हो सकता है. ऐसे में भारत की भूमिका केवल क्षेत्रीय नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अहम बन सकती है.

भविष्य में व्यापक अमेरिका-भारत सहयोग की संभावना
अगर यह रणनीति योजनानुसार लागू होती है, तो भविष्य में सुरक्षा साझेदारी के साथ-साथ व्यापारिक समझौते और प्रौद्योगिकी सहयोग भी मजबूत हो सकते हैं. चीन की तेज़ी से बढ़ती नौसैनिक क्षमताओं और भू-राजनीतिक दावों को देखते हुए, क्वाड समुद्री मार्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, जिनसे दुनिया के व्यापार का बड़ा हिस्सा गुजरता है.

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09 December 2025, 03:51 PM IST

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