ईरान की संसद ने पास किया IAEA के खिलाफ विधेयक, क्या अब खुल जाएगा परमाणु हथियारों का रास्ता?
ईरान की संसद ने बुधवार को एक विधेयक को मंजूरी दी. इसके तहत अब ईरान संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था IAEA (इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी) के साथ सहयोग बंद कर देगा.

ईरान और इजरायल के बीच हालिया संघर्षविराम के बाद भी तनाव कम नहीं हुआ है. इसी बीच बुधवार को ईरान की संसद ने एक महत्वपूर्ण विधेयक को मंजूरी दी है, जिसके तहत अब ईरान संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था IAEA (इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी) के साथ सहयोग बंद कर देगा. यह फैसला अमेरिका द्वारा ईरानी परमाणु ठिकानों पर की गई बमबारी के बाद लिया गया है. इससे क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर चिंता और बढ़ गई है.
परमाणु साइटों के निरीक्षण से पहले अनुमति
ईरानी संसद के अध्यक्ष मोहम्मद बाकर कलीबाफ ने कहा कि अब ईरान अपने शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम को तेजी से आगे बढ़ाएगा. नए कानून के तहत IAEA को ईरान की परमाणु साइटों का निरीक्षण करने के लिए पहले सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल से अनुमति लेनी होगी. यह कदम ईरान की गैर-निर्वाचित संरक्षक परिषद की मंजूरी के बाद पूरी तरह से लागू होगा.
ईरान का आरोप है कि IAEA ने उसके खिलाफ राजनीतिक रुख अपनाया और उसके परमाणु ठिकानों पर इजरायली हमलों की निंदा तक नहीं की, जिससे उसकी अंतरराष्ट्रीय साख पर सवाल उठे हैं. कलीबाफ ने कहा कि जब तक ईरानी परमाणु ठिकानों की सुरक्षा की गारंटी नहीं दी जाती, तब तक देश का परमाणु संगठन IAEA के साथ कोई सहयोग नहीं करेगा.
कानून के तहत कौन से कार्यों पर लगेगी रोक?
इस कानून के तहत IAEA के निगरानी कैमरे, निरीक्षण दौरे और रिपोर्टिंग जैसे सभी कार्यों पर रोक लग जाएगी. इससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए यह जानना मुश्किल हो जाएगा कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को किस दिशा में ले जा रहा है. पहले से ही संकेत हैं कि ईरान ने 70 से 80 प्रतिशत यूरेनियम का एनरिचमेंट कर लिया है, जो 90 प्रतिशत हथियार-ग्रेड स्तर के बहुत करीब है.
IAEA प्रमुख राफेल ग्रॉसी ने उम्मीद जताई है कि ईरान निरीक्षकों को वापस परमाणु ठिकानों पर आने देगा. खासकर उन साइटों पर जहां 13 जून को इजरायल के हमलों से पहले यूरेनियम संवर्धन जारी था. उधर अमेरिका ने फोर्डो, इस्फहान और नतांज जैसी प्रमुख परमाणु साइटों पर हाल ही में जोरदार बमबारी की थी. हालांकि ईरान का दावा है कि इन हमलों से गंभीर नुकसान नहीं हुआ, क्योंकि अधिकांश न्यूक्लियर मटेरियल पहले ही गुप्त ठिकानों पर स्थानांतरित कर दिया गया था.


