जासूसी की वो दुनिया, जिससे डरते थे अमेरिका और ब्रिटेन!
KGB- The Soviet Intelligence Agency: KGB की कहानी न केवल जासूसी की दुनिया की सबसे रोमांचक कहानियों में से एक है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे एक खुफिया एजेंसी विश्व की राजनीति और सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है। इसके कारनामे आज भी खुफिया एजेंसियों के लिए एक सबक हैं।

KGB- The Soviet Intelligence Agency: सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी KGB (कमेटी फॉर स्टेट सिक्योरिटी) का नाम आज भी जासूसी की दुनिया में एक दंतकथा की तरह लिया जाता है। 20वीं सदी में, KGB ने न केवल अमेरिका और ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियों जैसे CIA और MI6 को चुनौती दी. बल्कि उनके परमाणु कार्यक्रमों में सेंध लगाकर दुनिया को अपनी ताकत का अहसास कराया। हाल ही में सामने आए कुछ गोपनीय दस्तावेजों ने KGB के उन ऐतिहासिक कारनामों को फिर से चर्चा में ला दिया है जैसे अपनी क्रूरता, गुप्त रणनीतियों और हैरंतअंगेज योजनाओं के कारण KGB पूरी दुनिया में कुख्यात थी. KGB के कुछ प्रमुख कारमानों में सबसे ऊपर आता है अमेरिकी के परमाणु कार्यक्रम में सेंध लगाना. इस खुफिया एजेंसी ने मेरिका के मैनहट्टन प्रोजेक्ट में जासूस भेज कर हथियारों की तकनीकी जानकारी निकाली और उन्हें सोवियत संघ को सौंप दिया.
KGB की असली ताकत
KGB की ताकत केवल परमाणु जासूसी तक सीमित नहीं थी। इसने CIA और MI6 के कई एजेंटों को उजागर किया और उनके मिशनों को नाकाम किया। किम फिल्बी और एल्ड्रिच एम्स जैसे डबल एजेंटों ने KGB के लिए काम करते हुए पश्चिमी खुफिया एजेंसियों को भारी नुकसान पहुंचाया। 1980 के दशक में KGB ने CIA के कई गुप्त ऑपरेशनों को विफल किया. जिससे अमेरिकी खुफिया तंत्र की विश्वसनीयता पर सवाल उठे.
CIA में अपने लोग भेजे
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि KGB ने CIA के अधिकारी एल्ड्रिच एम्स और FBI के एजेंट रॉबर्ट हैंसन को अपने लिए काम करने के लिए फोड़ा. और इन दोनों अधिकारियों की मदद से केजीबी ने अमेरिका के कई गुप्त ऑपरेशंस के बारे में पहले ही पता लगा लिया. KGB ने कई अमेरिकी खुफिया एजेंट्स को मौत के घाट तक भी उतारा दिया था.
ऐसे हुआ अंत
KGB ने अपने पास हर देश में हजारों मुखबिरों की फौज रखी थी. इसके एजेंट्स सरकार और सैन्य सेवा और मंत्रालयों में काम करने वाले बड़े अफसरों की कमजोर कड़ी का पता लगाते और उन्हें अपने लिए काम करने को इस्तेमाल करते थे. 1991 में मिखाइल गोर्बाचेव के खिलाफ तख्तापलट की विफलता के बाद केजीबी को भंग कर दिया गया. केजीबी के काम करने के तरीकों का प्रभाव आज भी रूस में देखा जा सकता है.


