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बलूच विद्रोह की जड़: जिन्ना का छल और पाकिस्तान की नाकामी

बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय जबरदस्ती हुआ, जिसने वहां असंतोष और बगावत को जन्म दिया. मोहम्मद अली जिन्ना ने स्वतंत्र बलूतिस्तान को सुरक्षा और संप्रभुता का आश्वासन दिया था. लेकिन जल्द ही इसे पाकिस्तान में मिला लिया गया. यह छल बलूत जतना के विश्वास को तोड़ने वाला साबित हुआ, पाकिस्तान सरकार ने दशकों तक बलूचिस्तान की उपेक्षा की, वहां संसाधनों का शोषन किया लेकिन जनता को उनके अधिकार नहीं दिए. राजनीतिक दमन, सैन्य अभियान और मानवाधिकार हनन के विद्रोह को और भड़का दिया. नतीजा यह है कि बलूचिस्तान आज भी असंतोष और संघर्ष का केंद्र का बना हुआ है.

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

पाकिस्तान के चार प्रांतों में सबसे बड़ा और सबसे कम आबादी वाला बलूचिस्तान, शायद ही कभी शांति या विकास देख पाया हो. 11 मार्च को पाकिस्तान से अलग होने के लिए लड़ रहे बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के आतंकवादियों ने एक ट्रेन को हाईजैक कर लिया था और सुरक्षाकर्मियों सहित 100 यात्रियों को बंधक बना लिया था.  पाकिस्तान के जनक मुहम्मद अली जिन्ना ने बलूच लोगों के साथ किया गया विश्वासघात किया और अब यह बड़े विद्रोह की वजह बन गया है.

खनिज-समृद्ध बलूचिस्तान

बलूचिस्तान, जो एक शुष्क लेकिन खनिज-समृद्ध प्रांत है, के लोग ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान की पंजाब-प्रधान राजनीति द्वारा उपेक्षित महसूस करते रहे हैं. बलूच लोगों को आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया जाता रहा है, जबकि उनकी भूमि की खनिज संपदा को संघीय सरकार को वित्तपोषित करने के लिए निकाला जाता रहा है. बलूच लोगों के गुस्से का एक निशाना ग्वादर बंदरगाह है जिसे पाकिस्तान चीन की सहायता से विकसित कर रहा है. बलूच उग्रवादी समूहों ने चीनी इंजीनियरों पर हमला किया है. ग्वादर बंदरगाह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का हिस्सा है.

अकबर खान बुगती की हत्या के बाद बगावत में आई तेजी 

सशस्त्र विद्रोह का अगला दौर 2004 में शुरू हुआ तथा 2006 में पाकिस्तानी सेना द्वारा  बलूचों के सबसे बड़े आदिवासी नेता अकबर खान बुगती की हत्या के बाद विद्रोह की आग और भड़क गई. बुगती पाकिस्तान की सरकार से अपना अधिकार मांगे रहे थे और प्राकृतिक संसाधनों में उचित हिस्सेदारी का प्रस्ताव रखा था. इससे पहले, 1970 के दशक में बलूच उग्रवाद का सबसे रक्तरंजित और सबसे लम्बा दौर देखा गया था.

बांग्लादेश कनेक्शन और 1970 के दशक का आंदोलन

1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) की स्वतंत्रता के बाद बलूचिस्तान में नेशनल अवामी पार्टी के नेताओं ने अधिक स्वायत्तता की मांग शुरू कर दी थी. प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो द्वारा मांगों को खारिज किये जाने के बाद विरोध प्रदर्शन तेज हो गया. 1973 में भुट्टो ने अकबर खान बुगती की बलूचिस्तान प्रांतीय सरकार को बर्खास्त कर दिया था और इस बहाने बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान की घोषणा की थी कि इराकी दूतावास में हथियारों का एक जखीरा मिला है जो बलूच विद्रोहियों के लिए था. इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर सशस्त्र विद्रोह हुआ जो 1977 तक चार वर्षों तक चला. इसको बलूचिस्तान का चौथा संघर्ष भी कहा गया.

दूसरा और तीसरा बलूचिस्तान संघर्ष

1954 में पाकिस्तान ने वन यूनिट योजना शुरू की जिसके तहत उसके प्रांतों का पुनर्गठन किया गया. वन यूनिट के तहत बलूचिस्तान को अन्य प्रांतों के साथ मिलाने से इसकी स्वायत्तता कम हो गई. इससे बलूच नेताओं में भारी आक्रोश फैल गया और कलात के खान नवाब नौरोज खान ने 1958 में स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और पाकिस्तानी सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया.

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12 March 2025, 01:39 PM IST

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