मुसलमानों की सबसे बड़ी ताकत अब बनी मजाक? ईरान को ठेंगा, गाजा को धोखा! OIC पर फिर उठे भरोसे के सवाल
Iran Israel Conflict: मुस्लिम देशों के सबसे बड़े संगठन OIC की भूमिका पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं. ईरान पर हालिया अमेरिकी हमले, गाजा में हजारों मौतों और चीन में उइगर मुसलमानों पर हो रहे अत्याचारों के बावजूद OIC की निष्क्रियता को लेकर एक रिपोर्ट में इसे विफल संगठन करार दिया गया है.

Iran Israel Conflict: दुनियाभर में मुस्लिम समुदाय के अधिकारों की रक्षा और प्रतिनिधित्व के उद्देश्य से स्थापित ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) एक बार फिर सवालों के घेरे में है. हाल ही में ईरान पर हुए अमेरिकी हमले के बाद संगठन की निष्क्रियता ने इसकी प्रासंगिकता और प्रभावशीलता को लेकर गंभीर शंकाएं खड़ी कर दी हैं. इससे पहले गाजा में हजारों मौतों और चीन में उइगर मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचारों के समय भी OIC की चुप्पी उसकी कमजोरी को उजागर कर चुकी है.
एक रिपोर्ट में खुफिया सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि OIC अब एक विफल संगठन बन चुका है. 1.9 बिलियन मुस्लिम आबादी और 57 सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद यह संगठन मुस्लिम समुदाय के हितों की रक्षा करने में पूर्णत: असफल रहा है. रिपोर्ट में कहा गया, "यह मुस्लिम समुदाय के लिए एक आंख खोलने वाली सच्चाई है… OIC एक निष्क्रिय निकाय बन गया है, जिसके पास देने को कुछ नहीं बचा है."
ईरान पर हमले के बाद भी OIC की चुप्पी
ईरान पर अमेरिकी हमले के बाद OIC ने औपचारिक बयान तो जारी किया, लेकिन उसमें अमेरिका का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया. यह रवैया अंतरराष्ट्रीय मामलों में संगठन की कमजोर स्थिति को दर्शाता है. रिपोर्ट के मुताबिक, OIC संकट के हर मोर्चे पर असहाय और मूकदर्शक की भूमिका निभा रहा है चाहे वह गाजा हो, शिनजियांग हो या अब ईरान.
गाजा और उइगर मुद्दों पर भी रहा असहाय
रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि गाजा में 50,000 से अधिक मौतों के बावजूद OIC कोई प्रभावी कदम नहीं उठा सका. इसी तरह चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगर मुसलमानों पर हो रहे वर्षों पुराने अत्याचारों पर भी संगठन मौन रहा है. इन सबके बीच ईरान पर हुए हालिया हमले में भी OIC की निष्क्रियता सामने आई है, जिससे मुस्लिम दुनिया में इस संस्था की विश्वसनीयता लगातार घटती जा रही है.
फैसलों की प्रणाली और आंतरिक मतभेद बने बाधा
OIC की नाकामी के पीछे एक बड़ा कारण इसकी निर्णय प्रक्रिया है, जो आम सहमति (कंसेंसस) पर आधारित है. लेकिन अधिकांश मामलों में सदस्य देशों की राय बंटी हुई होती है. रिपोर्ट के अनुसार, आंतरिक राजनीतिक मतभेद और क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा OIC की निर्णय क्षमता को कमजोर कर देते हैं.
इजरायल और चीन के साथ संबंधों ने घटाई धार
OIC के कई सदस्य देशों के अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ गहरे रणनीतिक और आर्थिक संबंध हैं. यूएई, बहरीन और तुर्किये जैसे देश इजरायल के साथ अपने रिश्ते सुधारने में लगे हैं. इसी कारण गाजा में इजरायल द्वारा किए गए आक्रमण के खिलाफ़ ये देश खुलकर सामने नहीं आते. रिपोर्ट में बताया गया कि 2023 से अब तक OIC ने इजरायल के खिलाफ़ 31 प्रस्ताव पारित किए हैं, लेकिन सभी नतीजा विहीन रहे.
वहीं, चीन पर कई मुस्लिम देशों की आर्थिक निर्भरता के कारण OIC उइगरों के मुद्दे पर भी मजबूरन चुप्पी साधे हुए है. यह सब दर्शाता है कि यह संगठन अब मुस्लिम हितों की रक्षा के बजाय राजनीतिक मजबूरियों में जकड़ा हुआ है.


