पाकिस्तान का फिर हो सकता है बंटवारा! बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में विरोध के बाद उठी आवाज
पाकिस्तान में सरकार छोटे प्रांत बनाकर प्रशासन सुधारने की योजना पर काम कर रही है, लेकिन बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में तनाव और राजनीतिक मतभेद बढ़ रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि नए प्रांत समाधान नहीं, बल्कि संकट और बढ़ा सकते हैं.

नई दिल्लीः पाकिस्तान में एक बार फिर विभाजन शब्द चर्चा में है, लेकिन इस बार मुद्दा ऐतिहासिक 1971 की तरह देश के बंटवारे का नहीं, बल्कि देश को और छोटे प्रशासनिक हिस्सों में बांटने का है. मौजूदा सरकार नए प्रांतों के गठन की योजना पर तेजी से आगे बढ़ती दिखाई दे रही है, जिसने देश के भीतर राजनीतिक बहस को तेज कर दिया है.
नए प्रांत बनाने पर सरकार का रुख
रविवार को पाकिस्तान के संघीय संचार मंत्री अब्दुल अलीम खान ने स्पष्ट किया कि देश में छोटे प्रांत निश्चित रूप से बनाए जाएंगे. उनका तर्क है कि इससे प्रशासनिक नियंत्रण बेहतर होगा और जनता तक सेवाएं पहुंचाना आसान हो जाएगा.
हाल के सेमिनारों, टीवी डिबेट्स और राजनीतिक चर्चाओं में भी इस विचार को लेकर चर्चा बढ़ी है. इस्तेहकाम-ए-पाकिस्तान पार्टी (आईपीपी) के नेता अब्दुल अलीम खान ने एक सम्मेलन में कहा कि प्रत्येक बड़े प्रांत पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है. उन्होंने कहा कि हमारे आसपास के देशों में कई छोटे प्रांत हैं, जिससे प्रशासन आसान होता है.
मौजूदा तनाव
1947 में स्वतंत्रता के समय पाकिस्तान में पाँच प्रांत थे, लेकिन 1971 में पूर्वी बंगाल के अलग होने के बाद चार मुख्य प्रांत ही बचे. वर्षों से इन प्रांतों के विभाजन की चर्चा होती रही है, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. यह ताजा पहल ऐसे समय में आई है जब बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में अलगाववादी भावना और राजनीतिक अस्थिरता बढ़ रही है. सेना प्रमुख असीम मुनीर और पीएम शहबाज शरीफ की सरकार के लिए यह स्थिति बड़ी चुनौती बना हुआ है.
राजनीतिक मतभेद गहराए
आईपीपी और एमक्यूएम-पी जैसे दल नए प्रांतों के गठन के समर्थन में हैं. एमक्यूएम-पी ने तो घोषणा की है कि वह इसे लागू कराने के लिए सभी संवैधानिक व लोकतांत्रिक तरीकों का इस्तेमाल करेगी. हालांकि, यह कदम सर्वसम्मति से समर्थित नहीं है. पीपीपी, जो शहबाज सरकार का बड़ा घटक है, खास तौर पर सिंध के विभाजन का लंबे समय से विरोध करती आई है. सिंध के मुख्यमंत्री मुराद अली शाह पहले ही साफ कर चुके हैं कि वे प्रांत को तीन हिस्सों में बांटने के किसी भी प्रयास को स्वीकार नहीं करेंगे.
विशेषज्ञों की चेतावनी
कई विशेषज्ञों का मानना है कि नए प्रांत बनाना पाकिस्तान के मौजूदा संकटों को हल करने की बजाय बढ़ा सकता है. सीनियर नौकरशाह सैयद अख्तर अली शाह के अनुसार, पाकिस्तान की समस्या प्रांतों की संख्या नहीं, बल्कि कमजोर संस्थाएं, खराब कानून-व्यवस्था और अप्रभावी स्थानीय शासन है. उन्होंने लिखा कि सिर्फ प्रांतों की संख्या बढ़ाने से असल प्रशासनिक और विधिक कमियों का समाधान नहीं होगा, बल्कि असमानताएं और बढ़ सकती हैं.
दूसरी ओर, थिंक टैंक पिलदात के प्रमुख अहमद बिलाल महबूब का कहना है कि नए प्रांतों को बनाना एक महंगा और जटिल प्रशासनिक प्रयास होगा. उन्होंने सुझाव दिया कि भारत की तरह मजबूत स्थानीय निकाय व्यवस्था प्रांतों के आकार से ज्यादा कारगर साबित हो सकती है.


