आरक्षित सीटों ने पीओके में छेड़ा तूफान, शाहबाज शरीफ की हुकूमत कांपी और सड़कों पर बगावत गूंजी
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं। आरक्षित सीटें खत्म करने की मांग ने शाहबाज शरीफ की सरकार को मुश्किल में डाल दिया है। प्रवासी और स्थानीय आमने-सामने हैं।

International News: पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हालात बिगड़ते जा रहे हैं। पब्लिक एक्शन कमेटी ने 38 मांगें रखी हैं। इनमें सबसे बड़ी मांग विधानसभा में प्रवासी लोगों के लिए आरक्षित 12 सीटें खत्म करने की है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि यह सीटें लोकतंत्र के साथ अन्याय करती हैं। उनका कहना है कि असली हक स्थानीय लोगों को मिलना चाहिए। यही वजह है कि राजधानी मुजफ्फराबाद में विरोध और तेज हो रहा है। पीओके विधानसभा में कुल 53 सीटें हैं। सरकार बनाने के लिए 27 सीटों की जरूरत पड़ती है। ऐसे में 12 आरक्षित सीटें सत्ता का खेल तय कर देती हैं।
जिस भी पार्टी को यह सीटें मिलती हैं, वही सरकार बना लेती है। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि इस वजह से प्रवासी समुदाय जरूरत से ज्यादा ताकतवर हो गया है। लोग चाहते हैं कि अब यह व्यवस्था खत्म हो और केवल स्थानीय लोग ही सत्ता तय करें।
शरीफ सरकार पर दबाव
प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ पर हालात काबू करने का दबाव बढ़ता जा रहा है। उन्होंने मंत्रियों और नेताओं की कमेटी भेजकर हालात संभालने की कोशिश की है। लेकिन प्रदर्शन कम होने के बजाय और बढ़ते जा रहे हैं। खबर है कि सेना को भी सतर्क रहने का आदेश दिया गया है। शरीफ खुद कह चुके हैं कि वे सीधा एक्शन लेंगे। लेकिन इस मामले में उनका हर कदम किसी न किसी वर्ग को नाराज़ कर सकता है।
प्रवासी समुदाय का विरोध
दूसरी तरफ प्रवासी नेता आरक्षित सीटें खत्म करने के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि ये सीटें उन्हें बंटवारे के वक्त दी गई थीं। इन्हें खत्म करना उनके साथ धोखा होगा। प्रवासी समुदाय का मानना है कि वे भी पीओके का हिस्सा हैं और उन्हें भी राजनीतिक हक मिलना चाहिए। उन्होंने साफ चेतावनी दी है कि अगर सीटें छीनी गईं, तो वे अलग से बड़ा आंदोलन करेंगे। इससे सरकार और मुश्किल में फंस जाएगी।
पीओके की जमीनी हकीकत
राजनीति से अलग, पीओके के लोगों की जिंदगी काफी कठिन है। विकास की योजनाएं यहां बहुत धीमी चलती हैं। भारत की सीमा पर होने की वजह से हमेशा तनाव रहता है। लोगों को रोजगार और बुनियादी सुविधाएं भी सही से नहीं मिलतीं। यही गुस्सा अब आंदोलन में दिख रहा है। एक्शन कमेटी ने इन्हीं हालात को मुद्दा बनाया है। इसीलिए लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर उतर आए हैं।
प्रदर्शन रुकने के आसार नहीं
एक्शन कमेटी के नेता शौकत नवाज़ मीर साफ कह चुके हैं कि जब तक मांगें पूरी नहीं होंगी, आंदोलन जारी रहेगा। राजधानी मुजफ्फराबाद में शव रखकर भी प्रदर्शन शुरू कर दिए गए हैं। इससे गुस्से की गंभीरता साफ झलकती है। दूसरी ओर प्रवासी भी अल्टीमेटम दे चुके हैं। ऐसे में सरकार दोनों तरफ से घिर गई है। नतीजा यह है कि हालात और ज्यादा विस्फोटक होते जा रहे हैं।
सरकार के लिए फंसा खेल
2017 की जनगणना बताती है कि पीओके में 25 लाख प्रवासी और 27 लाख स्थानीय लोग रहते हैं। यानी दोनों की संख्या लगभग बराबर है। अगर सीटें रहती हैं तो स्थानीय लोग नाराज़ होंगे, और अगर खत्म होती हैं तो प्रवासी भड़क जाएंगे। शरीफ सरकार के लिए हर कदम जोखिम भरा है। यही वजह है कि सरकार आगे बढ़ने से डर रही है। लेकिन बवाल इतना बढ़ गया है कि अब पीछे हटना भी नामुमकिन हो चुका है।


