बांग्लादेश में फिर सड़कों पर उतरा Gen-Z, शेख हसीना के पतन के बाद ढहेगी यूनुस की 'लंका'?
भारत के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में हाल ही में हुए एक छोटे से नीतिगत बदलाव ने अब एक बड़े सांस्कृतिक आंदोलन का रूप ले लिया है. देश के कई प्रमुख विश्वविद्यालयों में छात्र और शिक्षक अब केवल वेतन या राजनीतिक सुधार की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे सड़कों पर उतरकर अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के खिलाफ विरोध जता रहे हैं. उनका कहना है कि यह आंदोलन किसी राजनीतिक मुद्दे के लिए नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति और पहचान की रक्षा के लिए है.

नई दिल्ली: भारत के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में हाल ही में हुए एक छोटे से नीतिगत बदलाव ने अब एक बड़े सांस्कृतिक आंदोलन का रूप ले लिया है. देश के कई प्रमुख विश्वविद्यालयों में छात्र और शिक्षक अब केवल वेतन या राजनीतिक सुधार की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे सड़कों पर उतरकर अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के खिलाफ विरोध जता रहे हैं. उनका कहना है कि यह आंदोलन किसी राजनीतिक मुद्दे के लिए नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति और पहचान की रक्षा के लिए है.
शिक्षकों और छात्रों का बड़ा आरोप
दरअसल, शेख हसीना के पतन के बाद बनी यूनुस सरकार ने प्राथमिक विद्यालयों से संगीत और शारीरिक शिक्षा शिक्षकों की नियुक्ति रद्द कर दी है. सरकार का कहना है कि यह फैसला वित्तीय और प्रशासनिक कारणों से लिया गया है, लेकिन शिक्षकों और छात्रों का आरोप है कि सरकार ने यह कदम कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों के दबाव में उठाया है, जो इन विषयों को गैर-इस्लामी मानते हैं.
#DhakaLockDown
— Himalaya 🇧🇩 (@Himalaya1971) November 10, 2025
This is a scene from today’s procession of the Dhaka South Chhatra League.
See the love and support of the general public for us.#RestoreDemocracy #YunusMustGo pic.twitter.com/tvJWcqpuE3
आंदोलन का मुख्य केंद्र ढाका विश्वविद्यालय
ढाका विश्वविद्यालय इस आंदोलन का मुख्य केंद्र बन गया है. सैकड़ों छात्र और शिक्षक ओपोराजेयो बांग्ला प्रतिमा के नीचे इकट्ठा होकर राष्ट्रगान और 1971 के मुक्ति संग्राम के गीत गा रहे हैं. एक बैनर पर लिखा था- 'आप स्कूलों में संगीत बंद कर सकते हैं, लेकिन बांग्लादेशियों के दिलों को नही'. यही भावना अब चटगाँव, राजशाही और जगन्नाथ विश्वविद्यालयों में भी फैल चुकी है, जिससे यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया है.
'संगीत हमारी सभ्यता की जड़ है'
इस आंदोलन की अगुवाई कला, संगीत और मानविकी संकाय के छात्र कर रहे हैं. ढाका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर इसराफिल शाहीन का कहना है कि संस्कृति कभी धर्म के खिलाफ नहीं होती, बल्कि वही हमारी राष्ट्रीय पहचान को गढ़ती है. उनके मुताबिक, 'संस्कृति के बिना शिक्षा खोखली हो जाती है'. वहीं, संगीत शिक्षक अजीज़ुर रहमान तुहिन ने कहा कि संगीत हमारी सभ्यता की जड़ है.
'विरासत मिटाने का खतरा'
सरकार फिलहाल अपने फैसले पर अडिग है, जबकि हिफाजत-ए-इस्लाम और इस्लामी आंदोलन बांग्लादेश जैसे संगठन धार्मिक शिक्षकों की पैरवी कर रहे हैं. विरोधियों का कहना है कि सरकार ने चरमपंथी ताकतों के आगे झुकाव दिखाया है. जगन्नाथ विश्वविद्यालय के गायक शायन ने कहा कि यह सिर्फ बजट या नीति का मामला नहीं, बल्कि हमारी पहचान का सवाल है. धर्म को संस्कृति के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषक रफीक हसन का मानना है कि बांग्लादेश की नींव सांस्कृतिक क्रांति से हुई थी. उन्होंने आगे कहा कि अब आस्था की आड़ में उसकी विरासत मिटाने का खतरा है.


