मौत की खुदाई... 50 जिंदा दफन! सूडान में सोने की खदान के नीचे कौन सा काला रहस्य छिपा है?
पूर्वी सूडान में एक सोने की खदान ढहने से करीब 50 मज़दूरों की मौत हो गई है। इस त्रासदी के पीछे अवैध खनन, असुरक्षित प्रथाओं और युद्ध से प्रेरित अर्थव्यवस्था की एक धुंधली दुनिया छिपी हुई है।

International News: पूर्वी सूडान के हूइद इलाके में स्थित एक अवैध सोने की खदान उस वक़्त ढह गई जब दर्जनों मजदूर उसमें खुदाई कर रहे थे। हादसे में करीब 50 मजदूर मारे गए और कई घायल हुए। बचाव कार्य घंटों देरी से शुरू हुआ क्योंकि वहां कोई मशीन या प्रोफेशनल रेस्क्यू टीम मौजूद नहीं थी। यह जगह लंबे समय से अनियमित खनन के लिए कुख्यात रही है। मृतकों के परिजन रेत में दबे शवों को खुद नंगे हाथों से निकालते रहे। सरकार अब जांच और घेराबंदी की बात कर रही है।
अनियमित खनन, अनगिनत लाशें
यह खदान सूडान में फैली हजारों अनौपचारिक खदानों का हिस्सा थी, जो बिना किसी सुरक्षा मानक के चल रही हैं। यहां सालाना 30 टन से अधिक सोना निकाला जाता है, लेकिन बिना किसी वैध सुरक्षा उपायों के। गरीब ग्रामीण जोखिम उठाकर इन खदानों में मजदूरी करते हैं। स्थानीय संगठनों का मानना है कि हर साल सैकड़ों लोग ऐसे हादसों में मारे जाते हैं, लेकिन आंकड़े छिपा दिए जाते हैं। सरकार की लापरवाही ने इस मौत के व्यापार को पनपने दिया है।
बचाव नहीं, बस बर्बादी
जब खदान ढही, तब मौके पर कोई बचाव टीम नहीं थी। बचे मजदूरों ने बताया कि उन्होंने नंगे हाथों से मिट्टी हटाकर अपने साथियों को बाहर निकाला। भारी उपकरण और तकनीकी मदद के अभाव में राहत कार्य देरी से हुआ। सूडान की आपदा प्रतिक्रिया प्रणाली गृहयुद्ध और संसाधन की कमी से जर्जर हो चुकी है। इस त्रासदी में सरकार की तैयारी की पोल खुल गई है। मृतकों में कई युवा और एक ही गांव के परिवार थे।
ये पहली बार नहीं था
इसी खदान में दो महीने पहले भी हादसा हुआ था, लेकिन तब भी सरकार ने कोई सख़्त कदम नहीं उठाया। कोई निरीक्षण, कोई सुधार नहीं किए गए। खनिज मंत्रालय पर निष्क्रियता का आरोप है। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने भी श्रमिक सुरक्षा में लापरवाही को लेकर चेतावनी दी थी। पर हर चेतावनी हवा में उड़ाई गई। खदानों का यह ‘डेथ ट्रैप’ फिर खुला और कई ज़िंदगियां लील गया।
सोने पर विदेशी साया
सूडान का सोना सिर्फ उसका नहीं, अब वैश्विक व्यापार का हिस्सा बन चुका है। रिपोर्टों के मुताबिक, इस देश का अधिकांश सोना यूएई भेजा जाता है। कार्यकर्ताओं का आरोप है कि खाड़ी देशों के हित इस युद्धग्रस्त देश में खनिज नियंत्रण को लेकर हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं। सोना अब हथियार की तरह इस्तेमाल हो रहा है। मजदूरों की जान के बदले, वैश्विक ताकतों को मुनाफा मिल रहा है।
चेतावनी नहीं, ज़िम्मेदारी दो
घटना के बाद कंपनी ने खनन रोकने और अवैध मज़दूरों को चेतावनी देने की बात कही। लेकिन ऐसी चेतावनियां पहले भी दी जाती रही हैं। कोई स्थायी नीति नहीं बनाई गई। पीड़ितों के परिवार मुआवज़े और सज़ा की मांग कर रहे हैं। लेकिन सरकार की तरफ से अब तक सिर्फ जांच समिति का वादा है। सवाल यह है कि क्या इस बार कुछ बदलेगा या फिर एक और चेतावनी से बात टाल दी जाएगी?
लालच की रेत में दबी ज़िंदगियां
हर बार की तरह इस बार भी हादसे के बाद सन्नाटा है। सूडान की खदानें आज भी सस्ती मज़दूरी और खून में सना सोना उगल रही हैं। यह सोना कभी अमीरों के गहनों में सजता है, तो कभी सत्ता के खज़ानों में भरता है। लेकिन इसकी क़ीमत चुकाते हैं वो मज़दूर, जो हर रोज़ मौत की खुदाई करते हैं। जब तक सिस्टम नहीं बदलेगा, तब तक रेत में सिर्फ सोना नहीं, इंसान भी दफन होते रहेंगे।


