पृथ्वी पर आने वाला है ग्लोबल वॉर्मिंग का संकट! नेपाल में ग्लेशियर की मौत से चिंता में वैज्ञानिक
नेपाल के लांगटांग क्षेत्र में स्थित याला ग्लेशियर को मृत घोषित किया गया, जो एशिया में इस प्रकार की पहली घटना है और दुनिया में तीसरी बार हुआ है. इस घटना का मातम मनाने के लिए नेपाल के वैज्ञानिकों के साथ-साथ भारत, चीन और भूटान के ग्लेशियोलॉजिस्ट भी शामिल हुए.

नेपाल में हाल ही में एक बेहद अनोखी मौत हुई, जिसे एशिया में पहली बार और दुनिया में तीसरी बार दर्ज किया गया है. इस घटना ने पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को लेकर एक गंभीर सवाल खड़ा किया है. नेपाल के लांगटांग क्षेत्र में स्थित याला ग्लेशियर को मृत घोषित किया गया, और इस दुर्लभ घटना का मातम मनाने के लिए नेपाल के वैज्ञानिकों के साथ-साथ भारत, चीन और भूटान के ग्लेशियोलॉजिस्ट भी शामिल हुए.
याला ग्लेशियर की मौत
नेपाल के लांगटांग क्षेत्र में समुद्रतल से 5100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित याला ग्लेशियर को मृत घोषित किया गया. यह घटना एशिया में अपने प्रकार की पहली घटना मानी जा रही है. इसके पहले, दो अन्य ग्लेशियरों की मौत हो चुकी है - 2019 में ओक ग्लेशियर (आसलैंड) और 2021 में आयोलोको ग्लेशियर (मेक्सिको). याला ग्लेशियर की मौत को लेकर शोक सभा आयोजित की गई, जिसमें नेपाल के स्थानीय लोगों के साथ भारतीय, चीनी और भूटानी वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया.
ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रभाव
याला ग्लेशियर की मौत का प्रमुख कारण ग्लोबल वॉर्मिंग बताया जा रहा है. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण ग्लेशियरों का पिघलना और सिकुड़ना आम हो गया है. याला ग्लेशियर 1970 के बाद से 66 प्रतिशत सिकुड़ चुका था और 784 मीटर पीछे खिसक चुका था. इस ग्लेशियर में अब कोई जरूरी बर्फ नहीं बची थी, जिससे इसे मृत घोषित किया गया.
किसे हुई यह मौत और क्यों है यह महत्वपूर्ण?
यह घटना न केवल वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे अस्तित्व से जुड़ी हुई है. हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियरों का पिघलना और समाप्त होना पानी की आपूर्ति और पर्यावरणीय संकट के लिए गंभीर खतरे का संकेत है. अगर इस प्रकार की घटनाएँ लगातार होती रहीं, तो इससे पानी की कमी, सूखा, और समुद्र स्तर में वृद्धि जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जो मानव जीवन के लिए खतरे का कारण बन सकती हैं.
दुनिया के ग्लेशियरों की मौतें और भविष्य की चिंता
वैज्ञानिकों के अनुसार, हिमालय क्षेत्र के लगभग 54,000 ग्लेशियरों में से अधिकांश इस सदी के अंत तक समाप्त हो सकते हैं. इससे पहले, ओक और आयोलोको ग्लेशियरों की मौत के साथ-साथ यह तीसरी घटना थी. इन ग्लेशियरों के समाप्त होने से कई क्षेत्रों में पानी की भारी कमी हो सकती है, जो लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करेगा. वर्तमान में, ग्लेशियरों से 9 ट्रिलियन टन बर्फ पिघलने का अनुमान है, जो आने वाले वर्षों में और अधिक बढ़ सकता है.
अंतिम संस्कार और शोक सभा में हिस्सा लेना
याला ग्लेशियर की मृत्यु पर शोक मनाने के लिए नेपाल में वैज्ञानिकों और स्थानीय लोगों ने एक कठिन ट्रैक के बाद इस कार्यक्रम में भाग लिया. यह कार्यक्रम ग्लेशियरों की जीवन के महत्व को समझाने और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरों के प्रति जागरूकता फैलाने का एक प्रयास था.
ग्लोबल वॉर्मिंग का बढ़ता खतरा
याला ग्लेशियर की मौत ने एक बार फिर से ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को उजागर किया है. अगर इस समस्या को हल नहीं किया गया, तो आने वाले दशकों में और अधिक ग्लेशियरों की मौत हो सकती है, जिससे कई प्राकृतिक संकट उत्पन्न हो सकते हैं. इससे न केवल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझने की आवश्यकता है, बल्कि इससे बचने के लिए कदम उठाने की भी सख्त जरूरत है.