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रूस को क्यों था नाटो का डर, इजराइल को क्यों है ईरान का खौफ

दुनियाभर के दो प्रमुख संघर्ष रूस‑यूक्रेन और इजराइल‑ईरान में ‘डर’ या ‘फियर फैक्टर’ ने निर्णायक भूमिका निभाई. रूस ने नाटो के विस्तार के डर से फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमला किया, जबकि इज़राइल को ईरान के परमाणु हथियार हासिल करने का खौफ है.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

हाल के तीन वर्षों में दुनिया दो बड़े संघर्षों में उलझी रही रूस-यूक्रेन और इजरायल-ईरान. दोनों ही मामलों में “डर” या ‘फियर फैक्टर’ ने निर्णायक भूमिका निभाई. एक तरफ नाटो में यूक्रेन के प्रवेश की आशंका, दूसरी ओर ईरान के परमाणु हथियार विकसित करने का खौफ, इन दोनों ही वजहों ने युद्ध की आग भड़काई.

इन संघर्षों ने वैश्विक ऊर्जा संकट से लेकर भू-राजनीतिक समीकरणों तक को हिला कर रख दिया. तेल की कीमतों में उछाल, आर्थिक अस्थिरता और मानवीय संकट इन जंगों के साइड इफेक्ट्स हैं, जिनका असर भारत समेत पूरी दुनिया पर पड़ा.

रूस-यूक्रेन संघर्ष का मूल

रूस ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमला उस समय किया, जब उसे लगा कि कीव नाटो का सदस्य बन सकता है. मास्को का डर था कि नाटो के विस्तार से अमेरिकी सैन्य शक्ति उसकी सीमा तक पहुंचेगी. “यूक्रेन की नाटो में एंट्री हमारे लिए अस्वीकार्य है. हमें सीमा सुरक्षा की गारंटी चाहिए,” रूसी अधिकारियों ने बार-बार कहा. यूक्रेन की ओर से नाटो में शामिल होने की मंशा ने तनाव और बढ़ाया, अंततः छह दशक पुरानी शीत युद्ध की परतें फिर सक्रिय हो उठीं.

गाजा से तेहरान तक: परमाणु वारिस का खौफ

हमास ने 7 अक्टूबर 2023 को इजरायल पर घातक हमला किया, जिसके जवाब में इजरायल ने गाजा पट्टी पर बमबारी की और अब ईरान-इजरायल जंग छिड़ गई है. इजरायल के भय का केंद्र है—ईरान का परमाणु हथियार हासिल कर लेना. “अगर ईरान के पास बम आया, तो मध्य पूर्व में संतुलन बिखर जाएगा,” इजरायली रक्षा सूत्रों का कहना है.

ईरान-चीन-रूस के समीकरण ने अमेरिका को चिंतित कर रखा है. तेहरान के परमाणु समृद्ध होने पर वे चीन-रूस के खेमे में चले जाएंगे, जिससे अमेरिका की क्षेत्रीय पकड़ कमजोर होगी.

फियर फैक्टर की राजनीति और प्रभाव

इन दोनों ही युद्धों में ‘डर’ ने निर्णय प्रणालियों को प्रभावित किया. रूस-यूक्रेन में रूसी नेतृत्व का नाटो-विस्तार से डर, इजरायल-ईरान संघर्ष में परमाणु हथियारों का डर दोनों ने सैन्य विकल्पों को वैध कर दिया.

ऊर्जा संकट: युद्ध की वजह से तेल की कीमतें बढ़ीं, जिससे फलसफा प्रभावित देशों में महंगाई दर उछली.

आर्थिक अस्थिरता: निवेश से लेकर व्यापार तक सब पर संकट आया, बीते वर्षों में कई अर्थव्यवस्थाएं डगमगा गईं.

मानवीय संकट: इन ने हजारों नागरिकों की जान ली और लाखों को विस्थापित किया.

आगे का रास्ता: डर को कैसे मात दें?

विश्लेषकों का मानना है कि ‘फियर फैक्टर’ को खत्म किए बिना स्थायी शांति असंभव है. इसके लिए:

विश्वसनीय सुरक्षा गारंटियां: नाटो‑रूस वार्ता जैसे मंच सक्रिय हों, ताकि विस्तार के डर को हल किया जा सके.

पारदर्शी परमाणु वार्ता: परमाणु समृद्धि कार्यक्रमों पर अंतरराष्ट्रीय निगरानी से विश्वास कायम हो.

बहुपक्षीय कूटनीति: क्षेत्रीय और ग्लोबल फोरम्स में शामिल हर पक्ष को शांति प्रक्रिया में जगह मिले.

डर जितना फैलता है, युद्ध की सम्भावनाएं उतनी ही बढ़ती हैं. इसे कम करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और वैचारिक बहुलता दोनों जरूरी हैं.

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17 June 2025, 01:43 PM IST

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