पाकिस्तान में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर संकट, संयुक्त राष्ट्र ने जताई कड़ी चिंता
पाकिस्तान में किए गए एक संविधान संशोधन ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी चिंता का माहौल पैदा कर दिया है. UNHRC के उच्चायुक्त वोल्कर तुर्क ने एक आधिकारिक बयान जारी कर स्पष्ट किया कि पाकिस्तान का नया संशोधन कई स्तरों पर खतरा पैदा करता है.

पाकिस्तान में लोकतंत्र की स्थिति को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं, लेकिन हाल ही में किए गए एक संविधान संशोधन ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी चिंता का माहौल पैदा कर दिया है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (UNHRC) ने इस संशोधन पर गंभीर आपत्तियां जताते हुए कहा है कि यह न केवल पाकिस्तान की न्यायिक व्यवस्था को कमजोर कर सकता है, बल्कि लोकतांत्रिक ढांचे और मानवाधिकारों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है.
वोल्कर तुर्क का जारी बयान
UNHRC के उच्चायुक्त वोल्कर तुर्क ने एक आधिकारिक बयान जारी कर स्पष्ट किया कि पाकिस्तान का नया संशोधन कई स्तरों पर खतरा पैदा करता है. उनके अनुसार, यह कदम न्यायपालिका की स्वायत्तता पर असर डाल सकता है और अदालतों को कार्यपालिका के प्रभाव में आने का रास्ता खोल सकता है. उन्होंने कहा कि यदि न्यायिक संस्थाएं राजनीतिक प्रभाव में आएंगी, तो कानून के शासन और निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करना मुश्किल हो जाएगा.
तुर्क ने चेतावनी देते हुए कहा कि 26वें संशोधन के बाद न्यायपालिका पर राजनीतिक दखलअंदाजी बढ़ने का खतरा है. ऐसे बदलाव न्यायालयों की भूमिका को सीमित कर सकते हैं और न्यायाधीशों को कार्यपालिका के दबाव में निर्णय लेने की स्थिति में ला सकते हैं. उनका कहना है कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में न्यायपालिका को स्वतंत्र रखना बेहद जरूरी है, क्योंकि यही संस्था नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती है और कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करती है.
क्या है 26वां संविधान संशोधन?
अब सवाल उठता है कि आखिर यह 26वां संविधान संशोधन है क्या? पाकिस्तान सरकार ने 13 नवंबर को किए गए इस संशोधन के तहत संघीय संवैधानिक अदालत (Federal Constitutional Court – FCC) की स्थापना की घोषणा की. विश्लेषकों का मानना है कि यह नया ढांचा सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को सीमित कर सकता है. आशंका जताई जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट को सिविल और क्रिमिनल मामलों तक सीमित कर, संवैधानिक मामलों में FCC को सर्वोच्च अधिकार देने की तैयारी की जा रही है. यदि ऐसा होता है तो देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था की शक्ति काफी हद तक घट सकती है.
अंतरराष्ट्रीय जगत में पाकिस्तान के इस कदम को न्यायिक ढांचे में हस्तक्षेप के रूप में देखा जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि ऐसे संशोधन लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों न्यायिक स्वतंत्रता, जवाबदेही और कानून का शासन को कमजोर कर सकते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पाकिस्तान ने इस दिशा में सावधानी नहीं बरती तो इससे न्याय व्यवस्था और नागरिक अधिकारों पर दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.


