कौन हैं MQM नेता अल्ताफ हुसैन, जिसने PM मोदी से मांगी मुहाजिरों के लिए मदद?
Altaf Hussain: पाकिस्तान की सियासत में कभी कराची के भाई कहे जाने वाले MQM प्रमुख अल्ताफ हुसैन एक बार फिर सुर्खियों में हैं. लंदन में निर्वासन झेल रहे हुसैन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है कि पाकिस्तान में रह रहे मुहाजिरों की मदद की जाए, जो दशकों से भेदभाव और उत्पीड़न का शिकार हैं.

Altaf Hussain: पाकिस्तान की सियासत में एक ऐसा नाम, जो कभी कराची की फिजाओं पर हुकूमत करता था और जिसे लोग 'भाई' कहकर पुकारते थे वो हैं मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (MQM) के संस्थापक अल्ताफ हुसैन. हाल ही में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक भावनात्मक अपील की है, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान में रह रहे मुहाजिरों के उत्पीड़न को उठाते हुए भारत से सहायता की मांग की है.
लंदन में निर्वासित जीवन जी रहे अल्ताफ हुसैन ने मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा है कि वह मुहाजिरों की आखिरी उम्मीद हैं. 1992 से लंदन में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हुसैन ने 1986 में MQM की स्थापना की थी, जो मूल रूप से 'मुहाजिर कौमी मूवमेंट' थी. परंतु अलगाववादी छवि के आरोपों से बचने के लिए पार्टी ने मुत्ताहिदा शब्द को अपना लिया.
भारतीय जड़ों से जुड़े अल्ताफ हुसैन का सफर
अल्ताफ हुसैन का जन्म 17 सितंबर 1953 को कराची में हुआ था. उनके पिता नाजिर हुसैन मूल रूप से आगरा के नाई की मंडी इलाके से थे और भारत के रेलवे विभाग में अधिकारी थे. भारत-पाक विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया, हालांकि शुरुआत में वे जाने को तैयार नहीं थे. पाकिस्तान में शुरूआती दौर में मुहाजिरों को कोई खास दिक्कत नहीं हुई. वे पढ़े-लिखे थे और शहरी इलाकों में अच्छी स्थिति में रहे.
कराची में भाई का खौफ
एक दौर में अल्ताफ हुसैन का कराची में इतना दबदबा था कि कहा जाता है, उनकी इजाजत के बिना वहां पत्ता भी नहीं हिलता था. MQM का प्रभाव कराची और सिंध के शहरी इलाकों में गहराई से फैला हुआ था. 2018 तक पाकिस्तान की राजनीति में उनका खासा असर रहा. हालांकि, हाल के वर्षों में उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है, लेकिन मुहाजिर समुदाय के बीच वे आज भी एक सशक्त आवाज माने जाते हैं.
मुहाजिरों का दर्द और पहचान की जंग
विभाजन के बाद पाकिस्तान पहुंचे उर्दू भाषी मुसलमानों को 'मुहाजिर', 'पनाहगुज़ीर' या 'हिंदुस्तानी' कहा गया. कराची और हैदराबाद में उन्होंने एक अलग पहचान बनाई. शुरुआती वर्षों में उन्हें सरकारी नौकरियों और शिक्षा के क्षेत्र में अच्छी भागीदारी मिली. लियाकत अली खान जैसे नेता, जो खुद मुहाजिर थे, देश के पहले प्रधानमंत्री बने.
परंतु 1960 के दशक से हालात बदलने लगे. जनरल अयूब खान, जो एक पठान थे, ने सत्ता संभाली और कराची से राजधानी को इस्लामाबाद स्थानांतरित कर दिया. इससे मुहाजिरों का राजनीतिक वर्चस्व टूट गया. उर्दू बोलने को लेकर भी उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा और धीरे-धीरे उनका दायरा सीमित होता चला गया.
पाकिस्तान में सताए गए मुहाजिरों की आवाज
अल्ताफ हुसैन वर्षों से यह मुद्दा उठाते आ रहे हैं कि मुहाजिरों को पाकिस्तान में बराबरी का दर्जा नहीं मिल रहा. उन्होंने कहा, "हमें बलूच, सिंधी, पंजाबी और पश्तून की तरह एक अलग पहचान दी जानी चाहिए." MQM ने बार-बार आरोप लगाया है कि मुहाजिरों को पाकिस्तान में दूसरे दर्जे का नागरिक माना जाता है और सत्ता में उनकी भागीदारी नगण्य होती जा रही है.
सिंध में MQM का मजबूत आधार
MQM की राजनीति सिंध प्रांत, खासकर कराची और हैदराबाद में गहराई से जमी रही है. यहां रहने वाले मुहाजिरों ने पार्टी को भारी समर्थन दिया. हालांकि पार्टी पर कई बार आतंक, जबरन वसूली और अलगाववाद के आरोप भी लगे. यही वजह रही कि पार्टी को अपने नाम में बदलाव करना पड़ा.
अब भारत से मदद की आस
हाल ही में अल्ताफ हुसैन ने कहा, "मोदी जी, हम भी हिन्दुस्तान से हैं. हमारे बुजुर्ग वहीं से आए थे. पाकिस्तान में हम पर जुल्म हो रहा है, हमारी मदद कीजिए." उनकी इस अपील के पीछे वर्षों से चला आ रहा वह दर्द है, जो एक पूरे समुदाय ने झेला है.


