क्या बिगड़ते रहेंगे अफगान–पाक रिश्ते? तालिबान ने ठुकराई गारंटी, चमन बॉर्डर पर ड्रोन हमले और फायरिंग से बढ़ा तनाव
तुर्की में पाकिस्तान और अफगान तालिबान की शांति वार्ता विफल हो गई. पाकिस्तान ने सीमापार आतंकवाद पर लिखित गारंटी मांगी, जिसे तालिबान ने ठुकरा दिया. इसी दौरान चमन बॉर्डर पर गोलीबारी से तनाव बढ़ा. ड्रोन अभियानों के आरोप और बढ़ती अविश्वास की खाई ने दोनों देशों के रिश्तों को और नाजुक बना दिया है.

नई दिल्लीः तुर्की के इस्तांबुल में पाकिस्तान और अफगान तालिबान के बीच हुई ताज़ा शांति वार्ता किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने साफ कहा कि बातचीत पूरी तरह असफल रही और निकट भविष्य में इसके दोबारा शुरू होने की संभावना बेहद कम है. दोनों देशों के बीच लंबे समय से चल रहे तनाव और सीमापार आतंकवाद के मुद्दे ने इस वार्ता की राह कठिन बना दी.
लिखित गारंटी पर अड़ी बात
सूत्रों के मुताबिक, बातचीत टूटने की सबसे बड़ी वजह यह रही कि पाकिस्तान ने तालिबान से सीमापार आतंकवाद को रोकने की लिखित गारंटी मांगी, जिसे तालिबान ने देने से मना कर दिया. रक्षा मंत्री आसिफ ने कहा कि तालिबान शासन “आतंकवाद को रोकने के लिए गंभीर नहीं है” और पाकिस्तानी सुरक्षा के लिए यह बड़ा खतरा है.
उनके अनुसार, वार्ता में शामिल मध्यस्थ देश अब इस विवाद से “थक चुके हैं” और नए प्रयास की उम्मीद बहुत कम बची है. आसिफ ने दोहराया कि पाकिस्तान अपनी सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के लिए हर आवश्यक कदम उठाएगा.
चमन बॉर्डर पर गोलीबारी
वार्ता असफल रहने के बीच पाकिस्तान–अफगानिस्तान सीमा पर तनाव की आग एक बार फिर भड़क उठी. इस हफ्ते चमन बॉर्डर पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच गोलीबारी हुई. अफगान सैन्य सूत्रों ने बताया कि पाकिस्तान ने हल्के और भारी हथियारों से नागरिक इलाकों को निशाना बनाया. अफगान पक्ष का दावा है कि उन्होंने इस्तांबुल वार्ता को देखते हुए जवाबी फायरिंग नहीं की.
वहीं पाकिस्तान ने इन आरोपों को पूरी तरह नकार दिया. इस्लामाबाद के अनुसार, फायरिंग की शुरुआत अफगानिस्तान की ओर से हुई और पाकिस्तान ने संयमित व जिम्मेदार जवाब दिया. पाकिस्तान के सूचना मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर बयान जारी करते हुए कहा कि अफगानिस्तान के बताए दावे तथ्यहीन हैं.
ड्रोन ऑपरेशन के आरोप
इससे पहले TOLO News की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पाकिस्तान ने अमेरिका को अपनी भूमि से ड्रोन अभियानों की अनुमति दी है. बताया गया कि यह मुद्दा तुर्की में हुई पिछली शांति वार्ता में भी उठा था, जिससे तालिबान की नाराज़गी बढ़ गई.
विशेषज्ञों का कहना है कि बातचीत विफल होने और सीमा पर बढ़ते तनाव ने इस्लामाबाद और काबुल के रिश्तों को और नाजुक बना दिया है. दोनों देश पहले ही सीमापार आतंकी गतिविधियों, टीटीपी (तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान) के खतरे और सीमा सुरक्षा को लेकर गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं.
रिश्तों पर संकट
इस्तांबुल वार्ता से उम्मीद थी कि दोनों पक्ष संवाद के माध्यम से झड़पों और हमलों को रोकने का रास्ता निकाल सकेंगे. लेकिन लिखित आश्वासन, ड्रोन विवाद और पारस्परिक अविश्वास ने बातचीत की जमीन खिसका दी. अब विशेषज्ञों का मानना है कि संबंधों में और तनाव आ सकता है, क्योंकि दोनों ही देश अपने-अपने सुरक्षा हितों के कारण सख्त रुख अपनाए हुए हैं. हालात न केवल क्षेत्रीय स्थिरता बल्कि मानवीय स्थिति को भी प्रभावित कर सकते हैं.


