कहीं गुम ना हो जाए गौरैया
वो सुहानी सुबह आपको याद होगी जब पक्षियों की चहचहाहट हमें रोमांचित कर देती थी। उनकी मधुर ध्वनि हमारे कानों में एक अलग तंरग सा काम करती थी। इनमें से ही एक पक्षी थी गौरैया, याद है न आपको।

वो सुहानी सुबह आपको याद होगी जब पक्षियों की चहचहाहट हमें रोमांचित कर देती थी। उनकी मधुर ध्वनि हमारे कानों में एक अलग तंरग सा काम करती थी। इनमें से ही एक पक्षी है गौरैया, याद है न आपको।
छोटी सी चिड़िया नजरों के सामने फुदकती रहती थी, हमारे घर-आंगन को गुलजार करने वाली ये चिडिया कहां गुम हो गईं। वो गौरैया जिसके बिना हमारे बचपन की यादें अधूरी हैं, आज वो कहीं खो सी गईं हैं। जिसकी चहचहाहट में प्रकृति का संगीत सुनाई देता था, प्रकृति का सौन्दर्य इन्हीं से तो है।
नन्हीं सी गौरैया की संख्या 60 से 80 फीसदी तक कम हो गई है। इस स्थिति को देखते हुए साल 2010 में 20 मार्च को पहली बार गौरैया दिवस मनाया गया। ताकि लोगों को इस पक्षी के संरक्षण के प्रति जागरूक किया जा सके।
लोगों के मकान बड़े होते चले गए। शहर-गांव के रास्ते भी चौड़े हो गए लेकिन बेजुबान जीवों के प्रति लोगों के दिलों में जगह कम होती चली गई।
गौरैया के गायब होने का सबसे बड़ा कारण है पेट्रोल से पैदा होने वाले मीथाइल नाइट्रेट जैसे यौगिक, जो उन कीड़ों मकोड़ों के लिए बहुत ज़हरीले होते हैं, जिन्हें गौरैयां चुगती हैं। खेतों और बगीचों में ऐसे कीटनाशकों का बढ़ता हुआ उपयोग, जो गौरैयों के बच्चों के लायक कीड़ों मकोड़ों को मार डालते हैं।
इसके साथ ही लोगों ने अपने आलीशान घरों में नन्हीं सी गौरैया के लिए जगह ही नहीं छोड़ी। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने गौरैया को बचाने के लिए हर कोशिशें की हैं।
लॉकडाउन में गौरैया के प्रति लोगों ने संवेदना दिखाई, गौरैया समेत कई पक्षी दाना-पानी के लिए घरों, परिसरों में मंडराने लगे थे। जहां उनकी कद्र हुई, वहां उन्होंने डेरा बना लिया। कई लोगों ने अपने घरों पर गौरैया के लिए आशियाना बना दिया।
वाराणसी के रहने वाले इंद्रपाल सिंह बत्रा ने अपने घर के हर एक दीवार को गौरैया के हवाले कर दिया है। वे अब चिडिय़ों के यहां रहने से लेकर उनके दाना पानी का पूरा इंतजाम करते हैं। इंद्रपाल सिंह बत्रा ने अपने पूरे मकान को चिडिय़ों का घोंसला बना दिया गया है।

एक-एक फीट की दूरी पर बनाए गए घोंसले चिडिय़ों का आवास बने हुए हैं। खास बात ये है कि इस मकान में चिडिय़ों का पूरा समूह रहता है। अलग-अलग घरों में ये अपना आसरा बनाकर चहकती रहती हैं।
इंद्रपाल ने गौरैया के लिए सारे इंतजाम किए हैं। पीने के लिए पानी तो खाने के लिए दानों का प्रबंध हर रोज बत्रा परिवार खुद करता है। घर की बाहरी दीवार से लेकर अंदरूनी दीवारों तक घोंसले बने हुए हैं।
इंद्रपाल सिंह बत्रा ने एक मिसाल कायम की है, लोगों को उन से सीख लेनी चाहिए। हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इतना खो गए हैं कि हम भूल ही गए हैं कि हम अपनी प्रकृति से ही दूर होते जा रहे हैं।

हम सबको नन्ही सी गौरैया को बचाने के लिए एक कदम बढ़ाना चाहिए। अपने घर आंगन में गौरैया के लिए दाना पानी डालते रहना चाहिए। ताकि नन्ही सी गौरैया हमारी घर पर सदा चहकती रहे। क्योंकि अगर पक्षी हैं जंगल हैं पेड़-पौधे हैं तभी हमारा अस्तित्व है।
हमारी जिम्मेदारी है हम विलुप्त होने की कगार पर खड़ें ऐसे पशु-पक्षियों को बचाएं उनका संरक्षण करें उनके रख रखाव का इंतजाम करें ताकि हमारा पर्यावरण भी सही रहे। आखिरकार प्रकृति, संसाधन और पर्यावरण हमारे जीवन और अस्तित्व का आधार हैं।


