खसरे के बढ़ते मामले और बच्चों की सुरक्षा: क्या समय से पहले वैक्सीन देना आवश्यक है ताकि संक्रमण से बचाव हो सके?
पूरी दुनिया में खसरे के मामले खतरनाक रफ्तार से बढ़ रहे हैं। 2023 में 1 करोड़ से ज़्यादा केस दर्ज हुए। अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या 12 महीने की उम्र में दी जाने वाली वैक्सीन बहुत देर में दी जा रही है?

लाइफ स्टाइल न्यूज. कभी लगभग खत्म हो चुका खसरा अब फिर दुनिया के लिए आफत बन चुका है। 2023 में दुनिया भर में 1.03 करोड़ से ज्यादा मामले सामने आए, जो 2022 की तुलना में 20% ज्यादा थे। अमेरिका, यूरोप, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया तक इसका कहर फैल चुका है। सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में 2025 के शुरुआती पांच महीनों में ही 77 केस दर्ज हुए, जो 2024 के पूरे साल के मुकाबले ज़्यादा हैं। वजह? अंतरराष्ट्रीय यात्रा और वैक्सीनेशन में गिरावट। ज़्यादातर मामले ट्रैवल से जुड़े हैं और यही महामारी को दोबारा जिंदा कर रहे हैं।
खसरा: हवा से फैलने वाला जानलेवा वायरस
खसरा दुनिया के सबसे संक्रामक वायरसों में से एक है। एक संक्रमित व्यक्ति 12 से 18 लोगों को संक्रमित कर सकता है अगर वे वैक्सीनेटेड नहीं हैं। ये वायरस खांसी और छींक के ज़रिए हवा में फैलता है और दो घंटे तक हवा में बना रह सकता है। खसरा सिर्फ एक बुखार या रैश नहीं, बल्कि यह मस्तिष्क, फेफड़ों और इम्यून सिस्टम को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है। WHO कहता है कि हर्ड इम्युनिटी के लिए 95% लोगों को दोनों डोज़ लगनी चाहिए, लेकिन कोविड के बाद ये आंकड़ा खतरनाक रूप से गिरा है।
क्या मातृ प्रतिरक्षा एक भ्रम है?
नवजात शिशुओं को जन्म के बाद मां के दूध और प्लेसेंटा से कुछ एंटीबॉडीज़ मिलती हैं, जो शुरू में उन्हें खसरे से बचा सकती हैं। लेकिन एक नई स्टडी ने चौंका दिया—4 महीने की उम्र तक ये एंटीबॉडी 81% से गिरकर सिर्फ 30% रह जाती हैं। यानी बच्चों को पहले से ज्यादा जल्दी वैक्सीन की जरूरत हो सकती है, वरना वे संक्रमण के खतरे में हैं।
क्या 12 महीने में वैक्सीन देना बहुत देर हो चुकी होती है?
WHO अब उन इलाकों में जहां खसरा ज़्यादा फैल रहा है, 9 महीने में ही पहली डोज़ देने की सिफारिश करता है। कुछ मामलों में, 6 महीने में भी डोज़ दी जाती है, खासकर जब बच्चे यात्रा पर जा रहे हों या आसपास आउटब्रेक हो। लेकिन इतनी जल्दी दी गई वैक्सीन से एंटीबॉडीज़ तेज़ी से खत्म हो सकती हैं क्योंकि उस समय मां की एंटीबॉडी उसमें दखल देती हैं। फिर भी, खतरनाक हालात में थोड़ी सुरक्षा भी बेहतर मानी जाती है।
दो डोज़ ज़रूरी क्यों?
पहली वैक्सीन के बाद करीब 10-15% बच्चों में प्रतिरक्षा नहीं बनती। इसलिए दूसरी डोज़ जरूरी होती है, जो 6-9 महीने बाद दी जाती है। 12 महीने की उम्र में दी गई पहली डोज़ आमतौर पर ज़्यादा मज़बूत इम्यून रिस्पॉन्स देती है, लेकिन अगर संक्रमण ज़्यादा हो, तो पहले देना ज़रूरी हो सकता है। कोविड महामारी के बाद दुनियाभर में टीकाकरण दर में बड़ी गिरावट आई। क्लिनिक जाना, डर, अफवाहें और स्वास्थ्य सेवाओं की बाधाएं—इन सबने वैक्सीनेशन को पीछे धकेला। इसी खालीपन में खसरे ने फिर पांव पसारे। अब सरकारों को तेज़ी से कैच-अप कैंपेन चलाने की जरूरत है।
क्या अब बदलना होगा वैक्सीन शेड्यूल?
अब वक्त है कि दुनिया खसरे के टीकाकरण कार्यक्रम पर दोबारा गौर करे। क्या पहली डोज़ 9 महीने पर ही दी जाए? क्या हाई-रिस्क बच्चों को 6 महीने में ही बचाया जाए? नए डेटा और ट्रैवल ट्रेंड के मुताबिक वैक्सीन शेड्यूल में बदलाव ज़रूरी हो चुका है।