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होलोकॉस्ट सर्वाइवर रोज़ गिरोन का 113 साल की उम्र में निधन

होलोकॉस्ट के सबसे पुराने सर्वाइवर रोज़ गिरोन का 113 साल की उम्र में निधन हो गया. वे पोलैंड के यानव गांव में 1912 में जन्मी थीं और नाजियों के अत्याचारों का सामना करते हुए शंघाई और बाद में अमेरिका पहुंची. रोज़ गिरोन का जीवन संघर्ष और साहस की प्रेरणादायक कहानी है.

हाल ही में रोज़ गिरोन के निधन की खबर सामने आई, जिन्हें होलोकॉस्ट के सबसे पुराने सर्वाइवर के रूप में पहचाना जाता रहा है. उनकी उम्र 113 साल थी और उनका बेलमोर, न्यूयॉर्क में निधन हुआ. इसकी जानकारी अमेरिका स्थित क्लेम्स कॉन्फ्रेंस नाम के एक गैर-लाभकारी संगठन ने अपने सोशल मीडिया पेज के जरिए दी. बता दें कि ये संगठन होलोकॉस्ट सर्वाइवर्स को मदद करने का कार्य करता है. रोज़ गिरोन का जीवन संघर्षों और साहस की अद्भुत कहानी है, जो दूसरों के लिए प्रेरणादायक है. वो पोलैंड के यानव गांव में 1912 में जन्मी थीं और उनका जीवन नाजियों द्वारा किए गए अत्याचारों से प्रभावित था.

शुरुआती जीवन और शरणार्थी यात्रा

रोज़ गिरोन का जन्म, साल 1912 में पोलैंड के यानव गांव में हुआ था. बचपन में ही उनके परिवार ने जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में स्थानांतरित कर लिया. साल 1938 में उन्होंने जर्मन यहूदी युवक, जूलियस मैनहेम से शादी की और वे ब्रेसलाउ (वर्तमान में व्रोकलॉव, पोलैंड) में बस गए. उसी साल, जर्मनी में यहूदियों पर हुए एक हिंसक हमले में उनके पति को गिरफ्तार कर नाजी एकाग्रता शिविर भेज दिया गया. रोस उस समय 8 महीने की गर्भवती थीं.

नाजियों ने उनके पति को केवल तब रिहा किया, जब परिवार ने उन्हें भारी रकम चुकाई और 6 हफ्ते के भीतर देश छोड़ने की शर्त रखी. इसके बाद, रोस और उनका परिवार किसी तरह वीजा प्राप्त करने में सफल हुआ और वे शंघाई, चीन पहुंचे, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 20,000 से ज्यादा यहूदी शरणार्थियों को आश्रय मिला. यही वो स्थान था, जहां रोस ने बुनाई सीखने की शुरुआत की, जो आगे चलकर उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया.

अमेरिका में एक नई शुरुआत

दूसरे विश्व युद्ध के बाद, रोस गिरोने और उनका परिवार 1947 में अमेरिका में बसने के लिए पहुंचे. न्यूयॉर्क के क्वींस में उन्होंने दो बुनाई की दुकानें खोलीं और वहां के समुदाय में एक प्रिय सदस्य बन गई. उनकी बेटी, रेका बेन्निकासा ने बताया कि मेरी माँ एक मजबूत और संजीवनी महिला थीं, जिन्होंने हर हालात में अपने आगे बढ़ने का रास्ता निकाला.

होलोकॉस्ट की काली छाया

रोज़ गिरोन और उनके परिवार के लिए युद्ध के बाद का जीवन कहीं ज्यादा सुरक्षित था, लेकिन कई अन्य यहूदियों को नाजी जर्मनी के अत्याचारों का सामना करना पड़ा. लाखों लोग अपने घरों से बेघर हो गए और अनेक ने नाज़ी गैस चैंबर्स में अपनी जान गंवा दी. आइसविट्ज़-बिर्केनाऊ जैसे शिविरों में अकेले 1.1 मिलियन यहूदियों की हत्या कर दी गई.

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28 February 2025, 09:49 AM IST

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