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हेल्थ पॉलिसी पोर्ट करना हुआ आसान, प्रीमियम बढ़ने का डर अब सिर्फ मिथक

हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी आपको यह अधिकार देती है कि आप अपनी पॉलिसी को बिना फायदे खोए दूसरी कंपनी में स्थानांतरित कर सकें. इससे प्रीमियम अपने-आप नहीं बढ़ता. प्रीमियम उम्र, मेडिकल इंफ्लेशन, क्लेम हिस्ट्री और चुने गए कवरेज जैसे कारकों से बदलता है.

Suraj Mishra
Edited By: Suraj Mishra

हेल्थ इंश्योरेंस लेना आपकी सेहत की सुरक्षा के लिए उठाया गया एक समझदारी भरा कदम है. भारत में हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी किसी सुविधा से ज्यादा एक अधिकार है. इसका मतलब है कि अगर आपका मौजूदा प्लान आपकी जरूरतें पूरी नहीं कर रहा, प्रीमियम बढ़ गया है या सर्विस अच्छी नहीं मिल रही, तो आपको पूरी आजादी है कि आप अपनी पॉलिसी को किसी बेहतर इंश्योरेंस कंपनी में बिना अपने फायदों को खोए स्थानांतरित कर सकें. केवल पोर्टेबिलिटी की वजह से प्रीमियम नहीं बढ़ता, यह आपकी उम्र, हेल्थ प्रोफाइल और कवरेज पर निर्भर करता.

हेल्थ इंश्योरेंस की कीमत क्यों बदलती है

हेल्थ इंश्योरेंस का प्रीमियम कई कारणों से बदलता है, और यह बदलाव हर कंपनी या प्लान में स्वाभाविक रूप से होता है. सिर्फ पॉलिसी पोर्ट करने से प्रीमियम अपने-आप नहीं बढ़ता. प्रीमियम उम्र, मेडिकल इंफ्लेशन, क्लेम हिस्ट्री और चुने गए कवरेज पर निर्भर करता है. असल में प्रीमियम बदलने के पीछे ये मुख्य कारण होते हैं:

1. उम्र बढ़ने पर प्रीमियम बढ़ना
जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती है, हेल्थ रिस्क भी बढ़ता है. इसी वजह से कंपनियां प्रीमियम को बढ़ते उम्र के हिसाब से दोबारा तय करती हैं.

2. मेडिकल इंफ्लेशन
भारत में उपचार, सर्जरी, दवाइयाँ और अस्पतालों की लागत हर साल बढ़ रही है. जब इलाज महंगा होता है, तो इंश्योरेंस कंपनियां प्रीमियम को उसी हिसाब से बदल देती हैं.. 

3. पॉलिसी में सुधार या बढ़ोतरी
अगर आप अपने प्लान में नए अतिरिक्त लाभ या सुविधाएँ जोड़ते हैं, जैसे मातृत्व कवर या गंभीर बीमारी कवर (जैसे कैंसर कवर) तो स्वाभाविक रूप से प्रीमियम बढ़ जाता है.

4. क्लेम हिस्ट्री
अगर आपने पिछले कुछ सालों में कई बार दावे किए हैं, तो इंश्योरेंस कंपनी आपको अधिक जोखिम वाला ग्राहक मान सकती है. ऐसे ग्राहक का प्रीमियम भी अक्सर बढ़ जाता है.

5. जीवन शैली
अगर कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है, बहुत ज़्यादा शराब पीता है या बिल्कुल व्यायाम नहीं करता, तो उसका स्वास्थ्य जोखिम बढ़ जाता है. ऐसे मामलों में प्रीमियम भी बढ़ सकता है.

6. पॉलिसी का प्रकार और लाभ
कैशलेस अस्पताल सुविधा, कमरे के किराये से जुड़े नियम, स्वास्थ्य-देखभाल लाभ, और भर्ती से पहले व बाद की चिकित्सा सुविधाएँ, इन सबका प्रभाव प्रीमियम पर पड़ता है.

हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी और जोखिम मूल्यांकन से जुड़े भ्रम
कई लोग मानते हैं कि अगर वे अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी को एक कंपनी से दूसरी कंपनी में पोर्ट करते हैं, तो उनकी जोखिम मूल्यांकन फिर से शुरू होगी और प्रीमियम बहुत बढ़ जाएगा. लेकिन यह आधा सच है और आधा भ्रम.

●    पोर्टेबिलिटी का मतलब है कि आप अपनी पुरानी पॉलिसी के फायदे और वेटिंग पीरियड्स नई कंपनी में भी साथ ले जा सकते हैं.

●    नई कंपनी आपका मेडिकल इतिहास जरूर देखती है, लेकिन पहले से मिले फायदे (जैसे वेटिंग पीरियड पूरा हो चुका है) छीन नहीं सकती.

●    कई लोग सोचते हैं कि पोर्ट करने से हर बार मेडिकल चेकअप जरूरी है, लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता.

●    अगर आपकी हेल्थ स्टेबल है और कोई बड़ा बदलाव नहीं है, तो पोर्टेबिलिटी के दौरान प्रीमियम में ज्यादा अंतर नहीं आता.
 

पोर्टेबिलिटी आपको बेहतर सर्विस और कम प्रीमियम चुनने की आजादी देती है, ना कि आपको नए सिरे से शुरुआत करने पर मजबूर करती है.

हेल्थ इंश्योरेंस कैसे पोर्ट करें ताकि प्रीमियम न बढ़े? 

●    पहले सम इंश्योर्ड ठीक करें: जरूरत हो तो उसी कंपनी में सम इंश्योर्ड बढ़ाएँ, फिर पोर्ट करें. इससे नया वेटिंग पीरियड नहीं लगेगा.

●    सिर्फ ज़रूरी फीचर्स रखें: अनावश्यक ऐड-ऑन हटाएँ, इन्हीं से प्रीमियम बढ़ता है.

●    टॉप-अप प्लान जोड़ें: महंगी बेस पॉलिसी की बजाय बेस और टॉप-अप का कॉम्बिनेशन लें. बड़े कवरेज पर कम खर्च होगा.

●    लॉन्ग-टर्म पॉलिसी चुनें: 2-3 साल की पॉलिसी लेने पर हर साल का प्रीमियम कम पड़ता है.

●    NCB ट्रांसफर करें: नो-क्लेम बोनस नए प्लान में ले जाना न भूलें, प्रीमियम घटाने में मदद करता है.

●    समय पर पोर्ट करें: पॉलिसी खत्म होने से 45-60 दिन पहले रिक्वेस्ट डालें.

●    कंपैरिजन करें: 3-4 कंपनियों के प्रीमियम और कवरेज तुलना करें, तभी पोर्ट करें.

हेल्थ इंश्योरेंस पोर्ट करने से पहले चेकलिस्ट

अपनी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी पोर्टेबिलिटी कराने के लिए आम तौर पर आपको ये डॉक्यूमेंट देने पड़ सकते हैं:

●    मौजूदा हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी का विवरण/कॉपी

●    नई इंश्योरेंस कंपनी के लिए प्रपोज़ल फॉर्म

●    केवाईसी डॉक्युमेंट, जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड आदि

●    पिछली पॉलिसी के डॉक्युमेंट और रिन्यूअल नोटिस

●    जरूरत होने पर मेडिकल रिकॉर्ड और टेस्ट रिपोर्ट्स

निष्कर्ष
तो क्या हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टेबिलिटी से प्रीमियम बढ़ जाता है? ज़रूरी नहीं. सही समय पर, सही प्लान और सही कवरेज चुनकर आप प्रीमियम को कंट्रोल में रखते हुए बेहतर सुरक्षा ले सकते हैं. हेल्थ इंश्योरेंस पोर्टिंग एक स्मार्ट कदम है, खासकर तब जब आपकी मौजूदा पॉलिसी महंगी होती जा रही हो या आपको बेहतर सेवाओं की जरूरत हो. समझदारी से किया गया पोर्ट न सिर्फ आपके खर्चों को कम करता है, बल्कि लंबी अवधि में आपकी मेडिकल फाइनेंशियल प्लानिंग को भी मजबूत बनाता है.

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल 

1. क्या हेल्थ इंश्योरेंस पोर्ट करने से प्रीमियम बढ़ जाता है?
नहीं, सिर्फ पोर्ट करने की वजह से प्रीमियम नहीं बढ़ता. प्रीमियम उम्र, मेडिकल इंफ्लेशन, क्लेम हिस्ट्री और चुने गए कवरेज पर निर्भर करता है. अगर आपकी हेल्थ स्टेबल है और आप अनावश्यक फीचर्स नहीं जोड़ते, तो प्रीमियम लगभग समान रहता है.

2. क्या पोर्टिंग के समय मेडिकल टेस्ट जरूरी होता है?
हर बार नहीं. अगर आपकी हेल्थ में कोई बड़ा बदलाव नहीं है और आप समान कवरेज रख रहे हैं, तो कई बार मेडिकल टेस्ट की आवश्यकता नहीं पड़ती.

3. क्या पोर्टिंग करने पर वेटिंग पीरियड फिर से शुरू हो जाता है?
नहीं. IRDAI के नियमों के अनुसार, आपकी पुरानी पॉलिसी का वेटिंग पीरियड नई कंपनी में भी जारी रहता है. यानी पहले से पूरा किया गया वेटिंग पीरियड दोबारा नहीं लगता.

4. क्या NCB (नो-क्लेम बोनस) पोर्टिंग में बचा रहता है?
हाँ, आपका NCB पूरी तरह नए प्लान में ट्रांसफर किया जाता है. इसे क्लियरली पोर्टिंग रिक्वेस्ट में mention करना जरूरी है.

5. क्या हर इंश्योरेंस कंपनी पोर्टिंग का विकल्प देती है?
हाँ, भारत में सभी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियों को पोर्टेबिलिटी की सुविधा देना अनिवार्य है. यह आपका अधिकार है.

6 . क्या अलग कवरेज चुनने पर प्रीमियम बदल सकता है?
हाँ, अगर आप नए प्लान में अतिरिक्त फीचर्स या ज्यादा कवरेज लेते हैं, तो प्रीमियम बढ़ सकता है. लेकिन समान कवरेज लेने पर अंतर बहुत कम रहता है.

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20 November 2025, 04:17 PM IST

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