ॐ लोक आश्रम: हम शांत कैसे रहें? भाग-1
आज की इस भाग-दौड़ भरी इस जिंदगी में जीवन में सबसे बड़ी समस्या है कि हम शांत कैसे रहें। हमारा मन कैसे स्थिर हो। मन की झंझावात से बाहर कैसे निकलें। कैसे जीवन और जिंदगी में सुकून आए।
आज की इस भाग-दौड़ भरी इस जिंदगी में जीवन में सबसे बड़ी समस्या है कि हम शांत कैसे रहें। हमारा मन कैसे स्थिर हो। मन की झंझावात से बाहर कैसे निकलें। कैसे जीवन और जिंदगी में सुकून आए। मन को शांति कैसे मिले। कैसे मनुष्य का चित्त शांति में रहे। आज व्यक्ति के लिए सुख सुविधाएं आ गई हैं उसके लिए गर्मी में एंयरकंडीशन है, ठंड के लिए हीटर है। खाने बनाने के लिए बहुत सारे उपक्रम आ गए हैं। रहने के लिए अच्छे घर आ गए हैं। घूमने-फिरने के लिए गाड़ियां आ गई हैं लेकिन परिवार छोटा हो गया है।
सामूहिक परिवार एकल परिवार में तब्दील हो चुका है। बावजूद इसके समस्याओं का अंत नहीं हुआ है। समस्याएं बढ़ गईं हैं, पति-पत्नी में मनमुटाव है। दफ्तर में बहुत तनाव रहता है। काम का दबाव है। लोग राजनीति के शिकार है। जितनी मुंह उतनी बातें हो रही हैं। अफवाहों और झूठ का बोलबाला है। बहुत सारी इस तरह की परिस्थियां हैं कि व्यक्ति उलझा हुआ सा रहता है। उसके जीवन में ओर छोर दिखाई नहीं देता। ऐसा लगता है कि खुशियां कहीं गुम हो गई हैं तो ऐसी अवस्था से कैसे मुक्ति पाई जाए।
भगवान कृष्ण ने श्रीमदभगवदगीता में उपमा दी है कि जिस तरह से सारी नदियां समुद्र में प्रवेश करती है लेकिन समुद्र में उफान नहीं आता उसी तरह से व्यक्ति को जीवन में रहना चाहिए। जिस तरह समुद्र बहुत बड़ा है और उस समुद्र में हर जगह से आकर नदियां बहुत सारे पानी डालती रहती हैं लेकिन उस समुद्र में कभी बाढ़ नहीं आती। उसी तरह से जिस व्यक्ति के अंदर सारे मनोभाव प्रविष्ट होते हैं और शांत हो जाते हैं वही व्यक्ति शांति को प्राप्त होता है।
जो कामनाओं में घुसा हुआ व्यक्ति है वो शांति को प्राप्त नहीं होता है। इसका मतलब ये है कि आपको प्रतिक्रियावादी नहीं होना है। हमारे अंदर भाव आएगा। हमारा बॉस है वो हमसे कुछ कहेगा लेकिन अगर उसके वाक्य ने हमारे अंदर विकास उत्पन्न कर दिया तो हम उसपर प्रतिक्रिया कर देंगे और प्रतिक्रिया करते ही समस्या बड़ी हो जाएगी। कोई हमें गाली भी दे तो अंदर रिएक्शन न हो लेकिन ये बड़ा मुश्किल काम है। हर व्यक्ति अपने कष्टों से अपने दुखों से परेशान है।