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गंगाजल न सड़ता है, न बदबू आती है लेकिन क्यों? जानिए वैज्ञानिक और धार्मिक वजहें

गंगा नदी हिंदू धर्म का सबसे पवित्र नदी माना जाता है. इसकी अनोखी विशेषता है कि यह सालों-साल खराब नहीं होता और न ही इसमें बदबू आती है. इसके रहस्य सदियों से लोगों को चौंकाता आ रहा है. लेकिन सवाल ये है कि आखिर क्यों गंगाजल सालों तक शुद्ध रहता है? तो चलिए जानते हैं.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

गंगा नदी को भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक माना जाता है, और इसका जल, जिसे गंगाजल कहा जाता है, सालों-साल खराब नहीं होता. यह न सिर्फ धार्मिक आस्था से जुड़ा है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी बेहद खास है. इसकी विशेषता यह है कि इसमें कभी भी बदबू नहीं आती और यह हमेशा शुद्ध बना रहता है. यह रहस्य सदियों से लोगों को चौंकाता रहा है, और इसके पीछे कई वैज्ञानिक एवं पौराणिक कारण बताए जाते हैं.

गंगा का जल न सिर्फ पूजा-पाठ में उपयोग किया जाता है बल्कि इसे अमृत के समान माना जाता है. यह मान्यता है कि गंगाजल का सेवन करने से शरीर निरोगी रहता है और आयु लंबी होती है. आखिर क्यों गंगाजल वर्षों तक शुद्ध रहता है? इस सवाल के जवाब में विज्ञान और अध्यात्म दोनों ने महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किए हैं.

गंगा नदी की पवित्रता और महत्व

गंगा नदी उत्तराखंड के गोमुख से निकलती है और उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से होते हुए बांग्लादेश में बंगाल की खाड़ी में मिलती है. यह लगभग 2,525 किलोमीटर लंबी है. हिंदू धर्म में गंगा को माँ का दर्जा प्राप्त है और महाभारत सहित कई पौराणिक ग्रंथों में इसका उल्लेख किया गया है. मान्यता है कि गंगाजल में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

गंगाजल में खराबी क्यों नहीं आती?

गंगाजल कभी खराब नहीं होता, न ही इसमें से दुर्गंध आती है. इसके पीछे मुख्य कारण इसके जल में मौजूद बैक्टीरियोफेज और निंजा वायरस हैं, जो हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म कर देते हैं.

135 साल पहले हुआ था गंगाजल का पहला वैज्ञानिक परीक्षण

गंगाजल की शुद्धता को लेकर वैज्ञानिक अध्ययन 1890 के दशक में शुरू हुआ. उस समय भारत में कई जगहों पर भयंकर अकाल पड़ा था, जिससे भुखमरी और बीमारियों का प्रकोप बढ़ गया था. इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में संगम तट पर माघ मेले के दौरान हैजा फैला, जिससे कई लोगों की मौत हो गई. संसाधनों की कमी के कारण शवों को गंगा में बहाया जाने लगा.

ब्रिटिश वैज्ञानिक अर्नेस्ट हैन्किन की खोज

ब्रिटेन के प्रसिद्ध बैक्टीरियोलॉजिस्ट अर्नेस्ट हैन्किन ने गंगाजल पर शोध किया और पाया कि भले ही गंगा में शव बहाए जा रहे थे, लेकिन इसका जल पीने वाले लोग बीमार नहीं हो रहे थे. उन्होंने गंगाजल के सैंपल इकट्ठा कर उनका विश्लेषण किया और निष्कर्ष निकाला कि इस जल में मौजूद एक अनजान तत्व हैजा के बैक्टीरिया को नष्ट कर रहा था. उन्होंने 1895 में प्रकाशित अपने शोधपत्र में लिखा, "भारत की गंगा और यमुना नदी ब्रिटेन और यूरोप की नदियों की तुलना में अधिक स्वच्छ हैं, चाहे इनके साथ कैसा भी व्यवहार किया जाए."

गंगाजल में छुपा निंजा वायरस और बैक्टीरियोफेज

अर्नेस्ट हैन्किन के बाद फ्रांस के एक वैज्ञानिक ने भी गंगाजल पर शोध किया और पाया कि इसमें निंजा वायरस नामक सूक्ष्मजीव होते हैं, जो हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म कर देते हैं. साइंस फैक्ट्स के अनुसार, गंगाजल में 1000 से अधिक प्रकार के बैक्टीरियोफेज पाए जाते हैं, जो हानिकारक बैक्टीरिया को समाप्त कर गंगाजल को शुद्ध बनाए रखते हैं.

ऑक्सीजन की अधिक मात्रा रखती है जल को ताजा

गंगाजल की एक और खासियत इसकी उच्च ऑक्सीजन धारण क्षमता है. अन्य नदियों की तुलना में गंगा में 20 गुना अधिक प्रदूषण अवशोषित करने की क्षमता होती है. हिमालय से निकलने के कारण इसमें कई प्रकार की प्राकृतिक जड़ी-बूटियां और खनिज घुले होते हैं, जो इसके जल को सड़ने से बचाते हैं.

धार्मिक मान्यता और वैज्ञानिक प्रमाण

गंगा नदी की पवित्रता को लेकर धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ वैज्ञानिक प्रमाण भी इसकी विशेषता को प्रमाणित करते हैं. इसीलिए गंगाजल को घर में रखने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और यह शारीरिक एवं मानसिक शुद्धि प्रदान करता है.

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22 February 2025, 11:32 AM IST

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