भक्ति में अहंकार का खतरा: प्रेमानंद महाराज ने बताया सच्ची भक्ति का रास्ता
आज के डिजिटल ज़माने में, सोशल मीडिया के ज़रिए कई आध्यात्मिक संदेश लोगों तक पहुँच रहे हैं. इसी सिलसिले में, स्वामी प्रेमानंद महाराज का एक वीडियो आजकल वायरल हो रहा है, जिसमें वह बहुत ही आसान शब्दों में भक्ति और अहंकार के बीच के बारीक लेकिन ज़रूरी फर्क को समझा रहे हैं.

नई दिल्ली: आज के डिजिटल दौर में अध्यात्म से जुड़े कई संदेश सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक पहुंच रहे हैं. इसी कड़ी में स्वामी प्रेमानंद महाराज का एक वीडियो इन दिनों तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें उन्होंने भक्ति और अहंकार के बीच के सूक्ष्म लेकिन बेहद अहम अंतर को सरल शब्दों में समझाया है. यह संदेश खासतौर पर उन लोगों के लिए है, जो भक्ति मार्ग पर चल रहे हैं और आत्मिक उन्नति की चाह रखते हैं.
वायरल वीडियो में प्रेमानंद महाराज ने स्पष्ट किया कि भक्ति का उद्देश्य आत्मशुद्धि और ईश्वर से प्रेम है, न कि स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करना. उनका कहना है कि जहां अहंकार जन्म ले लेता है, वहां भक्ति का वास्तविक स्वरूप धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है.
भक्ति में अहंकार कैसे प्रवेश करता है
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, जब कोई साधक यह सोचने लगता है कि वह दूसरों से अधिक भक्ति कर रहा है या उसकी साधना सबसे श्रेष्ठ है, तभी भक्ति अहंकार में बदलने लगती है. यह भाव मन में “मैं” को बढ़ाता है और ईश्वर-केंद्रित भक्ति को आत्म-केंद्रित बना देता है. परिणामस्वरूप साधक भक्ति के वास्तविक फल से वंचित रह जाता है.
सच्ची भक्ति की पहचान क्या है
महाराज बताते हैं कि सच्ची भक्ति में “मैं” का भाव नहीं होता. उसमें विनम्रता, समर्पण और प्रेम प्रमुख होते हैं. भगवान का नाम-स्मरण, गुणगान और चिंतन—ये सब तब ही फलदायी होते हैं जब मन में शुद्धता हो. सच्ची भक्ति का लक्ष्य अपनी महानता दिखाना नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रेम में स्वयं को लीन करना है.
अहंकार से बचने के सरल उपाय
प्रेमानंद महाराज ने भक्ति मार्ग पर चलते हुए अहंकार से बचने के लिए कुछ व्यावहारिक उपाय भी बताए—
- निरंतर ईश्वर स्मरण: हर कार्य और विचार में भगवान को केंद्र में रखें.
- दूसरों की भक्ति का सम्मान: अपनी साधना को श्रेष्ठ मानने के बजाय हर भक्त के अनुभव की कद्र करें.
- स्वयं को साधन मानें: यह भाव रखें कि आप केवल ईश्वर की इच्छा के साधन हैं, कर्ता नहीं.
- नम्रता और प्रेम अपनाएं: अहंकार की जगह प्रेम और करुणा को जीवन में उतारें.
क्या है महाराज का संदेश
प्रेमानंद महाराज का साफ कहना है कि अहंकार के साथ की गई भक्ति से आत्मिक लाभ नहीं मिलता. भक्ति तभी सार्थक होती है, जब उसमें पूर्ण समर्पण, विनम्रता और ईश्वर के प्रति निष्कलुष प्रेम हो. यही सच्ची भक्ति का मार्ग है, जो मन को शांति और आत्मा को संतोष प्रदान करता है.


