क्यों नहीं छूनी चाहिए स्त्री की नाभि? जानें शास्त्रों में क्या लिखा है
Female navel: मानव शरीर को शास्त्रों में मंदिर कहा गया है. इसके प्रत्येक अंग का विशेष महत्व है. स्त्री की नाभि न केवल सौंदर्य का प्रतीक है बल्कि प्राण, ऊर्जा और लक्ष्मी का केंद्र भी मानी जाती है. इसका सम्मान करना घर में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति बनाए रखने का मार्ग है.

Female navel: मानव शरीर को शास्त्रों में मंदिर कहा गया है. इसके प्रत्येक अंग को किसी न किसी देवता का निवासस्थान माना गया है. ऐसे में नाभि का स्थान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. यह न केवल जीवन का पहला केंद्र है, बल्कि शारीरिक और आध्यात्मिक ऊर्जा का मुख्य स्रोत भी है.
विशेषज्ञों के अनुसार, नाभि का अपमान या अशुद्ध भाव से स्पर्श करना केवल शारीरिक हानि नहीं बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी हानिकारक होता है. यह नाभि जीवन, लक्ष्मी और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है.
नाभि का आयुर्वेदिक और शास्त्रीय महत्व
आयुर्वेद के अनुसार, नाभि से लगभग 72,000 नाड़ियां निकलती हैं जो पूरे शरीर में ऊर्जा और रक्त प्रवाह करती हैं. चरक संहिता में स्पष्ट लिखा है, "नाभिः प्राणस्य मूलम्", अर्थात नाभि को प्राण का मूल स्थान माना गया है.
सुश्रुत संहिता में भी उल्लेख मिलता है, "नाभि देशे व्यथाभावः सर्वशरीरदुःखकारणम्", यानी नाभि में विकार पूरे शरीर को प्रभावित कर सकते हैं. यह पाचन, अग्नि और मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर डाल सकता है.
धार्मिक दृष्टि से नाभि का महत्व
धर्मशास्त्रों और पुराणों में नाभि को लक्ष्मी का निवास स्थान कहा गया है. श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित है कि भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल ही ब्रह्मा के प्रकट होने का कारण बना.
विष्णु धर्मसूत्र में उल्लेख है, "लक्ष्मी नाभिस्थिता", अर्थात् लक्ष्मी नाभि में वास करती हैं. इसलिए स्त्री की नाभि का सम्मान करना घर में धन, सुख और सौभाग्य की प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है.
स्त्री की नाभि छेड़ने के दुष्परिणाम
यदि नाभि का अपमान होता है या इसे अशुद्ध दृष्टि से छुआ जाता है, तो यह केवल शारीरिक अशुद्धता ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक दोष का कारण भी बन सकता है. पुराणों में अलक्ष्मी का उल्लेख होता है, जो कलह और दुर्भाग्य का प्रतीक है. पद्म पुराण में कहा गया है, "यत्र स्त्रीः न सन्मान्याः तत्र लक्ष्मीर्न तिष्ठति", यानी जहां स्त्रियों का सम्मान नहीं होता वहां लक्ष्मी का वास नहीं होता.
इसलिए घर और परिवार में मानसिक अशांति, कलह और आर्थिक तंगी जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.
दोष निवारण और आयुर्वेदिक उपाय
अगर गलती से ऐसा दोष हो गया हो, तो शास्त्र इसके उपाय भी बताते हैं. शुक्रवार का दिन लक्ष्मी जी का प्रिय माना जाता है. इस दिन माता को कमल का फूल, धूप और दीप अर्पित करना लाभकारी होता है.
नाभि पर शुद्ध घी या सरसों का तेल लगाकर "ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्म्यै नमः" मंत्र का 108 बार जप करना भी शुभ माना गया है. आयुर्वेद में भी कहा गया है कि तेल लगाने से शरीर की अग्नि संतुलित रहती है और मानसिक शांति बनी रहती है.
कन्याओं को भोजन कराना और उनका आशीर्वाद लेना भी अलक्ष्मी को दूर करने का सरल और प्रभावी उपाय है.
Disclaimer: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. JBT यहां दी गई जानकारी की किसी भी प्रकार की पुष्टि नहीं करता है.


