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सूर्य देव की उपासना, छठी मैया की पूजा- जानिए क्यों दिया जाता है पानी में उतकर अर्घ्य

छठ पूजा एक अनूठा चार दिवसीय पर्व है, जिसमें सूर्य देव और छठी मैया की भक्ति-भाव से पूजा की जाती है. यह त्योहार छठी तिथि और अंक छह से जुड़ा है, जो प्यार, पालन-पोषण और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता

Goldi Rai
Edited By: Goldi Rai

नई दिल्ली: भारत के विभिन्न हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाने वाला छठ पर्व, एक प्रमुख हिंदू पर्व है जो चार दिनों तक मनाया जाता है. यह पर्व विशेष रूप से सूर्य देव की उपासना से जुड़ा हुआ है, लेकिन इसे छठी मैया के नाम से भी जाना जाता है. आमतौर पर सूर्य देव की पूजा की जाती है, फिर भी यह व्रत एक देवी के नाम से जुड़ा हुआ है, जिन्हें लोकभाषा में छठी मैया कहा जाता है. सवाल यह उठता है कि सूर्य देव की उपासना का यह व्रत छठी मैया के नाम से क्यों जुड़ा है और यह एक देवी के नाम से क्यों जाना जाता है?

इसका कारण है छठी तिथि, देवी कात्यायनी और योगमाया की महिमा से जुड़ा हुआ है. अंकमाला में छठवां अंक, तिथियों में छठवीं तिथि और मातृका देवियों में छठवीं देवी का संबंध पालन-पोषण से जुड़ा हुआ है. पुराणों के अनुसार, देवी योगमाया ने शिशु को पालने और उसे सुरक्षा देने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वही देवी कात्यायनी, जिन्हें छठी देवी के रूप में पूजा जाता है, असुरों का नाश करके देवताओं को बचाया था और समस्त मानव जाति की रक्षा की थी. इसलिए छठ पूजा में सूर्य देव के साथ-साथ इन देवी के रूप में छठी मैया की पूजा की जाती है.

छठी देवी का इतिहास और उनका महत्व

छठ पूजा का विशेष संबंध देवी कात्यायनी से है, देवी कात्यायनी को 'षष्ठी' भी कहा जाता है और नवरात्र के छठे दिन उनकी पूजा होती है. यह दिन विशेष रूप से देवी कात्यायनी के प्रभाव से जुड़ा हुआ है. पुराणों में उल्लेखित है कि देवी कात्यायनी ने महिषासुर का वध कर समस्त देवताओं को अभय प्रदान किया था. उनके तेज से ही सूर्य देव का प्रभामंडल बनता है और सूर्य देव उसी प्रभामंडल में वास करते हैं.

इस प्रकार, छठ पूजा के दौरान गोधूलि बेला में अस्ताचल गामी सूर्य देव को अर्घ्य देते हुए देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है. इस पूजा का उद्देश्य न केवल सूर्य देव की उपासना करना है, बल्कि इस दिन को बच्चों की सुरक्षा और उनका पालन-पोषण करने वाली शक्ति की पूजा के रूप में भी देखा जाता है.

छठी तिथि का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

छठ पूजा के दौरान, खासतौर पर छठवीं तिथि का महत्व बहुत अधिक है. इस तिथि को षष्ठी कहा जाता है और यह दिन देवी कात्यायनी से संबंधित है. यही कारण है कि इस दिन के दौरान देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है, ताकि वे संतान को अभय दें और उनका पालन-पोषण ठीक से हो. इस दिन शिशु की छठी मनाने की परंपरा भी जुड़ी हुई है, जो एक धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण कार्य मानी जाती है.

छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा

छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य सूर्य देव की उपासना करना है, लेकिन इस पूजा में छठी मैया की पूजा भी विशेष रूप से की जाती है. देवी कात्यायनी का रूप ही छठी मैया के रूप में पूजा जाता है. वह माता की तरह संतान को सुरक्षा और पालन-पोषण प्रदान करती हैं. सूर्य देव की उपासना का एक गहरा संबंध उनके प्रभामंडल से है, जिसमें देवी कात्यायनी का भी योगदान है.

इसलिए, छठ पूजा के दौरान सूर्य देव को अर्घ्य देने के साथ-साथ छठी मैया की पूजा भी महत्वपूर्ण होती है. यही पूजा बच्चों के लिए सुरक्षा और समृद्धि की कामना करती है. इस दिन माता कात्यायनी से प्रार्थना की जाती है कि वे संतान को हर तरह की बुरी नजर से बचाएं और उनके जीवन में सुख-समृद्धि लाएं.

छठ पूजा का सांस्कृतिक परिपेक्ष्य

भारतीय समाज में छठ पूजा का सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से गहरा महत्व है. यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह परिवार के संरक्षण और बच्चों के पालन-पोषण की महत्वपूर्ण परंपराओं को भी दर्शाता है. छठी तिथि पर विशेष रूप से संतान के लिए मन्नतें की जाती हैं, और देवी कात्यायनी से संतान सुख की कामना की जाती है.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी कात्यायनी का रूप सूर्य देव के साथ जुड़ा हुआ है और इसीलिए सूर्य की उपासना के साथ-साथ उनके प्रभामंडल और शक्ति की पूजा की जाती है. छठ पूजा के दौरान यह सुनिश्चित किया जाता है कि संतान को हर प्रकार की रक्षा प्राप्त हो और उनका जीवन खुशहाल हो.

Disclaimer: ये धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है, JBT इसकी पुष्टि नहीं करता.

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27 October 2025, 07:37 AM IST

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