तमिलनाडु में घिरी DMK सरकार, मंदिर प्रबंधन और हिंदू विरोधी बयानों पर बवाल
तमिलनाडु की DMK सरकार मंदिरों के कुप्रबंधन, वित्तीय अनियमितताओं और नेताओं के हिंदू विरोधी बयानों को लेकर विपक्ष और धार्मिक संगठनों के निशाने पर है.

Tamil Nadu news: तमिलनाडु की सत्ता में चौथे साल में प्रवेश कर चुकी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) सरकार इन दिनों आलोचना का सामना कर रही है. हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्त (HR&CE) विभाग के तहत आने वाले मंदिरों के कुप्रबंधन, वित्तीय अनियमितताओं और पार्टी नेताओं के हिंदू विरोधी बयानों ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
राज्य के कई हिस्सों में हिंदू संगठनों और विपक्षी दलों ने मंदिरों की जर्जर स्थिति, जमीनों पर कब्जे और भक्तों की उपेक्षा को लेकर सवाल उठाए हैं. वहीं, पार्टी नेताओं के बयानों ने धार्मिक भावनाओं को भड़काते हुए राजनीतिक माहौल को और ज्यादा तनावपूर्ण बना दिया है.
मंदिरों की बदहाली और वित्तीय गड़बड़ियां
तमिलनाडु में HR&CE विभाग के अधीन 44,121 मंदिर आते हैं, जिनमें कई सदियों पुराने हैं. भक्तों का कहना है कि इन मंदिरों की स्थिति लगातार बिगड़ रही है. उदाहरण के लिए, पलक्काराई स्थित 100 साल पुराने सेल्व विनायक मंदिर में पिछले 30 सालों से कुंभाभिषेकम (पुनः प्राण प्रतिष्ठा) तक नहीं हुआ है. राज्य के मंदिरों के पास 4.78 लाख एकड़ जमीन और 22,600 से ज्यादा इमारतें हैं. इसके बावजूद जुलाई 2022 से मार्च 2023 तक केवल ₹117.63 करोड़ किराया ही इकट्ठा हुआ.
मंदिर की जमीनों पर कब्जा और पारदर्शिता की कमी
ऐतिहासिक श्री वरगुण पांडीश्वरर और श्री नेल्लैप्पर मंदिर, तिरुनेलवेली जैसे मंदिरों की हजारों एकड़ जमीन पर कथित तौर पर अवैध कब्जा हो चुका है. आरोप है कि कुछ सरकारी विभाग भी इसमें शामिल हैं. वहीं, पूर्व पुलिस अधिकारी पोन मणिकवेल ने खुलासा किया कि तंजावुर के पुल्लामंगई मंदिर में पुजारियों को मात्र ₹300 मासिक वेतन मिलता है. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने भी HR&CE विभाग को वित्तीय अनियमितताओं और दस्तावेजों की अपारदर्शिता को लेकर आड़े हाथों लिया है.
भक्तों की तकलीफें और अव्यवस्थित व्यवस्था
मंदिरों में मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है. कई जगह ना तो पीने का साफ पानी उपलब्ध है और ना ही शौचालय या प्रतीक्षा के लिए शेड. त्योहारों और भीड़भाड़ के समय तो हालात और बिगड़ जाते हैं. तिरुवन्नामलाई और तिरुचेंदूर जैसे प्रमुख तीर्थ स्थलों पर भक्तों को प्रसाद के लिए घंटों लाइन में खड़ा रहना पड़ता है. एक रिक्शा चालक ने आरोप लगाया कि सरकारी तौर पर दर्शन मुफ्त या ₹50 में उपलब्ध है, लेकिन कुछ लोग ₹1000 लेकर अलग गेट से जल्दी प्रवेश करा देते हैं. उनका सुझाव है कि अगर सरकार इसे आधिकारिक तौर पर विनियमित करे, तो ये आय सीधे मंदिर सुधार में लग सकती है.
DMK नेताओं के विवादित बयान
मंदिर प्रबंधन के साथ-साथ DMK नेताओं के बयान भी सरकार की छवि पर भारी पड़ रहे हैं. उपमुख्यमंत्री उधयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों से करते हुए कहा था कि इसे 'मिटाना' चाहिए. वहीं, DMK के डिप्टी जनरल सेक्रेटरी और नीलगिरी से सांसद ए राजा ने हिंदू धर्म को 'वैश्विक खतरा' बताते हुए इसे जातीय और आर्थिक असमानता का जिम्मेदार ठहराया. मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने भी संस्कृत मंत्रों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि इन्हें समझने वाला 'कांप उठेगा'. इन बयानों ने धार्मिक समूहों की नाराजगी और गहरा दी.
इन घटनाओं के चलते राज्यभर में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं. मदुरै आदिीनम जैसे प्रमुख धार्मिक मठों ने भी खुलकर नाराजगी जताई है. आलोचकों का आरोप है कि DMK सरकार हिंदू संस्कृति और मंदिरों की पवित्रता को नजरअंदाज कर रही है और राजनीतिक लाभ के लिए विवादित बयान दिए जा रहे हैं.


