रोमांटिक रिलेशनशिप या प्यार के नाम पर नाबालिग बच्चियों का यौन शोषण बर्दाश्त नहीं, कलकत्ता हाईकोर्ट ने आरोपी को सुनाई उम्रकैद
कलकत्ता हाईकोर्ट ने 23 साल के युवक को 12 साल की बच्ची से शादी का झूठा वादा कर बार-बार दुष्कर्म के मामले में उम्रकैद व 2 लाख जुर्माना बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा—नाबालिग की “हाँ” कभी सहमति नहीं, पीड़िता को तुरंत 3.80 लाख मुआवजा देने के आदेश.

कोलकाताः कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक बेहद संवेदनशील मामले में ट्रायल कोर्ट का फैसला पूरी तरह बरकरार रखते हुए 23 साल के युवक को 12 वर्षीय बच्ची के साथ बार-बार यौन शोषण के लिए आजीवन कारावास और दो लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई. जस्टिस राजशेखर मंथा और जस्टिस अजय कुमार गुप्ता की डिवीजन बेंच ने साफ कहा कि नाबालिग लड़की भले ही प्यार या शादी के वादे में विश्वास कर ले, लेकिन वह यौन संबंधों के परिणामों को समझने और वैध सहमति देने में पूरी तरह असमर्थ होती है.
2015-17 के बीच हुआ था लगातार शोषण
मामला 2015 का है. उस समय पीड़िता महज 12 साल की थी और आरोपी 23 साल का. आरोपी ने किशोरी के साथ प्रेम-संबंध का नाटक किया और शादी का झूठा वादा किया. आरोपी ने कई बार उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए. लड़की ने अदालत में बताया कि वह सचमुच आरोपी से प्यार करने लगी थी और शादी की उम्मीद में सब कुछ सहती रही. लेकिन जब उसे गर्भ ठहर गया तो आरोपी ने मुंह फेर लिया. 2017 में जब लड़की 15 साल की हुई तब उसके परिवार ने POCSO एक्ट के तहत केस दर्ज कराया.
आरोपी ने दिए थे ये तीन बड़े तर्क
1. यौन संबंध दो साल पहले हुए थे, फिर शिकायत में इतनी देरी क्यों?
2. डीएनए रिपोर्ट में सिर्फ लिखा है कि पिता होने से इनकार नहीं किया जा सकता, यानी साफ सबूत नहीं है.
3. पीड़िता की उम्र भी ठीक से साबित नहीं हुई.
हाईकोर्ट ने एक-एक कर सभी दलीलें खारिज कीं
कोर्ट ने विस्तार से जवाब दिया
देरी पर: बच्ची आरोपी से प्यार करती थी और शादी की आस में चुप रही. गर्भ ठहरने के बाद जब आरोपी ने धोखा दिया तभी शिकायत हुई. अदालत ने कहा कि नाबालिग को यौन संबंधों के परिणामों की समझ नहीं होती, इसलिए देरी स्वाभाविक है.
सहमति पर: कानून बहुत साफ है कि 18 साल से कम उम्र की लड़की कभी भी वैध सहमति नहीं दे सकती, चाहे वह कितना भी प्यार जताए या शादी का वादा किया जाए.
डीएनए रिपोर्ट पर: इनकार नहीं किया जा सकता का मतलब यह नहीं कि आरोपी निर्दोष है. यह रिपोर्ट पीड़िता के बयान को सपोर्ट करती है और पूरे केस की कड़ी को मजबूत बनाती है.
उम्र पर: जन्म प्रमाण-पत्र कोर्ट रिकॉर्ड पर था और बचाव पक्ष ने समय पर कोई ठोस आपत्ति नहीं की थी.
कोर्ट ने माना कि आरोपी का कृत्य POCSO की धारा 5(j)(ii) और 5(l) के तहत अग्रेवेटेड पेनेट्रेटिव सेक्शुअल असॉल्ट की श्रेणी में आता है, जिसकी सजा न्यूनतम 20 साल से लेकर उम्रकैद तक हो सकती है. सियालदह की ट्रायल कोर्ट ने जो उम्रकैद और दो लाख जुर्माना लगाया था, उसे हाईकोर्ट ने जस का तस बरकरार रखा.
पीड़िता को तुरंत मुआवजा देने के सख्त निर्देशहाईकोर्ट ने सिर्फ सजा ही बरकरार नहीं रखी, बल्कि पीड़िता के हित में अतिरिक्त कदम भी उठाए. राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) 15 दिन के अंदर जुर्माने की 90% राशि यानी 1.80 लाख रुपये पीड़िता को देगा. इसके अलावा SLSA अपने फंड से अलग से 2 लाख रुपये और देगा. अगर भविष्य में आरोपी जुर्माना भरता है तो यह राशि SLSA को वापस मिल जाएगी.
अदालत ने अंत में सख्त लहजे में कहा कि रोमांटिक रिलेशनशिप या प्यार के नाम पर नाबालिग बच्चियों का यौन शोषण किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. नाबालिग की हां को कभी सहमति नहीं माना जा सकता.


