विदेशी बहुएं बनीं चुनाव आयोग की टेंशन: इस राज्य में छिड़ा घमासान, SIR पर लटकी तलवार
उत्तराखंड में चुनाव आयोग अब एक बड़ा अभियान शुरू करने जा रहा है. जिसका प्री-एसआईआर लक्ष्य है कि राज्य के कम से कम 70% मतदाताओं का सत्यापन पूरा कर लिया जाए, ताकि वोटर लिस्ट एकदम सटीक और दुरुस्त हो जाए.

नई दिल्ली: उत्तराखंड में चुनाव आयोग एसआईआर (स्पेशल समरी रिविजन) से पहले प्री-एसआईआर अभियान शुरू करने जा रहा है, लेकिन राज्यभर में हुए व्यापक पलायन के कारण यह प्रक्रिया कठिन साबित होने वाली है. पहाड़ी इलाकों से लेकर मैदानी क्षेत्रों तक, कई गांव खाली हो चुके हैं और पिछले दस वर्षों में मतदाताओं की संख्या में बड़ा बदलाव देखने को मिला है. ऐसे में मतदाताओं के सत्यापन से लेकर संपर्क साधने तक बीएलओ को कड़ी मशक्कत का सामना करना पड़ेगा.
प्री-एसआईआर के दौरान बीएलओ को हर मतदाता तक पहुंच बनानी होगी, लेकिन पहाड़ों के खाली गांवों में यह कार्य बेहद जटिल है. खासतौर पर राज्य से बाहर पलायन कर चुके लोगों से संपर्क करना और उनके प्रमाण जुटाना चुनौतीपूर्ण होगा. साथ ही 2003 की सूची में दर्ज नहीं हुई शादीशुदा महिलाएं तथा नेपाल से मायका रखने वाली महिलाएं भी एसआईआर में नई बाधाएं पैदा करेंगी.
प्री-एसआईआर में मतदाता सत्यापन की बड़ी चुनौती
प्री-एसआईआर के तहत बीएलओ हर मतदाता तक पहुंचकर जानकारी जुटाएंगे. लेकिन जिन गांवों में अब कोई नहीं रहता, वहां सत्यापन करना कठिन होगा. राज्य से बाहर गए लोगों का संपर्क जुटाना और उनके नाम यथावत रखना भी मुश्किल कार्य है. मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉ. बीवीआरसी पुरुषोत्तम ने बताया कि यूपी-दिल्ली में एसआईआर चल रहा है. उत्तराखंड से सबसे ज्यादा पलायन इन्हीं राज्यों में है. ऐसे में उत्तराखंड में एसआईआर से पहले इन दोनों राज्यों की फाइनल सूची आ जाएगी.
मैदानी क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या में सबसे बड़ा बदलाव
एसआईआर का सबसे अधिक प्रभाव उन सीटों पर दिखेगा, जहां मतदाताओं में भारी वृद्धि या कमी दर्ज हुई है. उत्तराखंड की 12 मैदानी सीटों पर पिछले वर्षों में वोटरों की संख्या 72% तक बढ़ी है. इनमें धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र सबसे ऊपर है, जहां 10 वर्षों में सर्वाधिक मतदाता बढ़े हैं. इसके अलावा डोईवाला, ऋषिकेश, सहसपुर, रुद्रपुर, कालाढुंगी, काशीपुर, रायपुर, किच्छा और भेल रानीपुर क्षेत्र भी शामिल हैं.
पहाड़ी सीटों में घटते मतदाता
पलायन के चलते कई पहाड़ी क्षेत्रों में मतदाताओं की संख्या लगातार घट रही है. सल्ट, रानीखेत, चौबट्टाखाल, लैंसडौन, पौड़ी, घनसाली, देवप्रयाग और केदारनाथ ऐसी सीटें हैं जहां वोटर कम हुए हैं. एसआईआर के दौरान यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि पुराने मतदाता अपने गांवों में फिर से नाम जुड़वाते हैं या रोजगार के लिए बाहर रह रहे लोग अपना नाम सूची में बनाए रख पाते हैं या नहीं.
शादीशुदा महिलाओं को करना होगा मायके का सत्यापन
एसआईआर में उन विवाहित महिलाओं के लिए सत्यापन चुनौती बनेगा, जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में ससुराल में दर्ज नहीं था. यदि उनका नाम मायके की सूची में दर्ज था, तो यह जानकारी ससुराल क्षेत्र के बीएलओ को देनी होगी. अगर मायके में भी नाम नहीं था, तो माता-पिता या दादा-दादी के नाम के आधार पर खुद को प्रमाणित करना अनिवार्य होगा.
नेपाल की बहुएं भी होंगी जांच में शामिल
नेपाल में मायका रखने वाली महिलाओं के लिए स्थिति और थोड़ी जटिल है, क्योंकि यह मामला नागरिकता से जुड़ सकता है. इस पर मुख्य निर्वाचन अधिकारी पुरुषोत्तम का कहना है कि यह नागरिकता नहीं, बल्कि वोटर लिस्ट के सत्यापन से जुड़ा मामला है. इसके लिए भारत निर्वाचन आयोग की गाइडलाइन का ही पालन किया जाएगा.


