मैं मरना नहीं चाहती, लेकिन शरीर जवाब दे चुका... MP की शिक्षिका ने राष्ट्रपति से मांगी इच्छामृत्यु की अनुमति
मध्य प्रदेश की 52 वर्षीय शिक्षिका चंद्रकांता जेठवानी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर इच्छामृत्यु की अनुमति मांगी है. दुर्लभ हड्डी रोग और लकवे के कारण वह व्हीलचेयर पर हैं, फिर भी रोज़ 8 घंटे स्कूल में पढ़ाती हैं. असहनीय दर्द के बावजूद उन्होंने आत्महत्या नहीं की, बल्कि अंगदान की इच्छा जताई. उन्होंने अपनी संपत्ति छह गरीब छात्रों को दान कर दी है और समाज के लिए प्रेरणा बन गई हैं.

मध्य प्रदेश की एक 52 वर्षीय सरकारी स्कूल की शिक्षिका चंद्रकांता जेठवानी ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर इच्छामृत्यु (Euthanasia) की अनुमति मांगी है. उन्होंने पत्र में अपने लंबे समय से चले आ रहे शारीरिक दर्द, असहनीय पीड़ा और जीवन की कठिन परिस्थितियों का हवाला देते हुए यह भावुक अपील की है.
हड्डियों की बीमारी और लकवा ने छीना जीवन
दर्द में भी कर्तव्य नहीं छोड़ा, रोज 8 घंटे लेती हैं कक्षा
हालांकि उनका शरीर बेहद कष्ट में है, फिर भी वह अपने स्कूल में प्रतिदिन 8 घंटे तक पढ़ाती हैं. विज्ञान विषय की शिक्षिका चंद्रकांता अपनी व्यथा के बावजूद बच्चों को जीवन का पाठ पढ़ा रही हैं. स्कूल के प्रधानाचार्य सखाराम प्रसाद ने बताया कि वह बहुत समर्पित शिक्षिका हैं और उन्होंने कभी इस प्रकार की इच्छा स्कूल प्रशासन को नहीं बताई थी.
अपने पत्र में चंद्रकांता ने लिखा...
"मैं खुद अपनी जान नहीं लूंगी, क्योंकि मैं अपने छात्रों को बहादुरी से जीना सिखाती हूं. लेकिन अब मेरा शरीर जवाब दे चुका है. दर्द लगातार बना रहता है और असहनीय हो गया है. इसलिए मैं राष्ट्रपति से इच्छामृत्यु की अनुमति मांग रही हूं, ताकि मेरे अंग दूसरों को नया जीवन दे सकें."
दूसरों के लिए जी रही हैं चंद्रकांता
चंद्रकांता जेठवानी अकेली रहती हैं और उनके परिवार में कोई भी जीवित नहीं है. उन्होंने अपनी संपत्ति स्कूल के छह गरीब छात्रों को दान कर दी है. साथ ही, उन्होंने अपने अंगों को इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज को दान करने की शपथ भी ली है. उनका कहना है "मेरे अंग अब मेरे किसी काम के नहीं हैं, लेकिन अगर वे किसी को देखने या जीने का अवसर दे सकें, तो वे हीरे से भी ज्यादा कीमती हैं."
स्कूल प्रशासन को नहीं थी जानकारी
स्कूल के प्रधानाचार्य सखाराम प्रसाद ने कहा कि उन्हें चंद्रकांता की इस अपील की जानकारी मीडिया के माध्यम से ही मिली. उन्होंने कहा,"वह अपने स्वास्थ्य के बावजूद पूरी निष्ठा से पढ़ाती हैं. उन्होंने कभी निजी तौर पर मुझसे इच्छामृत्यु की बात नहीं की, लेकिन हम उनकी तकलीफों से वाकिफ हैं."
दर्द से जूझती, लेकिन दूसरों को जीवन देती
चंद्रकांता जेठवानी की कहानी एक ऐसे शिक्षक की है जो खुद दर्द में जीते हुए दूसरों को जीवन देने का संकल्प ले रहा है. यह मामला न केवल इच्छामृत्यु जैसे संवेदनशील विषय पर बहस छेड़ता है, बल्कि यह भी बताता है कि समाज में संवेदना, सेवा और समर्पण अब भी ज़िंदा हैं. उनकी अपील को अब राष्ट्रपति तक भेजा गया है, और देशभर में इसपर प्रतिक्रिया आना शुरू हो गई है.


