कोल्हापुरी चप्पलों पर विवाद के बाद प्राडा का नया कदम, कारीगरों से की मुलाकात
प्राडा ने कोल्हापुरी चप्पलों की डिज़ाइन को अपने फैशन शो में बिना श्रेय दिए इस्तेमाल किया, जिसके बाद विवाद के चलते उसने कारीगरों से मिलकर सहयोग का प्रस्ताव रखा. अब प्राडा उनकी चप्पलें सीधे खरीदकर उन्हें वैश्विक बाज़ार में पहुंचाने की योजना बना रहा है.

प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय फैशन ब्रांड प्राडा ने हाल ही में भारत की पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पलों के डिज़ाइन को अपने फैशन शो में शामिल किया, लेकिन इसके लिए स्थानीय कारीगरों को कोई मान्यता नहीं दी गई थी. इसके बाद प्राडा को सोशल मीडिया पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. प्रतिक्रिया स्वरूप, प्राडा की एक टीम भारत पहुंची और कोल्हापुर के कारीगरों से मुलाकात की.
टीम ने कारीगरों से की बात
महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर (MACCIA) के सहयोग से यह टीम कोल्हापुर पहुंची और स्थानीय चप्पल उद्योग की गहराई से जानकारी ली. टीम ने न केवल चप्पल निर्माण की प्रक्रिया को देखा, बल्कि कारीगरों से बातचीत कर उनके अनुभव और तकनीक को भी समझा. प्राडा ने स्वीकार किया कि उनके फैशन शो में दिखाई गई चप्पलें भारत की पारंपरिक कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित थीं.
कारीगरों ने की मुआवजे की मांग
इस विवाद के बाद कारीगरों ने मुआवजे की मांग की और मामला बॉम्बे हाईकोर्ट तक पहुंच गया. समाधान के रूप में दोनों पक्षों के बीच सहयोग की संभावनाएं तलाशी गईं. अब प्राडा इन कारीगरों के साथ मिलकर काम करने और उनके बनाए प्रामाणिक उत्पादों को सीधे खरीदने की योजना बना रहा है. इससे न केवल कारीगरों को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलेगी, बल्कि उनके उत्पादों को वैश्विक बाजार भी मिलेगा.
कोल्हापुरी चप्पलें महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सांगली, सतारा और सोलापुर जिलों के अलावा कर्नाटक में भी बनाई जाती हैं. ये चप्पलें शुद्ध चमड़े से हाथ से बनाई जाती हैं, जिनमें किसी सिंथेटिक पदार्थ या कील का प्रयोग नहीं होता. प्राडा ने इन चप्पलों को अपने शो में 1.25 लाख रुपये कीमत के साथ प्रस्तुत किया, जबकि भारत में इनकी कीमत 400 से 1000 रुपये होती है.


