मान सरकार की विज्ञान-आधारित योजनाओं से पराली प्रदूषण में 94% की आई गिरावट
पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं 94% तक कम हो गईं है. 2016 में 80 हजार से ज्यादा आग के गोले थे, अब 2025 में सिर्फ 5 हजार! 2024 से भी 53% और गिरावट. किसानों के साथ मिलकर, स्मार्ट तकनीक अपनाकर पंजाब ने दिल्ली की हवा को साफ करने का असली जवाब दे दिया है. अब पंजाब प्रदूषण का विलेन नहीं, हीरो है

नई दिल्ली: पंजाब सरकार ने मंगलवार को घोषणा की कि राज्य ने खेतों में पराली जलाने की घटनाओं में अब तक की सबसे बड़ी सफलता दर्ज करते हुए इसे 94% तक कम कर दिया है. यह उपलब्धि न सिर्फ पंजाब, बल्कि पूरे देश के लिए एक मिसाल बनकर उभरी है. आंकड़ों के अनुसार, जहां 2016 में पराली जलाने के 80,879 मामले सामने आए थे, वहीं 2025 में यह संख्या घटकर केवल 5,114 रह गई है 2024 की तुलना में यह 53% की अतिरिक्त कमी है.
इस सफलता ने पंजाब को उस छवि से बाहर निकाला है, जहां राज्य को वायु प्रदूषण, मिट्टी क्षरण और स्वास्थ्य समस्याओं के मुख्य कारणों में गिना जाता था. कृषि आधारित वैज्ञानिक रणनीति और किसानों को सहयोगी मानकर आगे बढ़ने की नीति ने एक दशक पुराने संकट को बदलते हुए नया मॉडल प्रस्तुत किया है.
सहयोग और समाधान पर आधारित नीति
केंद्र के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा पंजाब मॉडल को पूरे देश में लागू करने की बात कहना इस उपलब्धि की अहमियत को और मजबूत करता है. सरकार का फोकस दंड के बजाय सहयोग, समर्थन और समाधान पर रहा. इसी संतुलित प्रयास ने पराली जलाने की प्रवृत्ति को लगभग खत्म कर दिया.
आधुनिक मशीनरी और सब्सिडी
पराली प्रबंधन के लिए 2018-19 में शुरू की गई फसल अवशेष प्रबंधन (CRM) योजना इस बदलाव का आधार बनी. किसानों को बड़े पैमाने पर हैप्पी सीडर्स, सुपर सीडर्स, मल्चर, एम.बी. हल और बेलर्स जैसी मशीनें उपलब्ध कराई गईं. कृषि विभाग के निदेशक जसवंत सिंह के अनुसार, शुरुआती वर्षों में मशीनों की मांग धीमी थी. लेकिन सुपर सीडर्स की आपूर्ति बढ़ने और सब्सिडी में इजाफा होने के बाद किसानों ने तकनीक को बड़े पैमाने पर अपनाया. पहले 50% सब्सिडी की जगह छोटे किसानों को अब 80% तक सब्सिडी दी गई. 2018-19 की 25,000 मशीनों की शुरुआत अब बढ़कर 1.48 लाख CRM मशीनों तक पहुंच गई है. इनमें से 66,000 सुपर सीडर्स शामिल हैं, जिन्होंने पराली को मिट्टी में मिलाकर सीधे गेहूँ की बोवाई संभव बनाई.
एक्स-सीटू समाधान?
कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां ने बताया कि सरकार ने किसानों के लिए ऐसा वातावरण तैयार किया जिसमें वे गैर-दहन तकनीकों के लाभ समझ सकें. इसके साथ ही राज्यभर में बायोमास पावर प्लांट, पेपर मिल्स और बायो-CNG प्लांट्स का नेटवर्क बढ़ाया गया, जो सीधे किसानों से पराली खरीदने लगे.
CRM कार्यक्रम के नोडल अधिकारी जगदीश सिंह के अनुसार, पिछले वर्ष उद्योगों ने 27.6 लाख टन पराली का पुन: उपयोग किया. इस वर्ष यह आंकड़ा बढ़कर 75 लाख टन (7.5 मिलियन टन) हो गया. यह सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल किसानों की आय बढ़ाने में भी सहायक साबित हुआ है.
डोर-टू-डोर कैंपेन से कैसे बदला नजरिया?
गांव-स्तर पर फसल अवशेष प्रबंधन कमेटियां बनाई गईं. कृषि विभाग, जिला प्रशासन और पर्यावरण एजेंसियों ने स्कूलों, कॉलेजों और पंचायत स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए. जसवंत सिंह ने बताया कि किसानों में यह समझ विकसित हुई कि पराली जलाना मिट्टी की दीर्घकालिक उत्पादकता को नुकसान पहुंचाता है. सरकार ने समय पर फसल खरीद और नकदी प्रवाह सुनिश्चित किया, जिससे किसान जल्दीबाजी में पराली जलाने को मजबूर न हों.
सैटेलाइट निगरानी और जवाबदेही
2006 से ही PRSC और NASA इमेजरी की मदद से निगरानी मजबूत की गई. सरकार ने सिर्फ उन किसानों पर कार्रवाई की जिन्होंने बार-बार नियमों का उल्लंघन किया. इसी के तहत 1963 FIRs दर्ज की गईं.
कृषि मंत्री खुड्डियां के अनुसार, किसानों में व्यापक मानसिक बदलाव आया है और वे अब समझते हैं कि पराली जलाना भविष्य की उपज को नुकसान पहुंचाता है.
दूरस्थ क्षेत्रों तक तकनीक पहुंचाने पर जोर
जसवंत सिंह ने कहा कि अगला लक्ष्य मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार और CRM मशीनों को सबसे दूर-दराज़ क्षेत्रों तक पहुँचाना है. पंजाब का यह मॉडल अब भारत का सबसे सफल प्रदूषण-रोधी अभियान माना जा रहा है और पूरे देश के लिए दिशा-निर्देश बन चुका है.


