गुरुनानक देव जी के प्रकाश पर्व पर सिख जत्थों को पाकिस्तान जाने की अनुमति नहीं, जानें क्या है इतिहास और क्यों उठाया गया ये कदम
गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर सिख जत्थों को पाकिस्तान न भेजने का निर्णय सुरक्षा कारणों से लिया गया है. इतिहास में युद्ध, आतंक और महामारी के कारण कई बार तीर्थयात्राएं रोकी गईं. मौजूदा हालात भी संवेदनशील हैं, इसलिए यह आस्था नहीं बल्कि सुरक्षा को प्राथमिकता देने वाला विवेकपूर्ण कदम है.

गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर सिख जत्थों को पाकिस्तान जाने की अनुमति न देने के केन्द्र सरकार के निर्णय को लेकर राजनीतिक हलकों में आपत्ति उठ रही है. परन्तु यदि इतिहास और मौजूदा सुरक्षा परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाए तो यह निर्णय न तो नया है और न ही किसी समुदाय के विरुद्ध. यह एक विवेकपूर्ण कदम है, जिसका उद्देश्य श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना है.
इतिहास से सबक
पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारों की यात्रा बार-बार बाधित होती रही है. 1947 के विभाजन के समय ननकाना साहिब, कर्तारपुर सहित अनेक पवित्र स्थल पाकिस्तान में चले गए और लाखों सिख श्रद्धालुओं की पहुंच उन तक लगभग असम्भव हो गई. सरहदें बन्द हो गईं, पुल टूट गए और दशकों तक लोग केवल दूर से ही अरदास कर सके.
इसके बाद भी परिस्थितियों ने कई बार तीर्थयात्राओं को रोका:
• 1965 के युद्ध के बाद: जसर जैसे पुलों के टूटने से सीमापार यात्रा लगभग बंद हो गई.
• जून 2019: लगभग 150 श्रद्धालुओं को अटारी सीमा पर सुरक्षा कारणों से रोका गया.
• मार्च 2020नवंबर 2021: नवम्बर 2019 में खोला गया कर्तारपुर कॉरिडोर कोविड महामारी के कारण 20 माह तक बन्द रहा.
• मई 2025: ऑपरेशन सिंदूर के बाद कॉरिडोर तत्काल प्रभाव से बन्द किया गया और लगभग 150 श्रद्धालुओं को उसी दिन लौटा दिया गया.
• जून 2025: गुरु अर्जन देव जी के शहीदी दिवस पर लाहौर जाने वाले जत्थे को अनुमति नहीं दी गई.
यह स्पष्ट है कि जब भी राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में होती है, सरकार को तीर्थयात्रा पर रोक लगानी पड़ी है.
पाकिस्तान का दोहरा चेहरा
पाकिस्तान स्वयं को सिख धरोहर का संरक्षक बताता है, परन्तु अपने अल्पसंख्यकों के प्रति उसका व्यवहार अत्यन्त कठोर रहा है. वहाँ मंदिर तोड़े गए, जबरन धर्म परिवर्तन हुए और गुरुद्वारों की उपेक्षा हुई. इतना ही नहीं, भारत से जाने वाले जत्थों को अक्सर खालिस्तानी प्रचार का सामना करना पड़ा. यह आस्था नहीं, बल्कि राजनीतिक चाल है.
आज की परिस्थिति
पहलगाम आतंकी हमले और ऑपरेशन सिंदूर के बाद हालात बेहद संवेदनशील हैं. ऐसे समय में बड़ी संख्या में नागरिकों को पाकिस्तान भेजना नासमझी होती. कुछ लोग इसकी तुलना भारत–पाक क्रिकेट मैचों से करते हैं, लेकिन खिलाड़ी तो विशेष सुरक्षा घेरे में जाते हैं जबकि श्रद्धालु फैले हुए और सहज निशाना बन सकते हैं.
निष्कर्ष
सिख समुदाय हर दौर में राष्ट्र के साथ खड़ा रहा है. वह जानता है कि राज्य का पहला कर्तव्य नागरिकों की सुरक्षा है. विभाजन ने यात्राएँ रोकीं, युद्ध और आतंक ने भी. आज की पाबंदी भी उसी क्रम में है. यह श्रद्धा पर रोक नहीं, बल्कि सुरक्षा की जिम्मेदारी है. गुरुद्वारे हमारे लिए सदा पवित्र हैं, पर नागरिकों का जीवन और राष्ट्र की अखण्डता सबसे ऊपर है.


