लोगों के नाम प्रकाशित करने की कानून में कोई आवश्यकता नहीं, बिहार में 65 लाख वोटर्स के नाम कटने पर चुनाव आयोग का जवाब
चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट किया है कि कानून सिर्फ मतदाता सूची के मसौदे को प्रकाशित करने और उस पर दावे व आपत्तियां दर्ज करने की बात कहता है. इसके लिए किसी अलग से 'विलोपन सूची' की जरूरत नहीं है.

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची को लेकर उठे विवाद पर भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने सर्वोच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखा है. आयोग ने स्पष्ट किया है कि मसौदा सूची से बाहर हुए करीब 65 लाख नामों की अलग सूची तैयार करने, प्रकाशित करने या उनके हटाए जाने के कारण बताने का उस पर कोई कानूनी दायित्व नहीं है. ईसीआई ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960 केवल मसौदा सूची के प्रकाशन और दावों-आपत्तियों की प्रक्रिया की मांग करते हैं, न कि विलोपन सूची की. आयोग ने यह भी दोहराया कि मसौदा सूची में नाम न होना, मतदाता सूची से नाम हटाए जाने के बराबर नहीं है. ड्राफ्ट सूची अभी प्रगति पर है और कई कारणों से नाम अस्थायी रूप से शामिल नहीं हो सकते हैं, लेकिन अंतिम प्रकाशन से पहले दावा प्रक्रिया के माध्यम से उन्हें जोड़ा जा सकता है.
एडीआर के आरोपों पर आयोग का जवाब
एडीआर के आरोपों को खारिज करते हुए आयोग ने कहा कि मसौदा सूची से नाम हटाना पारदर्शिता के बिना बड़े पैमाने पर विलोपन के समान नहीं है. आयोग ने एनजीओ पर 'झूठे और त्रुटिपूर्ण दावे' करने और अदालत को गुमराह करने का आरोप लगाया.
कानूनी प्रावधान और प्रक्रिया
आयोग ने स्पष्ट किया कि आरईआर के नियम 10 और 11 के तहत मसौदा सूची को जनता और मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के निरीक्षण के लिए उपलब्ध कराना अनिवार्य है. किसी समानांतर विलोपन सूची की कोई बाध्यता नहीं है. ड्राफ्ट से छूटे व्यक्ति 1 अगस्त से 1 सितंबर, 2025 तक फॉर्म 6 भरकर अपना नाम शामिल करा सकते हैं.
BLO की भूमिका और सत्यापन प्रक्रिया
ईसीआई ने बताया कि 'अनुशंसित नहीं' चिह्नित नामों की स्थिति केवल प्रशासनिक स्तर पर त्रुटि रोकने का प्रयास है, जिसका पात्रता पर कोई असर नहीं होता. अंतिम निर्णय निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी द्वारा सुनवाई के बाद ही लिया जाता है.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आरोप लगाया कि विपक्ष संशोधन का विरोध इसलिए कर रहा है क्योंकि 'घुसपैठियों के नाम' काटे जा रहे हैं. वहीं विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया पर पड़े समुदायों के मताधिकार छीनने की साजिश बताया.


