20 साल बाद उद्धव-राज ठाकरे एक मंच पर, वरली में मराठी अस्मिता की विजय सभा
महाराष्ट्र में मराठी अस्मिता के समर्थन में आयोजित रैली में मनसे प्रमुख राज ठाकरे और शिवसेना (UBT) अध्यक्ष उद्धव ठाकरे एक मंच पर नजर आएंगे. इस रैली में हर मराठी प्रेमी, साहित्यकार, लेखक, शिक्षक, संपादक और कलाकार को शामिल होने का आमंत्रण दिया गया है.

महाराष्ट्र की राजनीति में एक नई करवट देखने को मिल रही है. 20 साल पहले शिवसेना से अलग हुए राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे अब एक मंच पर आ रहे हैं. शनिवार, 5 जुलाई 2025 को मुंबई के वरली स्थित एनएससीआई डोम में मराठी एकजुटता के नाम पर आयोजित ‘विजय सभा’ में दोनों ठाकरे बंधु एक साथ नजर आएंगे. यह सभा उस त्रिभाषा फार्मूले के खिलाफ मराठी भाषा की "जीत" के उत्सव के रूप में हो रही है, जिसका दोनों नेताओं ने मिलकर विरोध किया था.
विजय सभा को मराठी अस्मिता की जीत बताकर प्रचारित किया जा रहा है. इस सभा में किसी भी राजनीतिक पार्टी के झंडे न लाने की अपील की गई है. मराठी प्रेमियों, साहित्यकारों, लेखकों, संपादकों और कलाकारों को आमंत्रित किया गया है. मंच पर केवल सहभागी संगठनों के प्रमुखों को बैठाया जाएगा. लेकिन जानकार मानते हैं कि इसके पीछे महानगरपालिका चुनाव की रणनीति छिपी है. शिवसेना (उद्धव गुट) और मनसे, दोनों ही दल बीएमसी चुनाव में अपनी राजनीतिक जमीन को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
विजय सभा की भव्य तैयारियां
डोम में 7-8 हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था है. अंदर-बाहर LED स्क्रीन लगाई गई हैं. पार्किंग के लिए बेसमेंट में 800 कारों और पुल के नीचे दोपहिया वाहनों की व्यवस्था है. महालक्ष्मी रेसकोर्स में बसों और बड़ी गाड़ियों की पार्किंग की व्यवस्था की गई है.
क्या यह केवल भावनात्मक मेल है? या भविष्य का गठबंधन?
राज और उद्धव ठाकरे के बीच पिछले कुछ वर्षों में कुछ मौके ऐसे आए हैं जब दोनों एक ही मंच पर दिखे, लेकिन राजनीतिक गठबंधन की स्थिति कभी नहीं बनी. 2014 और 2017 में भी दोनों दलों के एक साथ आने की अटकलें लगी थीं, लेकिन मनसे की ओर से दावा किया गया कि उद्धव ने कोई ठोस पहल नहीं की.
सत्ताधारी पक्ष ने जताया संदेह
महायुति सरकार के नेताओं का कहना है कि यह एकता मराठी के नाम पर लोगों की भावनाओं को भुनाने का प्रयास है, जबकि असल मकसद आगामी महानगरपालिका चुनावों में खुद को प्रासंगिक बनाए रखना है.
नज़रें टिकी हैं ठाकरे बंधुओं के अगले कदम पर
राजनीति के जानकार इस मंच को सिर्फ सांस्कृतिक उत्सव नहीं, बल्कि भविष्य के राजनीतिक गठबंधन का संकेत मान रहे हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह एकता मराठी अस्मिता तक सीमित रहती है या राजनीतिक समीकरणों की नई इबारत लिखती है.