'तमिलनाडु के लोगों को हिंदी ना आना गंभीर समस्या', जोहो के सीईओ श्रीधर वेम्बू के बयान से भाषा पर छिड़ी बहस
जोहो के संस्थापक श्रीधर वेम्बु ने तमिलनाडु के कामकाजी लोगों से हिंदी सीखने की अपील की है. ये बताते हुए कि हिंदी ना जानने से व्यावसायिक दृष्टिकोण से नुकसान हो सकता है, खासकर उत्तर भारत के साथ काम करने वाली नौकरियों में. उनके बयान पर सोशल मीडिया पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं और ये बयान एक बार फिर भारत में भाषा नीतियों पर बहस को उभारने का कारण बना है.

जानी-मानी सॉफ्टवेयर कंपनी जोहो के फाउंडर श्रीधर वेम्बु ने तमिलनाडु में कामकाजी लोगों से हिंदी सीखने की अपील की है. उन्होंने अपने बयान में कहा है कि हिंदी नहीं आने से तमिलनाडु के लोगों को व्यावसायिक दृष्टिकोण से नुकसान हो सकता है. खासकर उन नौकरियों में जो उत्तर भारत के हिंदी भाषी क्षेत्रों जैसे दिल्ली, मुंबई और गुजरात के साथ सीधे जुड़ी हुई हैं. श्रीधर वेम्बु के अनुसार, बहुभाषी कौशल ना केवल व्यक्तिगत विकास के लिए, बल्कि व्यापारिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है.
'तमिलनाडु में हिंदी ना आना एक गंभीर परेशानी'
अपने बयान में श्रीधर वेम्बु ने कहा कि हिंदी ना जानना तमिलनाडु में अक्सर एक गंभीर परेशानी बन जाता है. उन्होंने ये भी स्पष्ट किया कि तमिलनाडु में कई नौकरियों के अवसर ऐसे होते हैं, जो हिंदी बोलने वालों के साथ संवाद करने की आवश्यकता रखते हैं. श्रीधर वेम्बु ने शेयर करते हुए बताया कि वो पिछले 5 सालों से हिंदी सीख रहे हैं और अब वो करीब 20% बोलचाल की बातचीत समझ सकते हैं. उन्होंने अपनी बात को रखते हुए तमिल और हिंदी दोनों में एक संदेश दिया: 'आओ, हम हिंदी सीखें!'
As Zoho grows rapidly in India, we have rural engineers in Tamil Nadu working closely with customers in Mumbai and Delhi - so much of our business is driven form these cities and from Gujarat. Rural jobs in Tamil Nadu depend on us serving those customers well.
— Sridhar Vembu (@svembu) February 25, 2025
Not knowing Hindi…
श्रीधर वेम्बु के बयान पर प्रतिक्रिया
श्रीधर वेम्बु के इस बयान पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं. कुछ यूजर्स ने उनके विचारों का समर्थन किया, ये कहते हुए कि हिंदी भारतीय व्यापार को एकजुट करने वाली भाषा बन सकती है. वहीं, कुछ ने सवाल उठाया कि हिंदी को अंग्रेजी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं पर क्यों प्राथमिकता दी जाए. एक यूजर ने टिप्पणी की, "सर, लोग अंग्रेजी सीख सकते हैं संवाद के लिए. लेकिन हिंदी पर क्यों जोर दिया जा रहा है?"
भाषा नीतियों पर विवाद
बता दें कि ये पहली बार नहीं है जब वेम्बु ने भाषाई अनुकूलन पर अपनी राय दी है. नवंबर 2024 में, उन्होंने बेंगलुरु में कन्नड़ भाषा को प्राथमिकता देने का समर्थन किया था. उनके इस बयान को कुछ लोगों ने सराहा, जबकि कुछ ने भाषाई अपेक्षाओं को लागू करने की आलोचना की. श्रीधर वेम्बु का बयान एक बार फिर भारत में भाषा नीतियों पर बहस को उभारने का काम कर रहा है.


