तलाक से पहले लिव-इन पार्टनर से गुजारा भत्ता नहीं मांग सकती महिला, हाई कोर्ट ने बताया कारण
प्रयागराज हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में साफ कर दिया है कि अगर किसी महिला की पहली शादी कानूनी रूप से कायम है, तो वह अपने पार्टनर से भरण-पोषण (मेंटेनेंस) का दावा नहीं कर सकती है चाहे वे दोनों करीब 10 साल से साथ रह रहे हों और समाज में उन्हें पति-पत्नी जैसा ही माना जाता हो.

प्रयागराज: प्रयागराज हाई कोर्ट ने भरण-पोषण से जुड़े एक अहम मामले में स्पष्ट किया है कि यदि किसी महिला की पहली शादी कानूनी रूप से समाप्त नहीं हुई है, तो वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ रहने के आधार पर धारा 125 क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती. कोर्ट ने जिला अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें महिला को भरण-पोषण देने से इनकार किया गया था.
यह फैसला उस याचिका पर सुनाया गया, जिसमें महिला ने जिला अदालत के निर्णय को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का रुख किया था. हालांकि, हाई कोर्ट ने महिला की दलीलों को खारिज करते हुए साफ कहा कि पहले से कायम वैवाहिक संबंध के रहते किसी अन्य व्यक्ति के साथ रहने से पत्नी का कानूनी दर्जा नहीं मिल जाता.
हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी
प्रयागराज हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि मान लें कि शादी हुई भी हो, तो भी यह अवैध होगा क्योंकि आवेदक का पहला वैवाहिक संबंध अभी भी कायम है. इसलिए वह लंबे समय तक चल रहे रिलेशनशिप के आधार पर धारा 125 CrPC के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती.
विवाह संस्था और कानून की गरिमा पर जोर
जस्टिस मदन पाल सिंह की पीठ ने भरण-पोषण से इनकार करते हुए कहा कि अगर समाज में यह प्रथा स्वीकार की जाती है कि महिला एक व्यक्ति से कानूनी रूप से विवाहित रहते हुए दूसरे व्यक्ति के साथ रह सकती है और बाद में उससे भरण-पोषण मांग सकती है, तो धारा 125 CrPC का मूल उद्देश्य और विवाह संस्था की कानूनी व सामाजिक गरिमा कमजोर हो जाएगी.
महिला के दावे पर कोर्ट की राय
समीक्षा याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि हालांकि याचिका दायर करने वाली महिला लगभग 10 साल तक प्रतिवादी के साथ रही और यह संबंध विवाह जैसा प्रतीत होता है, लेकिन यह धारा 125 CrPC के तहत पत्नी का कानूनी दर्जा नहीं देता.
वकील की दलीलें क्यों नहीं मानी गईं
महिला के वकील ने दलील दी थी कि उसका नाम उस व्यक्ति की पत्नी के रूप में उसके आधिकारिक डॉक्यूमेंट में दर्ज है, जिनमें आधार कार्ड और पासपोर्ट शामिल हैं, और समाज में भी उसे उसकी पत्नी के रूप में स्वीकार किया गया है. हालांकि, कोर्ट ने इन तथ्यों को भरण-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं माना.
क्रूरता का आरोप और भरण-पोषण याचिका
महिला ने आरोप लगाया था कि बाद में उस व्यक्ति और उसके बेटों ने उसके साथ क्रूरता और उत्पीड़न किया, उसे घर से निकाल दिया और मार्च 2018 में घर में प्रवेश से रोक दिया. इसके बाद उसने धारा 125 CrPC के तहत भरण-पोषण की याचिका दाखिल की थी.
याचिका खारिज और कानूनी स्थिति
8 दिसंबर को सुनाए गए फैसले में हाई कोर्ट ने कहा कि महिला धारा 125 CrPC के तहत कानूनी रूप से विवाहित पत्नी की श्रेणी में नहीं आती, इसलिए उसका भरण-पोषण का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता. कोर्ट के इस फैसले से भरण-पोषण और वैवाहिक कानून से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण कानूनी स्थिति स्पष्ट हुई है.


