हर छोटा-बड़ा काम के लिए यूज करते हैं AI तो तुरंत बदल लें आदत, वरना पड़ सकता है भारी
आजकल तो हम लोग AI के इतने आदी हो चुके हैं कि लगभग हर छोटा-बड़ा काम बस एक क्लिक या एक सवाल में पूरा कर लेते हैं. कॉफी बनाओ, ईमेल लिखो, गाना चुनो, होमवर्क सॉल्व करो, डेटिंग मैसेज लिखो. बस बोल दो, AI कर देगा.

नई दिल्ली: आज की डिजिटल दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) युवाओं की दिनचर्या का अहम हिस्सा बनता जा रहा है. पढ़ाई, ऑफिस का काम, छोटी-मोटी बीमारियों की जानकारी से लेकर अकेलापन दूर करने तक, हर जरूरत में AI टूल्स का सहारा लिया जा रहा है. तकनीक ने जहां काम आसान किया है, वहीं वैज्ञानिक अब इसके बढ़ते इस्तेमाल को लेकर चेतावनी भी दे रहे हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि जरूरत से ज्यादा AI पर निर्भरता मानव मस्तिष्क की प्राकृतिक क्षमता को प्रभावित कर सकती है. खासतौर पर किशोर और युवा उम्र में इसका असर ज्यादा गंभीर हो सकता है, जब दिमाग तेजी से विकसित हो रहा होता है.
AI का दिमाग पर असर: क्या कहता है विज्ञान
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए कई अध्ययनों में यह सामने आया है कि AI टूल्स का लगातार उपयोग करने से सोचने और विश्लेषण करने की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. एक रिसर्च के दौरान 54 वॉलंटियर्स (जिनकी उम्र 18 से 19 वर्ष के बीच थी) को निबंध लिखने का कार्य दिया गया.
इन प्रतिभागियों को तीन समूहों में बांटा गया. पहले समूह को ChatGPT के इस्तेमाल की अनुमति दी गई, दूसरे समूह को Google AI का सहारा लेने को कहा गया, जबकि तीसरे समूह को बिना किसी AI टूल के खुद से लेख लिखने के निर्देश दिए गए.
EEG से ट्रैक की गई दिमागी गतिविधि
इस अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने EEG हेडसेट की मदद से प्रतिभागियों के मस्तिष्क की गतिविधियों को रिकॉर्ड किया. इसका उद्देश्य यह समझना था कि अलग-अलग तरीकों से लिखने पर दिमाग किस तरह प्रतिक्रिया करता है और मानसिक सक्रियता में क्या अंतर आता है.
चौंकाने वाले नतीजे आए सामने
जब नतीजे सामने आए तो वे हैरान करने वाले थे. शिक्षकों ने पाया कि ChatGPT का उपयोग करने वाले छात्रों के निबंधों में गहराई और भावनात्मक जुड़ाव की कमी थी. इसके साथ ही, EEG डेटा में भी इस समूह के दिमाग की सक्रियता अपेक्षाकृत कम पाई गई.
Google AI की मदद से लिखने वाले छात्रों में ChatGPT यूजर्स की तुलना में ज्यादा मानसिक गतिविधि देखी गई और उनके निबंधों में कुछ हद तक विचारों की गहराई भी नजर आई. वहीं, जिन्होंने बिना किसी AI के खुद से निबंध लिखा था, उनके लेखन से शिक्षकों को सबसे ज्यादा जुड़ाव महसूस हुआ और उनकी दिमागी सक्रियता भी सबसे अधिक पाई गई.
ज्यादा निर्भरता के खतरे
शोध के मुताबिक, जो लोग AI टूल्स पर अत्यधिक निर्भर रहते हैं, उनमें दिमागी गतिविधि कम होने के साथ-साथ याददाश्त कमजोर होने के संकेत भी मिले. वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि दिमाग के विकास के शुरुआती वर्षों में लगातार AI का सहारा लिया जाए, तो मस्तिष्क की प्राकृतिक क्षमता पूरी तरह विकसित नहीं हो पाती.
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों की राय है कि AI टूल्स का इस्तेमाल पूरी तरह गलत नहीं है, लेकिन इसका संतुलित उपयोग बेहद जरूरी है. जरूरत से ज्यादा निर्भरता लंबे समय में दिमाग की सोचने, समझने और याद रखने की क्षमता को कमजोर कर सकती है. इसलिए तकनीक को सहायक बनाएं, विकल्प नहीं.


