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भारत क्यों है लड़ाकू विमानों के इंजन बनाने में चीन, अमेरिका और रूस से पीछे?

लड़ाकू विमानों के इंजन बनाना बेहद मुश्किल और महंगा काम है, जिसमें भारत अभी चीन, अमेरिका और रूस से काफी पीछे है. चीन ने अरबों डॉलर खर्च कर यह तकनीक हासिल की जबकि भारत का कावेरी इंजन प्रोजेक्ट नाकाम रहा. अब भारत फ्रांस के साथ मिलकर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में काम कर रहा है लेकिन क्या वह चीन और अमेरिका को पकड़ पाएगा?

Aprajita
Edited By: Aprajita

India Fighter Jet: लड़ाकू विमानों के इंजन की ताकत ही तय करती है कि कोई विमान कितनी तेज़ी से उड़ सकता है उसकी स्टील्थ क्षमता कितनी है और वह युद्ध में कितना प्रभावी साबित होगा. लेकिन जब बात आती है फाइटर जेट के इंजन बनाने की तो यह दुनिया के सबसे मुश्किल और खर्चीले कामों में से एक है. अमेरिका, रूस, फ्रांस और चीन जैसे देश इस तकनीक में माहिर हैं लेकिन भारत अब तक इसमें पिछड़ा हुआ है. तो आखिर क्यों भारत इस रेस में इतना पीछे रह गया है?

लड़ाकू विमानों का इंजन बनाना क्यों है इतना कठिन?

फाइटर जेट्स के इंजन का निर्माण करना इंजीनियरिंग का सबसे कठिन काम माना जाता है. इसकी वजह है इंजन में इस्तेमाल होने वाली एडवांस्ड मटीरियल्स, सुपरअलॉय, सिरेमिक कोटिंग्स और कम्पोजिट्स जैसी तकनीक जो बहुत ही कठिन होती है. इसके अलावा, इंजन का टरबाइन सेक्शन 1600 डिग्री सेल्सियस तक तापमान सहन करना पड़ता है. यही नहीं, इंजन की हर छोटी-सी गलती भी विमान की कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकती है. इस सबका मतलब है कि लड़ाकू विमान के इंजन पर रिसर्च और डेवलपमेंट में अरबों डॉलर का खर्च और कई सालों का वक्त लग सकता है.

भारत क्यों पिछड़ रहा है?

भारत ने 1986 में कावेरी इंजन प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी जिसका मकसद था स्वदेशी लड़ाकू विमान इंजन तैयार करना. लेकिन यह प्रोजेक्ट कई कारणों से असफल रहा. सबसे बड़ा कारण था इसमें कम निवेश और आवश्यक तकनीकी विकास की कमी. कावेरी इंजन को लेकर सामने आई कई तकनीकी चुनौतियाँ, जैसे कंप्रेशर में रुकावट, थ्रस्ट का कम स्तर और जरूरत से ज्यादा गर्म होना. हालांकि इन दिक्कतों के बावजूद भारत इस प्रोजेक्ट पर लगातार काम कर रहा है और माना जा रहा है कि आने वाले समय में इसका इस्तेमाल ड्रोन या मानव रहित विमानों (UAVs) में किया जा सकता है.

चीन ने कैसे मारी बाजी?

चीन ने इस दिशा में अरबों डॉलर का निवेश किया और कई दशकों तक लगातार प्रयास किए. उसने रूस और अमेरिका के इंजन की टेक्नोलॉजी को रिवर्स इंजीनियरिंग के जरिए अपनाया, साइबर जासूसी का सहारा लिया और कई बार असफलताओं के बावजूद कोशिशों को जारी रखा. चीन अब WS-10 इंजन का बड़े स्तर पर निर्माण कर रहा है, जिसे वह अपने J-10, J-11 और J-16 जैसे लड़ाकू विमानों में इस्तेमाल कर रहा है. इसके साथ ही चीन ने हाल ही में यह भी कहा है कि उसने WS-15 इंजन विकसित कर लिया है, जिसे वह अपने अत्याधुनिक J-20 फाइटर जेट में लगाने की तैयारी में है.

भारत का भविष्य क्या है?

भारत अब फ्रांस के साथ मिलकर लड़ाकू विमानों के इंजन पर काम कर रहा है. अगर फ्रांस से सहयोग मिलता है तो भारत इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ सकता है. भारत फिलहाल AMCA (एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) प्रोजेक्ट पर कार्यरत है, जिसमें एक नया इंजन विकसित किया जा रहा है. हालांकि, भारत को इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए और बड़े निवेश की जरूरत है. यदि भारत चीन और अमेरिका की तरह इंजन बनाने में सक्षम हो जाता है तो उसे भविष्य में आत्मनिर्भरता हासिल हो सकती है.

भारत को कब मिलेगा आत्मनिर्भर इंजन?

भारत इस समय लड़ाकू विमानों के इंजन तकनीकी क्षेत्र में चीन से लगभग 10-15 साल पीछे है. हालांकि, यदि विदेशी कंपनियों से सहयोग मिलता है, तो इस समय को घटाया जा सकता है. भारत को अपने रिसर्च एंड डेवलपमेंट और इंजन टेक्नोलॉजी में अधिक निवेश करना होगा ताकि भविष्य में वह स्वदेशी लड़ाकू जेट इंजन विकसित कर सके. अगर भारत सही दिशा में कदम उठाता है, तो अगले 10 सालों में उसे सफलता मिल सकती है और वह आत्मनिर्भर हो सकता है.

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22 May 2025, 02:53 PM IST

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