365 में 30 दिन नमाज़ और इबादत में डूबा रहता था औरंगजेब, बाक़ी वक्त था ज़ुल्म का दौर
औरंगजेब को क्रूर शासक माना जाता था, जिसकी नीतियां और अत्याचार इतिहास में प्रसिद्ध हैं. लेकिन रमज़ान का महीना ऐसा होता था जब वह हर प्रकार की हिंसा और युद्ध से दूर रहता था, नमाज और उपवास में लीन रहता, पूरी तरह धार्मिक आचरण अपनाता.

मुगल बादशाह औरंगजेब का नाम इतिहास में एक क्रूर और कट्टर शासक के तौर पर दर्ज है. उसने सत्ता की भूख में अपने ही भाइयों की हत्या करवा दी, पिता शाहजहां को कैद कर लिया और पूरे हिंदुस्तान पर अपने सख्त इस्लामी कायदे लागू किए. लेकिन इसी औरंगजेब के जीवन में साल के 30 दिन ऐसे भी होते थे, जब वो न केवल युद्ध और राजनीति से दूर रहता था, बल्कि खुद को अल्लाह की इबादत में पूरी तरह समर्पित कर देता था. ये दिन थे – रमज़ान के पवित्र महीने के 30 दिन.
औरंगजेब पूरे साल राजनीति, षड्यंत्र और युद्धों में लिप्त रहता था, लेकिन जैसे ही रमज़ान का महीना आता, वह खुद को पूरी तरह एक धार्मिक मुसलमान के रूप में ढाल लेता. रोज़े रखता, नमाज़ें अदा करता, कुरान की तिलावत करता और आमोद-प्रमोद से दूर हो जाता. कहा जाता है कि इस महीने वह कोई बड़ा निर्णय भी नहीं लेता था. उसके दरबार में संगीत, नृत्य या मनोरंजन पर पूरी तरह पाबंदी होती थी.
आत्मिक शांति की तलाश या दिखावा?
इतिहासकारों के बीच इस बात को लेकर मतभेद है कि औरंगजेब का रमज़ान में ऐसा व्यवहार वास्तव में उसकी आध्यात्मिकता का हिस्सा था या फिर एक राजनीतिक दिखावा. कुछ मानते हैं कि वह बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति का था, जो दरबार की चकाचौंध से हटकर अल्लाह की बंदगी में सुकून ढूंढता था. वहीं कुछ का कहना है कि ये भी उसकी राजनीति का हिस्सा था – लोगों में धार्मिक छवि बनाकर सत्ता पर पकड़ मजबूत करना.
भाइयों की हत्या और सत्ता की लालसा
रमज़ान के इन 30 शांत दिनों के इतर, औरंगजेब का असली चेहरा बेहद खौफनाक था. उसने अपने सबसे बड़े भाई दारा शिकोह की हत्या करवा दी, मुराद और शुजा को भी मरवा दिया. उसने अपने ही पिता शाहजहां को आगरा के किले में नजरबंद कर दिया और खुद ताज पहन लिया. उसकी सत्ता-लालसा किसी भी कीमत पर रुकने वाली नहीं थी.
औरंगजेब के जीवन के ये 30 दिन
औरंगजेब के जीवन के ये 30 दिन इतिहास में एक विरोधाभास के रूप में देखे जाते हैं – एक ओर वो क्रूर बादशाह जो खून से ताज तक पहुंचा, और दूसरी ओर एक अल्लाह का बंदा जो रमज़ान में पूरी श्रद्धा से इबादत करता था. क्या ये उसकी आत्मा की दो परतें थीं, या महज़ एक दिखावा? यह सवाल आज भी इतिहास के पन्नों में अनुत्तरित है.


