43 गुजराती-मारवाड़ी पर्यटकों ने ऑस्ट्रिया में बसकरों को सड़क पर गरबा करने और नाचने के लिए किया मजबूर
43 भारतीय पर्यटकों ने ऑस्ट्रिया के इंसब्रुक में एक स्ट्रीट आर्टिस्ट से ज़बरन गरबा म्यूज़िक बजवाया. वीडियो वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर सवाल उठने लगे कि क्या ये उत्सव था या हकदारी की शर्मनाक मिसाल?

ट्रेडिंग न्यूज. ऑस्ट्रिया के इंसब्रुक शहर की शांत सड़कों पर बीते दिनों एक अजीब दृश्य देखने को मिला. 43 भारतीय पर्यटकों का एक समूह, जिसमें गुजराती और मारवाड़ी समुदाय के लोग शामिल थे, ने एक लोकल स्ट्रीट आर्टिस्ट की परफॉर्मेंस को बीच में रोककर अपनी पसंद का गरबा म्यूज़िक बजवाने की जिद कर डाली. शुरुआत में परफॉर्मर ने विनम्रता से मना किया, यह कहते हुए कि अगर पुलिस आ गई तो वे मुश्किल में पड़ सकते हैं, लेकिन पर्यटक नहीं माने.
गरबा नहीं तो कुछ नहीं?
वीडियो में साफ देखा गया कि कैसे भारतीय पर्यटक अपनी बात मनवाने पर अड़े रहे. लगातार ज़िद और ‘नरम दबाव’ डालने के बाद परफॉर्मर को आखिरकार अपना स्पीकर देने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसके बाद पूरे समूह ने वहां खुलेआम गरबा किया. यह करीब पांच मिनट चला, और इस दौरान बाकी राहगीर हैरानी से यह सब देखते रहे.
सोशल मीडिया पर गूंजा विरोध
जब यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो भारतीयों को शर्मिंदा करने वाली प्रतिक्रियाएं सामने आने लगीं. एक यूज़र ने लिखा, “हकदारी और ज़िद में फर्क होता है. पहली बार अनुरोध ठीक है, लेकिन बार-बार दबाव बनाना घिनौना है. ऐसे पर्यटक देश की छवि को नुकसान पहुंचाते हैं.”
Doing Garba on Austrian streets 🔥🔥https://t.co/XxsdCJJmrI pic.twitter.com/Nh2t6QQbt8
— Zee (@MhaskarChief) June 3, 2025
ये पहली बार नहीं...
ऐसे रवैये की शिकायत पहली बार नहीं आई. एक और व्यक्ति ने बताया कि जैसलमेर में लोक नृत्य कार्यक्रम के दौरान कुछ पर्यटकों ने स्थानीय परंपरा को दरकिनार करते हुए जबरदस्ती गरबा शुरू करवा दिया था, जिससे कार्यक्रम का मज़ा किरकिरा हो गया था.
वीज़ा बैन की मांग तक
घटना की गूंज इतनी बढ़ी कि कुछ यूज़र्स ने इन पर्यटकों पर यूरोपीय वीज़ा बैन लगाने की मांग तक कर डाली. क्या यह संस्कृति का उत्सव था या दूसरों की आज़ादी पर हमला? भारत की विविधता और रंगीन संस्कृति की दुनिया सराहना करती है, लेकिन अगर यह संस्कृति दूसरों पर थोपी जाए, तो वह गर्व का नहीं, शर्म का कारण बन जाती है. सांस्कृतिक गर्व और वैश्विक नागरिकता के बीच एक बारीक रेखा होती है — और उसे लांघना कभी-कभी पूरे देश की साख पर सवाल खड़े कर देता है.


