Raksha Bandhan: रक्षाबंधन पर क्यों सूनी रहती हैं इस गांव में भाइयों की कलाई? वजह जानकर कांप उठेगा दिल
उत्तर प्रदेश के सुराणा गांव में रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता क्योंकि सदियों पहले इसी दिन गांव में एक भयावह नरसंहार हुआ था. इस दिन को गांववाले अपने पूर्वजों की याद में श्रद्धांजलि दिवस के रूप में मनाते हैं.

रक्षाबंधन का पर्व पूरे देश में प्रेम और भाई-बहन के अटूट रिश्ते का प्रतीक माना जाता है. इस साल भी 19 अगस्त को देशभर में रक्षाबंधन की रौनक देखने को मिल रही है. कई बाजार रंग-बिरंगी राखियों और गिफ्ट्स से सज चुके हैं. बहनें भाइयों के लिए सुंदर राखियां चुन रही हैं, वहीं भाई भी अपनी बहनों को खास गिफ्ट देने की तैयारियों में जुटे हैं.
लेकिन गाजियाबाद से मात्र 35 किलोमीटर दूर मुरादनगर तहसील में स्थित एक गांव सुराणा ऐसा है, जहां रक्षाबंधन पर ना तो कोई उत्सव होता है और ना ही राखी बांधी जाती है. यहां की सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार, राखी बांधना अपशगुन माना जाता है. गांव के लोग इस दिन ना कोई पूजा करते हैं, ना सजते-संवरते हैं. जानिए क्यों इस गांव में रक्षाबंधन मनाने से आज भी डरते हैं लोग.
सदियों पुरानी घटना बनी डर की वजह
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सुराणा गांव के घूमेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी अखिलेश शर्मा का कहना है कि इस गांव का नाम पहले सोहनगढ़ था. इतिहास के अनुसार, यहां पृथ्वीराज चौहान के वंशज रहते थे. मोहम्मद गौरी ने जब इस बात की भनक पाई, तो उसने गांव पर आक्रमण कर दिया. उसने जंगली हाथियों को उकसाकर गांव के मासूम बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को कुचलवा दिया. ये भयावह घटना रक्षाबंधन के दिन हुई थी.
राखी के बदले दी जाती है पूर्वजों को श्रद्धांजलि
उस नरसंहार की स्मृति में छाबड़िया गोत्र के लोग आज भी इस दिन कोई उत्सव नहीं मनाते. गांव में रक्षाबंधन को श्रद्धांजलि दिवस के रूप में देखा जाता है. यहां की बहनें भाइयों को राखी नहीं बांधतीं और ना ही कोई पारंपरिक रीति-रिवाज होते हैं. इसके बजाय परिवार एकत्र होकर अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करता है.
'परंपरा को तोड़ना हमारे लिए असम्मान होगा'
इस गांव के युवाओं का कहना है कि वे अपने पूर्वजों का सम्मान करते हैं और इस परंपरा को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाना अपना कर्तव्य मानते हैं. एक युवक का कहना है कि हम जानते हैं कि यह त्यौहार बाकी देश के लिए खुशी का दिन होता है, लेकिन हमारे लिए यह दुख और बलिदान की याद दिलाता है. हम चाहते हैं कि यह परंपरा ऐसे ही बनी रहे.
क्या ये परंपरा बदलेगी?
हालांकि नई पीढ़ी सोशल मीडिया और बाहरी दुनिया से जुड़ी है, फिर भी इस परंपरा को लेकर गांव में कोई बदलाव की चर्चा नहीं है. हर साल की तरह इस साल भी सुराणा गांव में राखी नहीं बंधेगी, लेकिन दिलों में अपने परिजनों के बलिदान की स्मृति आज भी जीवित है.


