बेंगलुरु के स्टार्टअप फाउंडर ने शेयर किया 6 दिन, 12 घंटे काम करने का सख्त रूटीन, फिर छिड़ी हसल कल्चर पर बहस
बेंगलुरु के उद्यमी मोहन कुमार ने कहा कि मैटिक्स के कर्मचारी सप्ताह में 6 दिन, दिन में 12 घंटे काम करते हैं, रविवार को भी कई काम करते हैं. उन्होंने हसल कल्चर के पक्ष में कहा कि यह नौकरी नहीं, मिशन है. इस पर कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य और कार्य-संतुलन को लेकर बहस छिड़ गई है.

बेंगलुरु के मोबाइल गेमिंग ऐप मैटिक्स के सह-संस्थापक मोहन कुमार ने हाल ही में अपने कर्मचारियों के काम के घंटों को लेकर एक अहम खुलासा किया है, जिसने हसल कल्चर यानी कड़ी मेहनत और लंबे समय तक काम करने की प्रवृत्ति पर नई बहस छेड़ दी है. कुमार ने कहा कि उनके कर्मचारी सप्ताह में छह दिन, रोजाना सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक काम करते हैं, जबकि कई रविवार को भी काम पर जुड़े रहते हैं.
सख्त ऑफिस टाइमिंग की बात कही
मोहन कुमार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा कि मैटिक्स में कार्यालय का समय सोमवार से शनिवार तक सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक निर्धारित है. इसके बावजूद, उनकी टीम के कई सदस्य 10 बजे के बाद भी काम करते हैं और रविवार को भी लॉग इन करते हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि इस लंबे और सख्त कार्य समय को लेकर आलोचना हो सकती है, लेकिन उनका मानना है कि भारत का पहला वैश्विक उत्पाद बनाने के लिए पूरी टीम की प्रतिबद्धता बेहद जरूरी है.
नौकरी से निर्माण की मानसिकता की ओर बदलाव
कुमार ने कहा, "हमें नौकरी की मानसिकता से बाहर निकलकर निर्माण की मानसिकता अपनानी होगी. हमारी टीम सिर्फ कर्मचारी नहीं हैं, वे इस मिशन के संस्थापक सदस्य हैं." उन्होंने जोर दिया कि वे किसी भी कंपनी को सिर्फ जीवित रहने या वेतन पाने के लिए नहीं चला रहे हैं, बल्कि ऐसा कुछ बनाना चाहते हैं जिस पर भारत को गर्व हो. उन्होंने आगे कहा, "हर कोई इस मानसिकता से सहमत नहीं होगा, और यह ठीक भी है. लेकिन जो लोग ऐसा करते हैं, उनके लिए यह यात्रा नौकरी जैसा नहीं लगती, बल्कि अपने सपने को पूरा करने जैसा महसूस होता है."
हसल कल्चर पर फिर शुरू हुई बहस
मोहन कुमार के इस बयान ने हसल कल्चर की चर्चा को फिर से गति दे दी है. हसल कल्चर का मतलब होता है लगातार मेहनत करना, लंबे समय तक काम करना, और कभी-कभी अपनी निजी जिंदगी की कीमत पर भी काम को प्राथमिकता देना. जहां कुछ लोग इसे सफलता का रास्ता मानते हैं, वहीं कई इसे अस्वस्थ और मानसिक तनाव बढ़ाने वाला बताते हैं.
We have strict office timing of 10 am - 10 pm and 6 days a week. Still, our team members work beyond 10 and on Sundays as well. People will criticize this, but the reality is if we have to build the first global product built in India, we need everyone to be all in. Let's move… pic.twitter.com/iYBaUY5nrh
— Mohan is building @matiks_play (@themohment) July 5, 2025
कर्मचारियों के कार्य-संतुलन पर सवाल
इस खुलासे के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या लंबे समय तक काम करने वाले ऐसे नियम कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य और जीवन संतुलन के लिए सही हैं? क्या ऐसे सख्त नियम युवाओं के लिए हतोत्साहजनक नहीं हो सकते? आलोचक कहते हैं कि ज्यादा काम का दबाव कर्मचारियों में थकान, तनाव और बर्नआउट जैसी समस्याएं ला सकता है.
उद्यमिता और टीम के बीच संतुलन जरूरी
मोहन कुमार ने स्पष्ट किया है कि उनकी टीम को वे कर्मचारी नहीं बल्कि साझेदार मानते हैं जो एक बड़े मिशन पर काम कर रहे हैं. लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि कर्मचारियों का जीवन और स्वास्थ्य भी प्राथमिकता में रखा जाए. हसल कल्चर तभी सफल हो सकता है जब मेहनत के साथ संतुलन भी हो.