इन्फोसिस में प्रशिक्षुओं की छंटनी का विवाद...श्रम मंत्रालय का हस्तक्षेप, प्रधानमंत्री कार्यालय से की गई शिकायत
इन्फोसिस के मैसूरु कैंपस में कुछ प्रशिक्षुओं की छंटनी से शुरू हुआ विवाद अब प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) तक पहुंच गया है. यह मामला अब एक बड़े श्रम विवाद का रूप ले चुका है, जिससे श्रम मंत्रालय को भी हस्तक्षेप करना पड़ा है. अब तक 100 से अधिक शिकायतें पीएमओ को भेजी जा चुकी हैं.

इन्फोसिस के मैसूरु कैंपस में कुछ प्रशिक्षुओं की छंटनी से शुरू हुआ विवाद अब प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) तक पहुंच गया है. यह मामला अब एक बड़े श्रम विवाद का रूप ले चुका है, जिससे श्रम मंत्रालय को भी हस्तक्षेप करना पड़ा है. अब तक 100 से अधिक शिकायतें पीएमओ को भेजी जा चुकी हैं, जिनमें कर्मचारियों ने अपने पुनर्नियुक्ति की मांग की है और भविष्य में ऐसी छंटनियों को रोकने के लिए उचित कार्रवाई करने की अपील की है.
इन्फोसिस में नौकरी पाने का सपना
इन्फोसिस में नौकरी पाना कई नए स्नातकों के लिए गर्व का विषय होता है, लेकिन कुछ महीनों के भीतर ही यह सपना बुरे अनुभव में बदल गया. कंपनी ने आंतरिक आकलन में असफल होने के आधार पर इन कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया. इन शिकायतों के बाद, केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने कर्नाटक के श्रम आयुक्त को दूसरी बार नोटिस भेजा है और राज्य सरकार से इस सामूहिक छंटनी की जांच करने का आग्रह किया है.
श्रम मंत्रालय की कार्रवाई
श्रम मंत्रालय ने 25 फरवरी को भेजे गए पत्र में कहा कि कई शिकायतें प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई हैं. इस पत्र में राज्य सरकार से अनुरोध किया गया है कि वह इस मामले की जांच करे, क्योंकि श्रम कानूनों के तहत कार्रवाई करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है.
मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि शिकायतकर्ताओं ने न केवल अपनी बहाली की मांग की है, बल्कि भविष्य में इस तरह की छंटनियों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने का अनुरोध भी किया है. मंत्रालय ने राज्य सरकार से अपेक्षा की है कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से ले और प्रभावित कर्मचारियों को उचित जानकारी उपलब्ध कराएं.
कैसे शुरू हुआ विवाद?
यह विवाद 7 फरवरी को शुरू हुआ जब इन्फोसिस ने करीब 700 प्रशिक्षुओं को नौकरी से निकाल दिया गया. इनमें से कई को कैंपस और ऑफ-कैंपस भर्ती अभियानों के माध्यम से पिछले ढाई वर्षों में नियुक्त किया गया था और उन्हें अक्टूबर 2023 में ही जॉइनिंग दी गई थी.
इन्फोसिस ने इन छंटनियों को उचित ठहराते हुए कहा कि यह सभी प्रशिक्षु आंतरिक मूल्यांकन में असफल रहे थे. हालांकि, कंपनी का दावा है कि लगभग 350 कर्मचारियों ने स्वयं प्रदर्शन से जुड़ी समस्याओं के कारण इस्तीफा दिया था. नौकरी से निकाले गए कई प्रशिक्षुओं ने इस मूल्यांकन प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं. उनका आरोप है कि परीक्षा की कठिनाई स्तर को अचानक बढ़ा दिया गया, जिससे इसे पास करना मुश्किल हो गया.
इन्फोसिस की सफाई
शिकायतों के जवाब में इन्फोसिस ने एक आधिकारिक बयान जारी किया. कंपनी ने कहा कि हम उन व्यक्तियों की निराशा को समझते हैं जो मूल्यांकन परीक्षा पास नहीं कर सके. लेकिन, यह जरूरी है कि इस स्थिति के तथ्य स्पष्ट किए जाएं. बयान में आगे कहा गया कि हमारी परीक्षा प्रक्रिया को मूल्यांकन नीति दस्तावेज़ में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है और इसे सभी प्रशिक्षुओं को पहले ही सूचित किया जाता है. इन्फोसिस को अपने कर्मचारियों की गुणवत्ता पर गर्व है और हम उन्हें विश्व स्तर का प्रशिक्षण प्रदान करते हैं. प्रत्येक प्रशिक्षु यह समझकर जॉइन करता है कि प्रदर्शन मूल्यांकन उनकी प्रगति का एक अभिन्न हिस्सा होगा.
कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रशिक्षण अवधि के दौरान सभी प्रशिक्षु Apprenticeship Registration Form भरते हैं, जिसमें वे स्वीकार करते हैं कि प्रशिक्षण लागत पूरी तरह से इन्फोसिस द्वारा वहन की जाएगी. कंपनी ने कहा कि हमारी परीक्षा प्रक्रिया में तीनों प्रयासों में नकारात्मक अंकन शामिल होता है और इसका उल्लेख पहले ही कर दिया जाता है. इसके अलावा, 98% से अधिक पात्र प्रशिक्षुओं को उनके सेपरेशन के बाद राहत पैकेज, परामर्श सेवाएँ और पुन: नियुक्ति सेवाएँ दी गई हैं. आगे क्या होगा?
इस विवाद के बढ़ने के बाद अब सभी की निगाहें श्रम मंत्रालय और राज्य सरकार की जांच रिपोर्ट पर टिकी हैं. पीएमओ को मिली शिकायतों के बाद श्रम मंत्रालय ने इसमें सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी है. अगर जांच में इन्फोसिस की गलती पाई जाती है, तो यह मामला एक मिसाल बन सकता है और भविष्य में अन्य आईटी कंपनियों को भी अपनी नीतियों में पारदर्शिता लाने के लिए मजबूर कर सकता है.


