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अंडा क्यों हुआ महंगा? सर्दियों में कीमतों के उछाल की पूरी कहानी

सर्दियों के मौसम में अंडों की कीमतों ने इस बार आम लोगों को चौंका दिया है. कई शहरों में अंडा 8 रुपये या उससे ज्यादा में बिक रहा है. सवाल यही है कि आखिर दाम इतने क्यों बढ़े हैं और क्या आने वाले दिनों में उपभोक्ताओं को कोई राहत मिलने वाली है या नहीं.

Yogita Pandey
Edited By: Yogita Pandey

नई दिल्ली: सर्दियों में अंडों के बढ़ते दाम इस बार आम लोगों के बजट पर साफ असर डाल रहे हैं. देश के कई बड़े शहरों में अंडा 8 रुपये या उससे अधिक कीमत पर बिक रहा है, जिससे उपभोक्ताओं के मन में यह सवाल उठने लगा है कि आखिर कीमतें इतनी ज्यादा क्यों हैं और ये कब तक ऊंची बनी रहेंगी.

हकीकत यह है कि अंडों की कीमतों में जल्द बड़ी राहत मिलने की उम्मीद कम है. जानकारों का मानना है कि जब कीमतें नीचे आएंगी भी, तो गिरावट सीमित ही रहेगी. इसके पीछे मांग, सप्लाई और लागत से जुड़े कई अहम कारण हैं.

सर्दियों में क्यों बढ़ जाती है अंडों की मांग

भारत में हर साल दिसंबर से जनवरी के बीच अंडों की खपत चरम पर होती है. ठंड के मौसम में लोग प्रोटीन से भरपूर भोजन को प्राथमिकता देते हैं. घरों के साथ-साथ स्कूल हॉस्टल, ढाबे और छोटे होटल भी ज्यादा अंडों की खपत करते हैं. इस दौरान संस्थागत खरीदार भी बड़ी मात्रा में अंडों की खरीद करते हैं.

उद्योग से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि आमतौर पर जनवरी के अंत तक मांग ऊंची बनी रहती है. फरवरी से तापमान बढ़ने के साथ खपत सामान्य होने लगती है और तभी कीमतों में नरमी आती है. इस बार भी यही पैटर्न दिख रहा है, लेकिन कीमतें पहले से कहीं ऊंचे स्तर से शुरू हुई हैं.

सप्लाई सुधरी, लेकिन मांग के मुकाबले अभी कम

पिछले साल की तुलना में अंडों की आपूर्ति में सुधार जरूर हुआ है, लेकिन यह मांग के अनुपात में पर्याप्त नहीं है. पोल्ट्री सेक्टर से जुड़े लोगों का कहना है कि बीते दो वर्षों में लगातार नुकसान के चलते कई छोटे और मझोले पोल्ट्री फार्म बंद हो गए.

पोल्ट्री उत्पादन एक लंबी प्रक्रिया है, जिसे दोबारा शुरू करना आसान या सस्ता नहीं होता. इसी वजह से किसान उत्पादन तेजी से बढ़ाने में सतर्कता बरत रहे हैं. नतीजतन, सप्लाई बढ़ने के बावजूद कीमतों पर दबाव बना हुआ है.

फीड की लागत ने तय कर दी न्यूनतम कीमत

अंडों के दाम नीचे न आने की सबसे बड़ी वजह उत्पादन लागत है. मक्का और सोयाबीन, जो पोल्ट्री फीड के मुख्य घटक हैं, उनकी कीमतें बीते कुछ वर्षों में लगातार बढ़ी हैं. मौसम की मार, निर्यात मांग और इनपुट लागत में इजाफा इसका कारण है.

कुल लागत का 60 फीसदी से ज्यादा हिस्सा फीड पर खर्च होता है. उद्योग के अनुमान के मुताबिक, 6.5 से 7 रुपये प्रति अंडा से नीचे की कीमत कई किसानों के लिए घाटे का सौदा है. ऐसे में मांग घटने के बाद भी कीमतों में बड़ी गिरावट की उम्मीद कम है.

ट्रांसपोर्ट और राज्यों पर निर्भरता भी वजह

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पूर्वी भारत के कई इलाके अंडों की आपूर्ति के लिए दक्षिण और पश्चिमी राज्यों पर निर्भर हैं. लंबी दूरी के ट्रांसपोर्ट, ईंधन खर्च और लॉजिस्टिक्स के कारण प्रति अंडा 20 से 40 पैसे तक की अतिरिक्त लागत जुड़ जाती है.

इस वजह से थोक बाजारों में कीमतें घटने के बाद भी खुदरा स्तर पर असर देर से दिखता है.

थोक बाजार क्या संकेत दे रहे हैं

नेशनल एग कोऑर्डिनेशन कमेटी के आंकड़ों के मुताबिक, नमक्कल और होस्पेट जैसे प्रमुख केंद्रों में थोक कीमतें ऊंची जरूर हैं, लेकिन फिलहाल स्थिर बनी हुई हैं. इसका मतलब यह है कि कीमतों में तेज उछाल की संभावना कम है, जब तक कोई नई परेशानी सामने न आए.

तो कब सस्ते होंगे अंडे?

पोल्ट्री विशेषज्ञों का मानना है कि जनवरी तक अंडों के दाम मजबूत बने रहेंगे. फरवरी से कुछ राहत मिल सकती है, लेकिन 5 या 6 रुपये प्रति अंडा जैसे पुराने स्तर पर वापसी मुश्किल है.

इस सर्दी ने साफ कर दिया है कि अंडे अब भी अन्य प्रोटीन स्रोतों के मुकाबले सस्ते हैं, लेकिन बेहद सस्ते अंडों का दौर शायद अब पीछे छूट रहा है. फिलहाल ठंड के मौसम में अंडे महंगे ही रहेंगे और जब कीमतें गिरेंगी, तो धीरे-धीरे.

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26 December 2025, 11:23 AM IST

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