अमिताभ बच्चन की को-स्टार को सेट पर आया पैरालिसिस अटैक, फिर भी बोलीं- काम नहीं रुकना चाहिए
12 की उम्र में शादी और पैरालिसिस के बावजूद कैमरे के सामने खड़ी रहीं… शोले की 'मौसी' की ज़िंदगी में ऐसा राज़ था, जो बहुत कम लोग ही जानते हैं.

बॉलीवुड की क्लासिक फिल्म 'शोले' को याद करते ही जय-वीरू, गब्बर, ठाकुर और बसंती की छवियां आंखों के सामने आ जाती हैं. लेकिन इस फिल्म में एक किरदार ऐसा भी था, जिसने अपनी सादगी और सहज एक्टिंग से दर्शकों के दिल में अलग जगह बनाई- बसंती की मौसी. ये किरदार निभाने वाली थीं लीला मिश्रा, जो भले ही सहायक अभिनेत्री रही हों, लेकिन उनकी जीवनगाथा किसी प्रेरणा से कम नहीं है.
लीला मिश्रा की ज़िंदगी पर्दे पर निभाए गए किरदारों जितनी ही दिलचस्प थी. 12 साल की उम्र में शादी, 17 में मां बनना और फिर हिंदी सिनेमा की सबसे व्यस्त माताओं में शुमार हो जाना, कुछ ऐसा रहा उनका सफर. पैरालिसिस अटैक के बाद भी उन्होंने शूटिंग नहीं छोड़ी और कैमरे के सामने खड़ी रहीं. आज उनके समर्पण और संघर्ष की कहानियां फिर से सामने आ रही हैं.
12 साल की उम्र में शादी, 17 में बनीं मां
लीला मिश्रा का जन्म एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. महज 12 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी और 17 की उम्र में वो दो बच्चों की मां बन चुकी थीं. इसके बावजूद, उन्होंने अपने एक्टिंग करियर को जारी रखा और फिल्मों में अपनी अलग पहचान बनाई. लीला मिश्रा की आखिरी फिल्म 'दाता' थी, जिसमें मिथुन चक्रवर्ती, प्रेम चोपड़ा और पद्मिनी कोल्हापुरे जैसे सितारे थे. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान लीला मिश्रा को अचानक पैरालिसिस का अटैक आया. सेट पर अफरा-तफरी मच गई, लेकिन लीला जी की प्राथमिकता कुछ और थी- शूटिंग पूरी कैसे होगी?
फिल्म निर्देशक सई परांजपे के मुताबिक, लीला जी को अपने स्वास्थ्य से ज्यादा चिंता इस बात की थी कि शूटिंग पूरी कैसे हो. उन्होंने क्रू को निर्देश दिया कि उन्हें उस एंगल से शूट किया जाए, जहां पैरालिसिस का असर ना दिखे. शूटिंग पूरी होने के बाद ही वो मुंबई लौटीं और कुछ समय बाद उनका निधन हो गया.
नहीं करती थीं रोमांटिक सीन
लीला मिश्रा अपने उसूलों के लिए भी जानी जाती थीं. उन्होंने अपने करियर के दौरान कभी भी किसी हीरो के साथ रोमांटिक सीन नहीं किया. यहां तक कि अगर उन्हें किसी अभिनेता की पत्नी का रोल निभाना होता, तब भी वह उसे छूने से कतराती थीं. इसी वजह से उन्हें मां, मौसी या दादी जैसे किरदार ज्यादा ऑफर होते थे.
पर्दे पर जल्दी ही बन गई ‘बुजुर्ग महिला’
कई अभिनेत्रियों को उनके करियर के अंत में मां या दादी के रोल मिलते हैं, लेकिन लीला मिश्रा ने ये किरदार अपने करियर की शुरुआत में ही निभाने शुरू कर दिए थे. ‘शोले’ की मौसी से लेकर अनगिनत फिल्मों में मां की भूमिका में, उन्होंने हर किरदार को जीवंत कर दिया.
'होनहार' की हीरोइन बनने से किया इनकार
कहते हैं कि उन्हें फिल्म ‘होनहार’ में मुख्य भूमिका का प्रस्ताव मिला था, लेकिन उन्होंने ये रोल ये कहकर ठुकरा दिया कि उसमें रोमांटिक दृश्य हैं. उनकी इस सिद्धांतप्रियता ने उन्हें भले ही लीड रोल्स से दूर रखा, लेकिन दर्शकों के दिलों में उनकी जगह कभी कम नहीं हुई.
लीला मिश्रा ना सिर्फ एक बेहतरीन कलाकार थीं, बल्कि वो उस पीढ़ी की प्रतिनिधि थीं जिन्होंने अपने व्यक्तिगत मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया. आज भी जब हिंदी सिनेमा की माताओं का जिक्र होता है, तो लीला मिश्रा का नाम गर्व से लिया जाता है.


