चमक-दमक से दूर, फरहान अख्तर का दमदार अभिनय...असली युद्ध का एहसास कराती ‘120 बहादुर’
‘120 बहादुर’ 1962 के रेज़ांग ला युद्ध में मेजर शैतान सिंह और 13 कुमाऊं के 120 जवानों की वीरता को सादगी और संवेदनशीलता से दर्शाती है.

मुंबईः रजनीश ‘रजी’ घई के निर्देशन में बनी ‘120 बहादुर’ 21 नवंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. इस फिल्म में फरहान अख्तर मेजर शैतान सिंह भाटी की भूमिका में दिखाई देते हैं, जबकि अजिंक्य देव, एजाज खान, स्पर्श वालिया और विवान भटेना ने महत्वपूर्ण किरदार निभाए हैं. यह फिल्म भारतीय सेना के इतिहास के उस अध्याय को सामने लाती है, जिसे समय के साथ धुंधला कर दिया गया था, लेकिन जिसकी गूंज आज भी भारतीय सेना की शौर्यगाथाओं में सुनाई देती है.
13 कुमाऊं और मेजर शैतान सिंह की कहानी
फिल्म का मूल केंद्र 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान हुई रेजांग ला की लड़ाई है, एक ऐसी लड़ाई, जिसमें 13 कुमाऊं रेजिमेंट की चार्ली कंपनी के 120 जवानों ने लगभग 3000 चीनी सैनिकों का सामना किया. ये सभी सैनिक अहीर समुदाय से थे और मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में अदम्य साहस का परिचय देते हुए शहीद हो गए.
चेतावनी जिसे गंभीरता से नहीं लिया गया
कहानी की शुरुआत लद्दाख के कड़े मौसम में तैनात मेजर शैतान सिंह से होती है. जब भारतीय सेना को चीन की बढ़ती गतिविधियों की जानकारी मिलती है, तो रणनीतिक योजनाएँ बननी शुरू होती हैं. मेजर शैतान सिंह चीनी सेना के संभावित रास्ते का सही अनुमान लगा लेते हैं, लेकिन उनकी चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया जाता.
जैसा उन्हें अंदेशा था, चीनी सेना उसी रास्ते से आगे बढ़ती है, जिससे भारतीय सेना अचानक दबाव में आ जाती है. परिस्थितियों को समझते हुए मेजर शैतान सिंह रेजांग ला की कमान अपने हाथ में लेते हैं, और यह फैसला भारतीय इतिहास में वीरता का अमर उदाहरण बन जाता है.
तपती ठंड में जमे हुए साहस का चित्रण
फिल्म की विशेषता यह है कि यह युद्ध को किसी बड़े चकाचौंध या भव्यता में नहीं लपेटती. वह बर्फ से जमे पहाड़ों, सीमित संसाधनों और जवानों के बीच मौजूद भाईचारे को बहुत वास्तविक अंदाज में पेश करती है.
मेजर शैतान सिंह का परिचयात्मक दृश्य बेहद संवेदनशील है उनके स्वभाव, नेतृत्व और भीतर छिपे दृढ़ संकल्प को बिना संवादों के भी दर्शक महसूस कर लेते हैं.
फिल्म में सैनिकों के छोटे-छोटे पलों चॉकलेट के लिए मज़ाकिया बहस, गाँव वालों को सुरक्षित स्थान पर भेजने की चिंता, और अंत में चीनी अधिकारी द्वारा बर्फ से जमे शैतान सिंह के हाथों में रिवॉल्वर रखना जैसे दृश्य दिल में गहरी छाप छोड़ते हैं.
सशक्त अभिनय और सच्ची भावनाएं
फरहान अख्तर मेजर शैतान सिंह के रूप में बेहद प्रभावशाली दिखाई देते हैं. उनका अभिनय शांत भी है और गहरा भी एक ऐसे नेता का चित्रण जो हिम्मत और गंभीरता दोनों का संतुलन बनाए रखता है.
सहायक कलाकारों में स्पर्श वालिया, अंकित सिवाच, धनवीर सिंह और उदयसिंह राजपूत कहानी को मजबूत बनाते हैं. अजिंक्य देव और एजाज खान भी अपनी सीमित भूमिकाओं में प्रभाव छोड़ते हैं. राशि खन्ना फिल्म में कम दिखाई देती हैं, लेकिन उनकी उपस्थिति पात्र की भावनात्मक परत को और समृद्ध करती है.
सीधी लेकिन प्रभावशाली युद्ध-गाथा
फिल्म किसी भी प्रकार की अतिशयोक्ति से बचती है. युद्ध के दृश्य इतने वास्तविक हैं कि दर्शक खुद को उसी बर्फीली घाटी में महसूस करने लगते हैं. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि चीन ने इस घटना के निशान मिटाने की कोशिश की थी ताकि दुनिया को अपनी हार का पता न चले.
137 मिनट की यह फिल्म एक गरिमामयी श्रद्धांजलि की तरह समाप्त होती है, शांत, संवेदनशील और बेहद प्रभावशाली. ‘120 बहादुर’ सिर्फ एक युद्ध फिल्म नहीं, बल्कि उन सैनिकों के साहस को सलाम है जिन्होंने देश के लिए सबकुछ कुर्बान कर दिया.


