hemophilia: क्या है हीमोफीलिया रोग, जिसकी दवा के एक डोज की कीमत है 28 करोड़ रुपए
इस बीमारी में दवा इतनी महंगी आती है कि अमेरिका जैसे देश में इस बीमारी के इलाज में 150 करोड़ का खर्चा आता है जो किसी आम इंसान की कल्पना से भी बहुत ज्यादा है।

यूं तो हर परिवार में लोग बीमार पड़ते हैं और कुछ दिन के इलाज में ठीक हो जाते हैं। छोटी मोटी बीमारी में तो कई लोग दवा तक नहीं लेते और घरेलु नुस्खे अपनाकर ही ठीक हो जाते हैं लेकिन बड़ी बीमारियों में इलाज और डॉक्टरों पर काफी खर्च हो जाता है। लेकिन क्या आपने ऐसी बीमारी के बारे में सुना है जिसके इलाज की दवा 28 करोड़ रुपए में आती है। चौंक गए हैं तो आपको बता दें कि इस बेहद रॉयल और खर्चीली बीमारी का नाम है हीमोफीलिया (hemophilia) जिसके इलाज में पूरी जिंदगी में मरीज के 100 करोड़ रुपए से भी ज्यादा खर्च हो जाते हैं। इस बीमारी में दवा इतनी महंगी आती है कि अमेरिका जैसे देश में इस बीमारी के इलाज में 150 करोड़ का खर्चा आता है जो किसी आम इंसान की कल्पना से भी बहुत ज्यादा है। चलिए जानते हैं कि हीमोफीलिया क्या बीमारी है, इसके कारण क्या है और इसका शरीर पर क्या असर पड़ता है।
17 अप्रैल को पूरी दुनिया में वर्ल्ड हीमोफीलिया डे मनाया जाता है ताकि इस दुर्लभ बीमारी के प्रति लोगों में जागरुकता फैल सके।
क्या है हीमोफीलिया की बीमारी -
हीमोफीलिया के लक्षण
नाक से खून आना
डेंटल सर्जरी के बाद ब्लीडिंग ना रुकना
मसूड़ों से ब्लीडिंग होना
आपको बता दें कि इस बीमारी के भारत में भी कई मरीज हैं लेकिन सबसे ज्यादा मरीज अमेरिका में हैं। ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया भी इसी बीमारी से ग्रसित थी और उनके चलते ब्रिटिश राजपरिवार में कई लोग इस बीमारी से पीड़ित होकर मर गए।
हीमोफीलिया की दवा हीमोजेनिक्स -
इस दुर्लभ ब्लड डिस्ऑर्डर के लिए दवा काफी महंगी आती है। इस बीमारी की दवा का नाम है हीमोजेनिक्स। ये दुनिया की सबसे महंगी दवाओं में से एक है और इसके एक डोज की कीमत करीब 28 करोड़ रुपए के आस पास की है। इस दवा के कई डोज हीमोफीलिया मरीज को दिए जाते हैं जिससे ये बीमारी किसी के लिए भी काफी महंगी साबित होती है।
कैसे असर करती है हीमोजेनिक्स -
हीमोजेनिक्स हीमोफीलिया के मरीज पर खास तरह से असर करती है। दरअसल इस दवा में वायरल वेक्टर होते हैं, जो हीमोफीलिया के फैक्टर IX के लिए एक जीन का उत्पादन करने में मदद करते हैं। ये जीन लिवर में फैक्टर IX प्रोटीन का उत्पादन फिर से शुरू करता है जिससे ब्लड क्लाटिंग को मदद मिलती है। इस फैक्टर की मदद से शरीर में ब्लीडिंग पर रोक लगाने वाले फैक्टर IX का ब्लड लेवल बढ़ता है। कुल मिलाकर कहा जाए तो शरीर में जिस क्लॉटिंग फैक्टर की कमी होती है, हीमोजेनिक्स दवा की मदद से वही फैक्टर सुईं के जरिए मरीज की कोशिकाओं में भेजा जाता है।
हीमोफीलिया की दवा ना केवल दुनिया में सबसे महंगी है बल्कि इसके मरीज के शरीर पर कई तरह के प्रभाव पड़ते हैं जैसे लिवर के एंजाइम का कमजोर होना, सिर में दर्द, थकावट , जी मिचलाना, उल्टी पेट दर्द और चक्कर आना।
हालांकि हीमोजेनिक्स के अलावा भी हीमोफीलिया का इलाज कई तरह से होता है जिसमें जीन थैरेपी और रिप्लेसमेंट थैरेपी का नाम मुख्य है। इसके अलावा इसके इलाज में क्लॉटिंग फैक्टर को इंप्रूव करना, अमीनोकैप्रोइक एसिड , नॉन-फैक्टर रिप्लेसमेंट थेरेपी के साथ साथ फिजिकल थैरेपी का भी सहारा लिया जाता है।
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