सच्चा भारतीय ऐसा नहीं कहेगा...सेना और चीन पर राहुल गांधी की गलतबयानी को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त
राहुल गांधी के सेना पर दिए बयान को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए ठोस प्रमाण मांगा है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर सोशल मीडिया नहीं, संसद उपयुक्त मंच है. हालांकि, ट्रायल पर फिलहाल रोक लगाई गई है. मामला गलवान हिंसा पर कथित टिप्पणी को लेकर दायर याचिका से जुड़ा है.

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा भारतीय सेना के संबंध में दिए गए बयान पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में पूछा कि क्या उनके पास इस बयान को सिद्ध करने के लिए कोई ठोस सबूत या दस्तावेज़ हैं. यह सवाल जस्टिस दीपांकर दत्ता की ओर से उस समय आया जब राहुल गांधी की याचिका पर सुनवाई हो रही थी, जिसमें उन्होंने निचली अदालत के समन को चुनौती दी थी.
एक सच्चा भारतीय ऐसा बयान नहीं देगा
सुनवाई के दौरान जस्टिस दत्ता ने टिप्पणी की कि अगर आप विपक्ष के नेता हैं तो क्या आपको ऐसे बयान सोशल मीडिया पर देने चाहिए, या आपको संसद में उठाने चाहिए?” उन्होंने पूछा कि आपने यह कैसे मान लिया कि चीन ने 2000 वर्ग मीटर भारतीय क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया है? क्या आपके पास इसका कोई विश्वसनीय स्रोत या दस्तावेज़ है?” कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कोई भी व्यक्ति संवेदनशील राष्ट्रीय मुद्दों पर मनमाने ढंग से बयान नहीं दे सकता.
सुप्रीम कोर्ट से फिलहाल राहत
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को कुछ राहत देते हुए उनके खिलाफ ट्रायल पर फिलहाल रोक लगा दी है और इस मामले में नोटिस जारी कर तीन सप्ताह बाद अगली सुनवाई तय की है. इसका अर्थ यह है कि कोर्ट इस मामले की गंभीरता को समझते हुए आगे जांच करना चाहती है, लेकिन साथ ही याचिकाकर्ता को भी जवाब दाखिल करने का अवसर दे रही है.
याचिका की पृष्ठभूमि
यह मामला एक आपराधिक याचिका से जुड़ा है, जो सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के पूर्व डायरेक्टर उदय शंकर श्रीवास्तव द्वारा दाखिल की गई थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से यह टिप्पणी की थी कि गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों की पिटाई की थी, जो देश की सेना का अपमान है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहले खारिज की थी राहत
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राहुल गांधी को समन रद्द करने से इनकार करते हुए कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी सीमाएं होती हैं, और सेना जैसे संवेदनशील संस्थान को सार्वजनिक मंच पर इस प्रकार बदनाम नहीं किया जा सकता. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि किसी जनप्रतिनिधि को बोलते समय सावधानी बरतनी चाहिए, विशेषकर जब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा और सेनाओं के सम्मान से जुड़ा हो.


