Air India Crash: कॉकपिट में कैमरा क्यों नहीं? एयर इंडिया क्रैश के बाद उठे सवाल, क्या वीडियो से मिल जाता हादसे का सच?
एयर इंडिया हादसे के बाद कॉकपिट में कैमरा लगाने की मांग ने जोर पकड़ लिया है. हादसे से ठीक पहले पायलट्स के बीच हुई बातचीत तो ऑडियो रिकॉर्डर से सामने आ गई. लेकिन यह नहीं पता चल सका कि कॉकपिट में वास्तव में क्या हुआ था.

Air India Crash: एयर इंडिया के बोइंग 787-8 विमान हादसे के एक महीने बाद जारी हुई अंतरिम रिपोर्ट ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है, क्या अब विमानों के कॉकपिट में वीडियो रिकॉर्डर भी होने चाहिए? यह सवाल उस वक्त और तेज हुआ जब पायलट्स के बीच का संवाद सामने आया. यह ऑडियो ब्लैक बॉक्स से निकाला गया, लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो सका कि उस समय कॉकपिट में सच में क्या हुआ था.
विमानन विशेषज्ञों से लेकर आम नागरिकों तक अब यह पूछ रहे हैं कि जब कारों और ट्रकों में कैमरे लगाए जा सकते हैं, तो फिर दुनिया के सबसे एडवांस इलेक्ट्रॉनिक्स से लैस हवाई जहाजों में कॉकपिट कैमरा क्यों नहीं लगाया जा सकता? हादसे के बाद केवल ऑडियो रिकॉर्डिंग से सच्चाई का पता लगाना मुश्किल हो जाता है, जबकि वीडियो फुटेज महत्वपूर्ण पलों को स्पष्ट रूप से सामने ला सकता है.
कॉकपिट में कैमरा क्यों नहीं?
भारत और दुनिया भर में लोग यह जानना चाह रहे हैं कि जब विमानों में इतने अत्याधुनिक उपकरण मौजूद हैं, तो कॉकपिट जैसी संवेदनशील जगह में कैमरे क्यों नहीं लगाए जाते? पुराने विमानों में रेट्रो-फिटिंग करना थोड़ा कठिन हो सकता है, लेकिन नए विमानों में कैमरा लगाना कोई मुश्किल काम नहीं है. अमेरिका की स्वतंत्र एजेंसी NTSB ने लगभग 25 साल पहले कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डर लगाने की सिफारिश की थी.
ब्लैक बॉक्स के बावजूद कहानी अधूरी
हर विमान में दो ब्लैक बॉक्स होते हैं एक कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर और दूसरा फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर. एयर इंडिया की दुर्घटना के बाद दोनों ब्लैक बॉक्स बरामद कर लिए गए और जांच के लिए दिल्ली भेजे गए. इनसे निकली जानकारी ने पायलट्स के बीच तनावपूर्ण संवाद का खुलासा किया, लेकिन यह नहीं बताया जा सका कि ईंधन कैसे कट गया क्या यह तकनीकी गड़बड़ी थी या मानव त्रुटि?
पायलट्स क्यों कर रहे हैं विरोध?
कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डिंग के सबसे बड़े विरोधी खुद पायलट्स हैं. उनका कहना है कि इससे उनकी निजता का हनन होगा, खासकर तब जब वे उच्च दबाव वाले हालात में 'केयरफ्री' होकर निर्णय लेते हैं. इसके अलावा, सीनियर और जूनियर पायलट्स के बीच की बातचीत भी प्रभावित हो सकती है. पायलट्स को यह भी डर है कि एयरलाइंस उनका सर्विलांस करने के लिए इस फुटेज का इस्तेमाल कर सकती हैं.
पायलट यूनियनों को यह चिंता भी है कि दुर्घटनाओं के वीडियो लीक हो सकते हैं, जिससे पीड़ित परिवारों को और ज्यादा मानसिक आघात पहुंचेगा. अमेरिका की ALPA जैसी प्रभावशाली यूनियन लंबे समय से कॉकपिट कैमरों का विरोध करती आई है. उनका मानना है कि ब्लैक बॉक्स से मिलने वाली जानकारी ही पर्याप्त है.
सुरक्षा बनाम निजता: बहस का असली मुद्दा
यह बहस वास्तव में निजता और सुरक्षा के बीच संतुलन की है. कई विमान हादसों में यदि कॉकपिट वीडियो उपलब्ध होते, तो जांच अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष हो सकती थी. मिस्र के EgyptAir फ्लाइट 990 जैसी दुर्घटनाओं के मामलों में भी वीडियो फुटेज निर्णायक भूमिका निभा सकता था.
पायलट्स को बचा भी सकता है कैमरा
यह भी तर्क दिया जा रहा है कि कैमरा पायलट्स को झूठे आरोपों से बचा सकता है. कई बार पायलट्स की गलती मानी जाती है, जबकि कारण तकनीकी भी हो सकते हैं. ऐसे में कैमरा फुटेज सच्चाई को सामने लाने में मदद कर सकता है.
कॉकपिट में कैमरे की मांग तेज
एयर इंडिया की दुर्घटना के बाद वकील, डॉक्टर, प्रोफेसर जैसे पेशेवर लोग सोशल मीडिया पर यह सवाल पूछ रहे हैं कि कॉकपिट में कैमरे क्यों नहीं हैं. भारत ही नहीं, विदेशों में भी अब इस मुद्दे को लेकर गंभीरता देखी जा रही है. अमेरिका, चीन जैसी ताकतें इस दिशा में आगे बढ़ रही हैं. चीन अपने घरेलू विमानों में कैमरे लगाने पर विचार कर रहा है.
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि निजता से जुड़े नियमों को सही तरीके से लागू किया जाए और वीडियो केवल आपातकालीन जांच के लिए ही उपयोग हो, तो कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डिंग पूरी तरह संभव है. एक समय पर पायलट्स ने कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर का भी विरोध किया था, लेकिन आज वह हर विमान में अनिवार्य है. हो सकता है, कुछ समय बाद कॉकपिट वीडियो रिकॉर्डर भी इसी राह पर चलें.


