महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना में बढ़ा तनाव, क्या एकनाथ शिंदे की पार्टी भी तोड़ेगी भाजपा
एक बार फिर राजनीति गलियारें से तनाव की खबरें सामने आ रही हैं. दरअसल स्थानीय निकाय चुनावों से पहले महायुति गठबंधन के दो प्रमुख दल बीजेपी और शिवसेना के बीच मनमुटाव खुलकर सामने आ रहा है.

महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल में है. स्थानीय निकाय चुनावों से पहले महायुति गठबंधन के दो प्रमुख दल भारतीय जनता पार्टी (BJP) और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना के बीच मनमुटाव खुलकर सामने आने लगा है.
दोनों दलों के बीच चल रही खींचतान अब ऐसे मोड़ पर पहुंच गई है, जहां गठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े होने लगे हैं. गृह मंत्री अमित शाह के दखल के बाद भी ये मामला सुलझने का नाम नहीं ले रहा है.
पार्टी नेताओं की जोड़तोड़ से बढ़ी दूरी
पिछले कुछ दिनों से दोनों दलों के बीच नेताओं की तोड़फोड़ को लेकर तनाव जारी था. माना जा रहा था कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हस्तक्षेप के बाद यह विवाद थम जाएगा लेकिन हालिया घटनाओं ने तनाव को फिर हवा दे दी है.
दरअसल, दोनों पार्टियों के बीच यह सहमति बनी थी कि कोई भी दल एक-दूसरे के नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल नहीं करेगा. इसके बावजूद BJP ने सोमवार को शिवसेना के तीन महत्वपूर्ण नेताओं को अपने पाले में कर लिया. इनमें एक नेता अंबरनाथ से और दो संभाजीनगर से हैं.
अंबरनाथ के रूपसिंह धाल, जो पुराने शिवसैनिक और बिजनेसमैन हैं, महाराष्ट्र BJP अध्यक्ष रवींद्र चव्हाण की मौजूदगी में पार्टी में शामिल हुए. वहीं संभाजीनगर में शिवसेना के फुलंबरी नगर पंचायत उम्मीदवार रहे आनंदा ढोके और महिला विंग प्रमुख शिल्पारानी वाडकर भी BJP में शामिल हो गईं
शिवसेना ने दी कड़ी प्रतिक्रिया
BJP के इस कदम ने शिवसेना को नाराज कर दिया है। शिवसेना के कैबिनेट मंत्री और संभाजीनगर के गार्जियन मंत्री संजय शिरसाट ने साफ चेतावनी दी. उनका कहना था कि यदि भाजपा ने शिवसेना नेताओं की तोड़फोड़ नहीं रोकी, तो उसे इसके नतीजे भुगतने होंगे.
उन्होंने कहा कि अगर BJP यह दिखाना चाहती है कि उसके संगठन की पकड़ मजबूत है, तो शिवसेना भी उचित जवाब देगी. शिरसाट के अनुसार, इस तरह की राजनीति गठबंधन कार्यकर्ताओं में भ्रम और असंतोष फैला रही है.
महायुति में चुनाव लड़ने का क्या फायदा?
शिरसाट ने यह भी कहा कि यदि दोनों दल एक-दूसरे के नेता तोड़ते रहे, तो महायुति के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का कोई मतलब नहीं रह जाता. उन्होंने संकेत दिया कि यह प्रवृत्ति आने वाले नगर निगम और जिला परिषद चुनावों को भी प्रभावित कर सकती है.
बता दें, उन्होंने भाजपा नेता चंद्रशेखर बावनकुले के उस बयान पर भी तंज कसा जिसमें उन्होंने कहा था कि "राजनीतिक कार्यकर्ता हमेशा विकल्प तलाशते रहते हैं."
3 दिसंबर के बाद क्या बदलेगी तस्वीर?
BJP नेता बावनकुले ने दावा किया है कि चुनाव प्रचार के दौरान महायुति में जो भी मतभेद दिख रहे हैं, वे 3 दिसंबर को चुनाव परिणाम आने के बाद खत्म हो जाएंगे. हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब जमीन पर कार्यकर्ताओं के बीच खींचतान इस हद तक बढ़ जाए, तो केवल बयानबाजी से हालात सुधरना मुश्किल है.


