भारत में गिरती प्रजनन दर बनी चिंता का कारण, 38% लोगों ने बताई सबसे बड़ी वजह
संयुक्त राष्ट्र की एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जन्म दर तेजी से घट रही है और अब यह प्रति कपल 1.9 पर पहुंच गई है, जो कि आबादी के रिप्लेसमेंट लेवल 2.1 से कम है. यह भविष्य के लिए एक गंभीर संकेत है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि भारत में बहुत से लोग चाहकर भी माता-पिता नहीं बन पा रहे.

संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट में भारत की जनसंख्या वृद्धि पर चिंता जताई गई है. रिपोर्ट के अनुसार देश की प्रजनन दर 1.9 तक गिर चुकी है, जो रिप्लेसमेंट लेवल 2.1 से नीचे है. विशेषज्ञों का कहना है कि अभी इसका सीधा असर नहीं दिख रहा है, लेकिन आने वाले दशकों में इसका गंभीर प्रभाव देखने को मिल सकता है. भारत सहित 14 देशों के सर्वे पर आधारित इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं, जिनसे स्पष्ट होता है कि लोग चाहकर भी संतान नहीं पैदा कर पा रहे.
सर्वे के अनुसार, भारत में कई मेडिकल और सामाजिक कारण ऐसे हैं, जो लोगों को माता-पिता बनने से रोक रहे हैं. वहीं, आर्थिक अस्थिरता इस मामले में सबसे बड़ा डर बनकर सामने आई है.
बांझपन और मेडिकल परेशानियां बनी बाधा
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 13% लोग बांझपन या गर्भ ठहरने में दिक्कत के कारण संतान सुख से वंचित हैं. वहीं 14% लोग प्रेग्नेंसी से जुड़ी मेडिकल समस्याओं के चलते माता-पिता नहीं बन पा रहे. इसके अलावा 15% लोग खराब स्वास्थ्य या गंभीर बीमारियों को इसकी वजह मानते हैं.
आर्थिक असुरक्षा सबसे बड़ी चिंता
सबसे बड़ा कारण जो सामने आया, वह है आर्थिक स्थिति. करीब 38 फीसदी भारतीयों ने कहा कि वे इसलिए संतान नहीं पैदा कर रहे क्योंकि उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं. उन्हें डर है कि अधिक बच्चे होने पर शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और जीवन की मूलभूत जरूरतें पूरी नहीं हो पाएंगी.
आवास और रोजगार की कमी भी कारण
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि 22% लोगों की चिंता आवास को लेकर है, जबकि 21% लोगों ने रोजगार के अभाव को इसकी वजह बताया. उनका मानना है कि जब तक आय और रहने की जगह सुनिश्चित नहीं होती, तब तक परिवार बढ़ाना जोखिम भरा है.
अमेरिका में भी दिखा यही ट्रेंड
दिलचस्प बात यह है कि अमेरिका में भी 38% लोगों ने यही आर्थिक चिंता जताई है. इससे साफ है कि यह समस्या केवल भारत तक सीमित नहीं, बल्कि ग्लोबल स्तर पर युवा पीढ़ी इस भय और अस्थिरता से जूझ रही है.
विशेषज्ञों ने जताई चिंता
जनसंख्या विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यही रुझान जारी रहा तो भविष्य में जनसंख्या संतुलन बिगड़ सकता है. कार्यबल में कमी, वृद्ध आबादी का बोझ और सामाजिक ढांचे पर दबाव जैसी समस्याएं उभर सकती हैं.